सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को गरमागरम बहस छिड़ गई क्योंकि पीठ ने अभद्र भाषा के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए राज्य सरकार पर बहुत ही तल्ख़ टिपण्णी की। न्यायमूर्ति केएम जोसेफ ने टिप्पणी की, “ऐसा होता रहता है क्योंकि राजनेता इस तरह के खेल खेलते रहते हैं। राजनीति में धर्म का उपयोग न करें। जिस क्षण राजनीति और धर्म अलग हो जाएंगे, हेट स्पीच जैसे मामले सामने नहीं आएंगे।” न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने भी अदालत के सामने नफरत फैलाने वाले भाषणों की निरंतर घटनाओं पर गहरा दुख व्यक्त किया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि हर दिन लोग एक दूसरे को उसके धर्म को लेकर बयानबाजी कर रहे हैं। पीठ ने कहा- लोगों को खुद को संयमित रखना चाहिए। लोगों को दूसरे धर्मों का भी सम्मान करना चाहिए। अदालत की ये टिप्पणी हेट स्पीच मामले में सुनवाई के दौरान आई। शीर्ष अदालत महाराष्ट्र की पुलिस और प्रशासन के खिलाफ नफरत भरे भाषणों के कई मामलों के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए अदालती कार्रवाई की अवमानना की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
अवमानना याचिका दायर करने वाले वकील निजाम पाशा ने पीठ से कहा कि महाराष्ट्र में हर दो दिन में एक हेट स्पीच की घटना सामने आती है। बाकी राज्यों में ऐसा नहीं होता, ऐसा केवल यहीं होता है। याचिका में कहा गया है कि महाराष्ट्र में पिछले 14 महीनों में कम से कम हेट स्पीच की 50 घटनाएं सामने आई हैं। ये वे घटनाएं हैं, जो समाचार पत्रों में दर्ज हैं। इसके बावजूद राज्य सरकार इसके खिलाफ कुछ नहीं कर रही है।
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कुछ टीवी चैनल पर हर दिन लोग एक दूसरे लोग व धर्मों को बदनाम कर रहे हैं। अदालत हेट स्पीच के कितने मामलों की सुनवाई करेगी? न्यायमूर्ति नागरत्ना ने पूछा- “इस देश के नागरिक दूसरों को गाली न देने का संकल्प क्यों नहीं ले सकते? दूसरों को बदनाम करने से आपको क्या फायदा?”
अदालत ने सुनवाई के दौरान ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों का जिक्र किया और कहा कि, ‘वाजपेयी और नेहरू को याद कीजिए, जिन्हें सुनने के लिए लोग दूर-दराज से इकट्ठा होते थे। हम कहां जा रहे हैं?’
भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने याचिकाकर्ता की “विश्वसनीयता” पर सवाल उठाया। मेहता ने तर्क दिया, “यह तब रुकेगा जब ऐसे उत्साही जनहित याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बनाया जाएगा, और एक राज्य और एक धर्म से मुद्दों को उठाने के बजाय, आप सभी मुद्दों को यहां लाएंगे”। उन्होंने कहा- “ये याचिकाएं चयनात्मक हैं।”
जस्टिस जोसेफ ने टिप्पणी की- “एक आदमी के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज गरिमा है। अगर आपकी गरिमा नियमित रूप से कही जाने वाली बातों से ध्वस्त हो रही है … कोई कहता है ‘पाकिस्तान जाओ’ … ये वे लोग हैं जिन्होंने यहां रहना चुना। वे हमारे भाई और बहनें हैं …” एसजी ने हालांकि आपत्ति की और कहा: “इस तरह के बयान गलत धारणा देंगे कि ऐसी चीजें उचित हैं।” उन्होंने कोर्ट से इस तरह के बयान नहीं देने की मांग की।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने पूछा, “हम जानना चाहते हैं कि राज्य इसे रोकने के लिए क्या करेगा?”
एसजी के तर्क के बाद न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा- “ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि राज्य नपुंसक है। यह कुछ भी नहीं कर रहा है … हमारे पास ऐसा राज्य क्यों है जहां राज्य चुप है जब यह सब हो रहा है?”
न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा, “यह एक ऐसा देश है जो अपनी बहुसांस्कृतिक विरासत के साथ पूरी दुनिया को रोशनी देता है… हमें एक सांस्कृतिक विरासत सौंपी गई है, एक प्रथा… एक है सहिष्णुता। साथ ही ये भी टिप्पणी की कि अदालत का आदेश “स्पष्ट है कि अगर किसी ने इस तरह के भाषण दिए हैं तो कानून उन पर ईंटों के एक टन की तरह गिरना चाहिए”।
अदालत ने महाराष्ट्र सरकार से अवमानना याचिका का जवाब देने को कहा। अदालत ने कि वह इस मामले की अगली सुनवाई 28 अप्रैल को करेगी।