संतोष कुमार सिंह: दिल्ली में पिछले 41 दिनों से कड़ाके की ठंड में लाखों की तादाद में किसान धरने पर बैठे हैं , किसानों का कहना है की जब तक नया कृषि क़ानून वापस नहीं होगा तब तक हम घर वापस नहीं जायेंगे , भले ही हमारी जान क्यों न चली जाय , दूसरी तरफ अब तक इस आंदोलन में 61 लोगों की मृत्यु हो चुकी, सरकार अपने आप को सही साबित करने के चक्कर में कृषि कानूनों को किसानो के हित और आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा सुधार बात रही हैं। और विपक्ष पर आरोप लगा रही है कि किसानो को गुमराह किया जा रहा है ।
सवाल ये है कि क्या किसान किसी के गुमराह करने पर इस तरह से अपनी जान दे सकते है ?
ऐसी परिस्थितियों में समझना जरूरी है की तीनो नये कृषि कानूनों में आखिर है क्या ?? इसको गहराई से समझना और देखना महत्वपूर्ण है और ये कैसे आने वाले दिनों में हमारी रसोई को ये कैसे प्रभावित कर सकता है।
साथ ही यह जानने की जरुरत है की इन कानूनों के बारे में सरकार की क्या राय है तथा आंदोलनरत किसानो की आपत्तियां क्या है ?
1 कृषि क़ानून – जरूरी सामानो में संशोधन से जुड़ा है
सरकार कहती है – इस कानून के बारे में सरकार का दावा है की यह क़ानून किसानों के आज़ादी को ध्यान में रखकर लाया गया है, अब किसान अपनी फसल के साथ साग सब्ज़ी और फलों का भंडारण कर सकेंगे, जिससे उन्हें सही मूल्य मिलने पर बेचने का अधिकार होगा अभी इस तरह से कंपनी को अपने उत्पादन की क़ीमत तय करने और आज़ादी हैं, इस संसोधन से वही आज़ादी अब देश के किसानों को मिल जाएगी।
किसानों का दावा- इस संशोधन से देश में नए किस्म की जमीनदारी प्रथा की शुरुआत होगी जो कंपनियों के लिए फायदेमंद है। इससे देश में कंपनी राज दौर वापस आ जायेगा। अपने बात के पक्ष में किसान कहते हैं की देश में 86% छोटे किसान है जो अपने उपज का लम्बे समय तक भण्डारण नहीं कर सकते क्योंकि अपनी फसल को बेच कर ही किसान अपनी दवाई , बच्चों की शिक्षा , घर के अन्य जरुरी चीज़ों की पूर्ति करता है साथ अपनी अगली फसल की बोआई भी करता है ऐसे में यह संभव ही नहीं है की किसान अपने फसल को लंबे समय तक रख सके, साथ ही आंदोलनरत किसान कहते हैं की यह कानून पूरी तरह प्राइवेट कंपनियों और अडानी ,अम्बानी के कहने पर बनाई गयी है।
किसान दावा करतें है की 2018 में मुकेश अम्बानी ने सार्वजनिक रूप से कहा की रिलायन्स अब देश में खेती किसानी के कारोबार में भी उतरेगी ,
साथ यह भी जान लेना चाहिए की पिछले साल देश भर 50 से अधिक कृषि क्षेत्र में काम करने के लिए कंपनी रजिस्टर्ड हुई है जिसमे अकेले अडानी की 21 कंपनी है , इन कंपनियों ने बिहार राजस्थान हरियाणा पंजाब सहित कई राज्यों में लोहे के गोदाम (सायलो का निर्माण कराया है), सायलो को गवई भाषा में बखार कहा जाता है , इस गोदामों में एक साथ लाखों टन अनाज रखा जा सकता है , इसलिए किसान दावा कर रहे है की बड़े – बड़े पूंजीपति जो कागज़ में किसान बन चुके है इन्ही के लाभ के लिए सरकार ने यह क़ानून बनाया है, किसानों का यह एक दावा ये भी है भी की इस क़ानून में संशोधन से कंपनियों के द्वारा जमाखोरी होनी शुरू हो जायेगी, जिससे महंगाई बेतहाशा बढ़ेगी साथ ही प्राइवेट कंपनियों के पास अनाज भंडारण होने से गावं में गरीबों को सस्ता राशन उपलब्ध नहीं हो सकेगा , जिससे भुखमरी और अपराध भी बढ़ेगा यह क़ानून केवल किसानों के ही नहीं बल्कि देश के 99 % गरीब और मेहनतकश जनता के भी खिलाफ है ।
2 कृषि कानून- कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य
सरकार का दावा- इस कानून के द्वारा सरकार, सरकारी मंडियों के पैरेलल प्राइवेट मंडियों को खोलने का रास्ता रखा है। सरकार का दावा है कि यह किसानों के हित में लिया गया क्रांतिकारी कदम है जिससे किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी क्योंकि किसान अपनी उपज का मूल्य स्वयं निर्धारित कर सकता है और देश के किसी भी मंडी में बेच सकता है।
किसानों का तर्क क्या कहता है
आंदोलन कर रहे किसान सरकार के इस दावे को जुमला बताते है । किसानों का कहना है कि देश का 86% किसान इतनी उपज पैदा करने में सक्षम ही नहीं है कि वह इसे कहीं अन्य स्थान पर ले जाकर बेचें खाद्यान्न व्यापार में निजी पूंजीपतियों के आने के चलते मंडी की व्यवस्था धीरे-धीरे खुद ही खत्म जाएगी क्योंकि शुरुआती वर्ष में अपना एकाधिकार कायम करने के लिए उद्योगपति अच्छा रेट दे सकते हैं, लेकिन जैसे ही सरकारी मंडी का अस्तित्व समाप्त होगा पूंजीपति मनमाने रेट पर खरीदारी करेंगे और किसानों का शोषण करेंगे यही कारण है कि किसान MSP, को लागू करने की मांग भी कर रहे हैं।सरकार कह रही है कि एमएसपी जारी रहेगा जबकि नए कानून के अनुसार सरकार का यह दावा खोखला है इसको हम कांट्रैक्ट फार्मिंग कानून के अंतर्गत समझ सकते हैं।
3 कृषि कानून- कृषक कीमत आश्वासन एवं कृषि सेवा करार
सरकार का दावा –बिल के संदर्भ में हमने किसानों को आजाद कर दिया वह अपने उपज का मूल्य खुद तय करें साथ ही अब बड़े पूंजीपतियों के साथ साझेदारी में खेती कर सकता है समस्त कृषि लागत पूंजीपति साक्षीदार वहन करेंगे इस कारण किसानों की आय में भारी वृद्धि हो जाएगी।
किसानों का तर्क- यह कानून किसानों की जमीन के लिए सबसे बड़ा संकट है कांट्रैक्ट फार्मिंग के कारण किसान अपने ही जमीन पर मजदूर बन जाएगा।
किसानों का कहना है कि इस कानून में धारा 9 के अंतर्गत यह बात साफ तौर पर लिखी हुई है कि किसानों को अपनी लागत के लिए कर्जदाता संस्थाओं से अनुबंध करना होगा जो कांट्रैक्ट फार्मिंग से अलग अनुबंध होगा यह एक प्रकार से नई साहूकारी व्यवस्था होगी इसके लिए कर्ज देने वाली संस्था किसान से उसकी जमीन गिरवी रखा लेगी।
किसानों का कहना है कि कांट्रैक्ट फार्मिंग में सबसे खतरनाक बात यह है कि यह कंपनियों को छूट देता है की वह फसल का मूल्य निर्धारित करने से पूर्व फसल की गुणवत्ता की जांच कर सकता है उसके बाद मूल्य का निर्धारण किया जाएगा यही कारण है कि सरकार MSP को बाध्यकारी नहीं बना पा रही है साथ ही गुणवत्ता सही ना होने पर कंपनी अपने करार को तोड़ सकती है इस परिस्थिति में कंपनी ने यदि किसान को किसी प्रकार का ऋण दिया है तो उसकी वसूली कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग एक्ट की धारा 14 (2) के अंतर्गत कंपनी के कुल लागत खर्च के वसूली के रूप में होगी जो धारा 14 (7 )के अंतर्गत भू राजस्व बकाया के रूप में की जायेगी इसका मतलब ये हुआ कि कर्ज़ ना देने की स्थिति में क्षेत्रीय अमीन किसान को गिरफ्तार भी कर सकता है तथा आवश्यकता पड़ने पर तहसीलदार किसान की जमीन को कुर्क करके नीलामी कर के कंपनी के कर्ज की अदायगी कर सकता है।
इस कानून में किसानों के लिए जो एक अन्य खतरनाक बात है वह यह है कि कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग में कंपनी के इच्छा अनुसार ही फसल बुवाई खाद बीज कीटनाशक सिंचाई आदि होगी इसमें किसी भी चीज से असंतुष्ट होने की स्थिति में कंपनी को यह अधिकार होगा कि वह किसान के साथ अपने करार को भंग कर दे।
यह एग्रीमेंट कुछ साल के लिए किसान और कंपनी के बीच में होगा इसमें कंपनी को सुविधा है कि कंपनी चाहे तो फसल पर बैंक से कर्ज़ ले सकती है इस प्रकार से किसान के खतौनी में उक्त लोन दर्ज हो जाएगा, और यदि किसी कारणों से किसान और कंपनी के बीच का अनुबंध रद्द होता है तो उस स्थिति में किसान स्वयं बैंक का कर्जदार हो जाएगा।
इसी आधार पर किसानों ने इस संघर्ष को जीवन मरण एवं अपने पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित करने का प्रश्न बना लिया है।
किसानों ने पूरी दृढ़ता के साथ अपने पक्ष को सरकार के समक्ष रखा और बताया कि ये तीनों कानून किस प्रकार से काले और देश के 99 फ़ीसदी गरीब आबादी के विरोधी कानून है।
लेकिन सरकार कोई ठोस तर्क नहीं प्रस्तुत कर पा रही जिससे कि यह सिद्ध हो कि उक्त तीनों कानून किसानों के हित में है तो क्या प्रधानमंत्री उनका मंत्रिमंडल सिर्फ जबानी जमा खर्च के जरिए किसानों का भला कर देगा ?सबसे बड़ा सवाल यही है।