सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एल्गार परिषद मामले में कार्यकर्ता और नागपुर विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर शोमा सेन को जमानत दे दी है। सेन को 2018 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने गिरफ्तार किया था और उन्हें साढ़े पांच साल की जेल हुई थी। उनके खिलाफ यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया था। एनआईए का आरोप है कि सेन के प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) संगठन से संबंध हैं।
जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जॉर्ज ऑगस्टिन मसीह की पीठ ने उन्हें सशर्त जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। इसमें कहा गया कि सेन अदालत की अनुमति के बिना महाराष्ट्र नहीं जा सकतीं और उन्हें अपना पासपोर्ट अदालत को सौंप देना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि सेन से संपर्क करने के लिए केवल एक सक्रिय फोन नंबर का उपयोग किया जाएगा और उस नंबर को जांच अधिकारी के नंबर के साथ जोड़ा जाएगा। उनका जीपीएस 24 घंटे सक्रिय रहेगा ताकि जांच अधिकारी उनकी लोकेशन ट्रैक कर सकें।
पीठ ने कहा कि शर्तों का उल्लंघन होने पर अभियोजन पक्ष जमानत रद्द करने की मांग कर सकता है।
एल्गार परिषद मामला क्या है?
शिकायतकर्ता तुषार दामुगड़े ने 2018 में पुणे के विश्रामबाग पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज कराया था। दामुगड़े के अनुसार, 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवार वाडा में एल्गार परिषद नामक एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जहां कबीर कला मंच के वक्ता, गायक और अन्य कलाकार मौजूद थे।
उनके अनुसार, प्रदर्शन उत्तेजक प्रकृति के थे और उनमें सांप्रदायिक वैमनस्य पैदा करने का प्रभाव था। शिकायतकर्ता ने कहा कि उक्त कार्यक्रम में दिए गए भाषण भी उत्तेजक थे।
शिकायत में आयोजन स्थल पर बिक्री के लिए रखी गई किताबों पर भी आपत्ति जताई गई, जिसमें सीपीआई (माओवादी) पर एक किताब भी शामिल थी।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, परिणामस्वरूप, 1 जनवरी, 2018 को पुणे के भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़क उठी, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई, और कई घायल हो गए।