हम बात कर रहे हैं पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में पीड़ित किसानों के बारे में बीते दिनों 3 दिन पहले पूरे प्रदेश में भारी मात्रा में बारिश और ओलावृष्टि की घटना हुई। जिसके कारण खेतों में लहलहाती फसल लहूलुहान हो गई। जो फसलें 10-15 दिनों बाद कटाई करने के योग्य हो गई थी, वही फसलें खेतों में जमींदोज हो गई। किसान जिनके जीविकोपार्जन का साधन मात्र फसल और खेती ही है, उनकी कमर पूरी तरीके से टूट गई। बारिश की रात खत्म होने के बाद किसान जैसे ही अपने खेतों में गया और खेतों में जमीन पर गिरी हुई फसलों को देखकर उसकी आह निकल गई। क्योंकि उसकी पूरे साल भर की कमाई मिट्टी में मिल गई। किसान को उम्मीद थी जो उसकी फसलों की बर्बादी हुई है उसकी भरपाई के एवज में प्रदेश सरकार की तरफ से मुआवजे की रकम या कोई राहत भरा कदम उठाया जाएगा।
आज हम इसी मुद्दे पर बनारस के किसानों की पीड़ा को बताने जा रहे हैं जो बर्बाद हुई अपनी फसलों से कराह उठे हैं। उनकी रातों की नींद हराम हो गई है, और उनका चैन सुख खत्म हो गया है। अब तो बस उन्हें ईश्वर का ही सहारा है। ऐसे में हमारे रिपोर्टर से किसानों के बीच में जाकर के उनकी बर्बाद हुई फसलों के बारे में जानने का प्रयास किया और सरकार के द्वारा उनके लिए क्या राहत भरा कदम उठाया जा रहा है इसके बारे में ग्राउंड रिपोर्ट के तहत पड़ताल की गई।
जिले में है 90000 किसान-
वर्तमान समय में पूरे बनारस की आबादी 4500000 के ऊपर हो चली है, जहां पर 90000 किसान परिवार का कुनबा निवास करता है। ऐसे प्रदेश की योगी सरकार की तरफ से किसानों को राहत भरा कदम देने के लिए पूरे प्रदेश से 33% किसानों को मुआवजा देने की बात कही गई। प्रशासन के द्वारा बनारस में भी हवा हवाई सर्वे करवाया गया। यह हवा हवाई सर्वे बंद कमरे में बैठकर के आला अधिकारियों के द्वारा किया गया, जिसको देखते हुए जिले के किसानों के अंदर व्यापक रोष व्याप्त है। बताते चलें जिले में 90000 किसान रहते हो वहां पर मात्र 58983 किसानों को मुआवजा रकम के लिए चयनित किया गया है। वह भी कृषि विभाग राजस्व विभाग की संयुक्त टीम के द्वारा हवा हवाई सर्वे करते हुए मात्र उन्हें 33% मुआवजा देने का आकलन किया गया है। उन्हें मुआवजा कब मिलेगा इसके बारे में उन्हें कोई खबर नहीं है। जिसके कारण उनके ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। मालूम हो कि बनारस एक ऐसा शहर है जो धर्म अध्यात्म और संस्कृति की राजधानी होने के साथ-साथ किसानों की या यूं कहें अन्नदाताओं की कर्मभूमि के रूप में महाजनपद काल से प्रचलित एवं विख्यात है। ऐसे में यहां के किसान अपनी मेहनत एवं मजदूरी से अपने परिवार के भरण-पोषण के साथ-साथ इन्हीं फसलों के माध्यम से शहरी सीमा में रहने वाले दूरदराज से आए हुए लोगों का भी भरण पोषण करते हैं। साथ ही अपना जीविका भी चलाते हैं।
हवाई सर्वे से नाखुश है किसान-
किसानों के ऊपर आई इस आपदा से जूझ रहे उनकी परेशानी को जानने के लिए हमारे रिपोर्टर ने शहर के भिखारीपुर एरिया के तरफ रुख किया। यहां पर अपनी खेती से अपनी साख और चमक बनाने वाले किसान सार्दुल विक्रम से मुलाकात हुई। विक्रम ने बताया उनकी गेहूं की फसलें खेतों में पक करके तैयार हो गई थी जिनकी कटाई मात्र 10 से 15 दिनों में करने की उम्मीद थी। उनका कहना था इन्हीं फसलों से मिली हुई आमदनी के माध्यम से वह अपना परिवार चलाते हैं। अपने बच्चों के स्कूल की पढ़ाई का ध्यान रखते हैं एवं हर प्रकार के सामाजिक ताने-बाने को मेंटेन करते हैं। लेकिन जैसे ही रिपोर्टर उनके सामने पहुंचे और इस बारे में बात की उन्होंने अपने सर पर हाथ रख लिया और रोने लगे। उनका कहना था इस साल तो हम बर्बाद हो गए। हमारी सारी फसलें चौपट हो गई। पूरी फसलें जमीन पर लोट गई है। अनाज सड़ जाएंगे।दानों को निकाल पाना कठिन हो जाएगा। अब तो जुताई बुवाई की लागत भी नहीं निकल पाएगी। सरकार से काफी उम्मीदें थी कि सरकार कोई राहत भरा कदम देगी लेकिन अभी तक तो हमारे यहां कोई सर्वे करने भी नहीं आया। आखिर कैसे मिलेगा हमें मुआवजे का रकम और कैसे करेंगे अपने परिवार का भरण पोषण। इसी कड़ी में आगे बढ़ते हुए किसान हृदय नारायण सिंह से मुलाकात हुई। इनका कहना था इनकी गेहूं की फसलें पूरी तरीके से गिर गई हैं। इतना ही नहीं चने की फसल बर्बाद हो गई। अरहर की फसल बर्बाद हो गई और तो और 10 से 15 दिनों पहले इनके द्वारा खेतों में प्याज के पौधे लगाए गए थे वह सारे के सारे प्याज के पौधे खराब हो गए है। उनकी पत्तियां टूट गई और पीली पड़ गई, जिससे अब तो उत्पादन होना ही ठप हो गया है। यह तो कह रहे थे अभी तो न सर्वे करने के लिए लेखपाल आए और ना ही कृषि विभाग का कोई और अधिकारी आया। लेकिन सुनने में आ रहा है कि मुआवजा मिलेगा। अब तो मुआवजा किसको मिलेगा कैसे मिलेगा यह तो कोई बताने वाला ही नहीं है करें तो क्या करें।
हरी पत्तेदार सब्जियां भी हो गई चौपट –
किसानों के द्वारा अपने खेतों में आय के साधन के रूप रूप में हरी पत्तेदार सब्जियों का उत्पादन किया जाता है। बनारस के ज्यादातर किसान अपनी आमदनी के लिए लहसुन, प्याज,गोभी ,बंद गोभी ,टमाटर, तरबूज ,खरबूज, नींबू ,हरी मिर्च कटहल ,करेला, तोरई ,भिंडी जैसी फसलों का उत्पादन करते हैं। ये किसान बनारस की सब्जी मंडियों में इन सब्जियों को पहुंचा करके उससे अपनी आमदनी करते हैं। हरी सब्जियों को खेती करने वाले किसान बिंद साहब बताते हैं कि बारिश और ओलावृष्टि के कारण उनकी सभी हरी फसलें जिनकी वजह से वह अपनी आमदनी करते थे खराब हो गई है। खेतों में सड़ना शुरू हो गई है उन की पत्तियां पीली पड़ गई है। अब उनके मुंह से कराह निकल उठी है। उन्हें उम्मीद थी कि प्रशासन की तरफ से शायद मुआवजे की कोई पेशकश की जाए लेकिन उनका कहना था कि मुआवजे के लिए हाल खबर लेने के लिए अभी तक कोई भी अधिकारी या कर्मचारी उनके दरवाजे या खेत तक नहीं पहुंचा है। जिसके कारण अब उनका सब्र टूटता हुआ चला जा रहा है। इसी तरीके से बनारस में ना जाने कितने हजारों किसान हैं जो बारिश और ओलावृष्टि से परेशान हो चले हैं।
बेचने पड़ेंगे मवेशी नहीं चुका पाएंगे बैंक का कर्ज –
पिंडरा के किसान त्रिभुवन नारायण सिंह का कहना है कि उन्होंने खेती करने के लिए बैंक से ₹50000 का कर्जा लिया हुआ था। उन्हें उम्मीद थी की फसलें अगर अच्छी हुई तो उन्हीं फसलों से आमदनी करके वह बैंक का कर्जा भी चुका देंगे और अच्छे तरीके से साल भर अपना जीवन यापन भी करेंगे। लेकिन अब तो फसल बर्बाद हो गई है। सरकार की तरफ से कोई राहत भरा कदम नहीं उठाया जा रहा है। 33% का वादा हवा हवाई कदम रहा है। ऐसे में अब उनके परिवार वालों के ऊपर पीड़ा दिखाई देती है। उनका कहना था उनके पास 7 भैस और 8 गाय हैं। अब उन सभी को बेचना पड़ेगा और बेच करके बैंक का कर्जा चुकाना होगा। नहीं तो कर्ज में परिवार को और संकट का सामना करना पड़ेगा। सरकार से कोई राहत भरा कदम तो दिख नहीं रहा है करें तो क्या करें।
सर्वे नहीं होने के कारण सदमे में है किसान –
प्रदेश सरकार की तरफ से 33% किसानों को मुआवजा देने की बात कही गई जबकि पूरे बनारस में 75% किसानों की फसलें बर्बाद हो गई हैं और उनकी फसलों में बारिश और ओलावृष्टि के कारण 60 से 80% की उत्पादन में गिरावट देखने को आ रही है। फसल 80% तक खराब हो गई है। वहीं दूसरी तरफ जिला प्रशासन का कहना है कि किसानों की सिर्फ मात्र 10 से 12% ही फसल खराब है बाकी उनकी फसलें सही है, जिसको देखते हुए किसानों के अंदर रोष आ गया है। किसानों का कहना है बंद कमरे में बैठकर के अधिकारियों के द्वारा सर्वे किया जा रहा है। एक बार वह हमारी हमारे खेतों में आ करके देखें कि हमारी कितनी फसलें बर्बाद हुई है और हमें कितना मुआवजा देने की पेशकश करनी चाहिए लेकिन उनके द्वारा हमारे खेतों की तरफ रुख नहीं किया जा रहा है, जिस कारण अब हम लोगों को संकट के घड़ी से गुजरना पड़ रहा है। इस समस्या के बारे में जब जिला कृषि अधिकारी अरविंद कुमार सिंह से बात की गई-
उनका कहना था सभी किसानों की फसलें बर्बाद नहीं हो सकती है। क्षेत्रों में भारी मात्रा में बारिश और ओलावृष्टि हुई है। वहां पर बर्बाद हो सकती हैं किसानों की मदद के रूप में हम लोगों के द्वारा सर्वे का काम करवाया जा रहा है और सर्वे रिपोर्ट को जिला प्रशासन के माध्यम से कृषि निदेशालय लखनऊ भेज दिया जाएगा। और वहां से जो भी राहत की रकम होगी वह किसानों को सीधे उनके खाते में मिलेगी।
लेकिन अब प्रश्न यह उठता है कि यह जो दावा किया जा रहा है जिला प्रशासन के द्वारा उससे कितनी ज्यादा खुश हैं कितने ज्यादा नाखुश हैं। आखिर मोदी की सरकार लोकसभा और राज्यसभा की चोट पर इतना ही नहीं लाल किले से भी आवाज बुलंद करती है कि हम किसानों की आय दुगनी करेंगे। वहीं किसानों के ऊपर प्राकृतिक आपदा आई है, उनका साथ क्यों नहीं दिया जा रहा है? उनके द्वारा उनके साथ भेदभाव और छलावा क्यो किया जा रहा है? दूसरा सवाल उठता है इस समस्या की घड़ी में आखिर किसानों का मददगार कैन साबित होगा? आखिर किसान किससे अपनी मदद की गुहार लगाएं।