आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि भाजपा नीत दिल्ली सरकार ने शासन और प्रशासनिक शक्तियों के मामलों में केंद्र और उपराज्यपाल के खिलाफ पिछली आप सरकार द्वारा दायर मामलों को वापस लेना शुरू कर दिया है। सूत्रों ने बताया कि दिल्ली सरकार, केंद्र और उपराज्यपाल कार्यालय से जुड़े संवैधानिक सद्भाव के हित में संबंधित अदालतों के समक्ष उचित आवेदन दायर करके ऐसे सभी मामलों को वापस लेने का निर्णय लिया गया है।
भाजपा सरकार द्वारा वापस लिए गए मामलों में पिछली सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में दायर एक विशेष अनुमति याचिका भी शामिल है, जिसमें दिल्ली में पीएम-आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (पीएम-एबीएचआईएम) योजना के कार्यान्वयन के लिए उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी।
नई सरकार ने यह कहते हुए याचिका वापस ले ली कि वह दिल्ली में पीएम-अभियान योजना के कार्यान्वयन पर आगे बढ़ रही है।
2015 से पिछले एक दशक में दिल्ली सरकार चलाने वाली आम आदमी पार्टी (आप) भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और उपराज्यपाल कार्यालय के साथ लगातार लड़ाई में लगी रही। दिल्ली से जुड़े मामलों में केंद्र के अधिकार को चुनौती देते हुए पार्टी ने केंद्र के खिलाफ कई अदालती मामले दायर किए।
जुलाई 2018 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में संवैधानिक दर्जा बरकरार रखने के आदेश के बावजूद, दिल्ली सरकार के नौकरशाहों के स्थानांतरण-पोस्टिंग, कानून प्रवर्तन और उपराज्यपाल कार्यालय की शक्तियों से जुड़े सेवाओं के मामलों पर प्रशासनिक नियंत्रण को लेकर मुकदमेबाजी जारी रही।
विधि विभाग द्वारा तैयार की गई सूची के अनुसार, वापस लिए जा रहे मामलों में पिछली आप सरकार द्वारा दायर मामले भी शामिल हैं, जिनमें उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) अधिनियम, 1991 में केंद्र द्वारा किए गए संशोधन को चुनौती दी थी, ताकि उपराज्यपाल को सेवा मामलों में अधिकार दिया जा सके।
ऐसा ही एक और मामला राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा यमुना की सफाई और शहर में तीन लैंडफिल पर डंप किए गए कूड़े के पहाड़ों को हटाने के लिए एलजी की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय समितियों का गठन है।
चूंकि आप सरकार सत्ता संघर्ष में लगी हुई थी, इसलिए उसने कई विभागों के सचिवों और प्रमुखों के खिलाफ भी मामले दर्ज किए।
सूत्रों ने बताया कि संबंधित अदालतों की अनुमति से ऐसे सभी मामले वापस लिए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि सरकारी वकील भी जल्द सुनवाई की याचिका दायर करेंगे ताकि समय और संसाधनों की बर्बादी को रोकने के लिए इन मामलों को वापस लिया जा सके। उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों से अनिश्चितता भी पैदा होती है और सेवा वितरण तथा सरकारी परियोजनाओं और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में देरी होती है।