विजय शंकर सिंह। कुछ को सम्पन्न किसानों से नफरत है, और इस आंदोलन को वे सम्पन्न किसानों का आंदोलन बता रहे है। यह बात सच है कि इस आंदोलन में सम्पन्न किसान हैं। क्योंकि वे जानते है कि यह कानून उन्हें बर्बाद कर देगा। लेकिन वे ही लोग जो इन सम्पन्न किसानों से नफरत कर रहे है, गिरोहबंद पूंजीपतियों की बढ़ती हुयी पूंजी से खुश हैं।
लॉक डाउन के दौरान जब देश की जीडीपी माइनस 23.9% तक गिर गयी थी और सरकार को अपनी जेब मे रखने वाले अम्बानी और अडानी ग्रुप की सम्पत्तिया कई गुना बढ़ गयी तब यदि यह सवाल आप के मन मे नही उठ रहा है कि जब आप सूख रहे है तो वे फल फूल कैसे रहे हैं, तो यह अचरज की बात है।
यह किसान यह समझ चुके हैं कि यह तीनों कृषि कानून उनकी सम्पन्नता, खुशहाली, बेहतर जीवन के लिए एक प्रकार से डेथ वारंट है। आज पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश के खुशहाल किसान यह भी देख रहे है कि बिहार के किसान कैसे 2006 के बाद से एपीएमसी और न्यूनतम समर्थन मूल्य के खत्म होने के बाद, विपन्नता के पंक में धँसते गए।
बिहार की भूमि भी शस्य श्यामला है। उर्वर है। लोग भी मेहनती हैं। पर सरकार की प्राथमिकता में वे नही है। इसीलिए दिल्ली घेरे किसान, यह नहीं होने देना चाहते कि, उनकी उपज की कीमत भी यही दो धनपशु तय करें, मनचाही मात्रा में मनचाहे समय तक जमाखोरी कर के मुनाफाखोरी भी यही दोनों करें और अपनी रिटेल से सामान्य व्यापारियों को बेरोजगार औऱ बेव्यवसाय कर के, हम सामान्य उपभोक्ताओं को भी, अपनी ही मर्जी पर तय किये दामों, पर सामान बेचें। यह चौतरफा शोषण होगा। एक तरफ किसानों को उनकी उपज की कीमत नहीं मिलेगी औऱ दूसरी तरफ उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर सामान नहीं मिलेगा। किसान यह खतरा महसूस कर रहे है और हम उन्हें पुलिस संरक्षण में गुंडों से पिटते देख अपने अपने ख्वाबगाह में अशनि संकेत के बावजूद, अफीम की पिनक में हैं !
आज यह गिरोहबंद पूंजीपति, सरकार नियंत्रित कर रहे हैं, कल यह उपज की कीमत नियंत्रित करेंगे। परसों पूरा बाजार। अपनी मीडिया से इन्होंने देश के लोगों का दिमाग तो नियंत्रित करना शुरू ही कर दिया है। सरकार की इतनी हिम्मत भी शेष नही है कि वह एक भी ऐसा कदम उठाए जो इन कॉरपोरेट के हित के विरुद्ध हो और जनता के हित मे हो। आ रहा है बजट देख लीजिएगा। सरकार समर्थक मित्रो की तो अब यह भी हैसियत नहीं है कि वह सरकार से यह भी पूछ सके कि कोरोना आपदा से निपटने के लिये 20 लाख करोड़ के पैकेज का लाभ किस जनता को मिला औऱ कितना मिला।
(लेखक पूर्व आईपीएस अधिकारी रहे है ,समसामयिक विषयों पर गहरी नजर और पैठ पर अपनी कलम के साथ सक्रिय है।)