सुप्रीम कोर्ट ने मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने की मांग कर रही याचिकाओं पर सोमवार को केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। CJI डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जे बी परदीवाला की पीठ ने केंद्र सरकार से 15 फरवरी तक इस मुद्दे पर जवाब देने को कहा है। इन याचिकाओं पर सुनवाई 14 मार्च से शुरू होगी। अब सुप्रीम कोर्ट मार्च में मामले पर अंतिम सुनवाई कर यह तय करेगा कि मैरिटल रेप अपराध है या नहीं?
Supreme Court asks Centre to file a reply on petitions challenging the constitutional validity of exception to marital rape issue
SG Tushar Mehta tells SC that the issue would have social ramifications & a few months ago they had asked states to share their inputs on the matter pic.twitter.com/KdR7lQFlxg
— ANI (@ANI) January 16, 2023
इससे पहले याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा “न्यायिक के साथ साथ इस मामले के सामाजिक परिणाम होंगे। इस मामले पर राज्यों की राय भी चाहते हैं, कुछ महीने पहले हमने राज्यों से उनकी राय मांगी थी। हम इस मामले में जवाब दाखिल करना चाहते हैं।”
सुप्रीम कोर्ट मैरिटल रेप को आपराधिक ठहराए जाने से जुड़ी कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने तय किया है वह इस मामले को किसी हाईकोर्ट को ना देकर खुद इस पर सुनवाई करेगी।
देश की कई हाईकोर्ट में मैरिटल रेप का मामला आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई की है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने फैसले में मैरिटल रेप को अपराध बताया था तो वहीं दिल्ली हाईकोर्ट के दो जजों ने इस मामले पर अलग-अलग फैसला दिया था। तब इस मामले को तीन जजों की बेंच को सौंप दिया गया था। उसके बाद देश के अलग अलग हाईकोर्ट में लंबित ऐसे मामलों को सुप्रीम कोर्ट ने अपने पास स्थानांतरित करने का आदेश दिया था।
11 मई 2022 को दिल्ली हाईकोर्ट के 2 जजों ने इस मामले में अलग-अलग फैसला दिया था। बाद में दोनों जजों ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए प्रस्तावित किया था। सुनवाई के दौरान जस्टिस राजीव शकधर ने मैरिटल रेप अपवाद को रद्द करने का समर्थन किया था तो वहीं जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि IPC के तहत अपवाद असंवैधानिक नहीं है। दरअसल, याचिकाकर्ता ने IPC की धारा 375( रेप) के तहत मैरिटल रेप को अपवाद माने जाने को लेकर संवैधानिक तौर पर चुनौती दी थी। इस धारा के अनुसार विवाहित महिला से उसके पति द्वारा की गई यौन क्रिया को दुष्कर्म नहीं माना जाएगा, जब तक कि पत्नी नाबालिग न हो। इस मामले में हाईकोर्ट ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने को लेकर पक्ष रखने के लिए बार-बार समय मांगने पर केंद्र सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई थी। कोर्ट ने केंद्र को समय देने से इनकार करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने मैरिटल रेप के एक मामले में पति पर केस दर्ज करने का आदेश दिया। राज्य सरकार ने भी इस मामले में पति पर पत्नी के साथ दुष्कर्म करने के आरोप में केस दर्ज करने का समर्थन किया। राज्य सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया है। इसमें कहा गया है कि केस दर्ज होना चाहिए। हाईकोर्ट ने पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध बनाने के लिए आईपीसी की धारा 376 के तहत पति के खिलाफ लगाए गए आरोपों को बरकरार रखा था। वैवाहिक दुष्कर्म अपवाद की संवैधानिकता पर काेई टिप्पणी किए बिना हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले के तथ्यों और हालात में इस तरह के यौन हमले/दुष्कर्म के लिए पति को पूरी छूट नहीं दी जा सकती है।
पिछले साल 16 सितंबर को मैरिटल रेप अपराध है या नहीं? इस सवाल पर सुप्रीम कोर्ट परीक्षण करने को तैयार हो गया था। इस मामले में कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा था। हमारे देश के कानून में फिलहाल मैरिटल रेप कानूनी तौर पर अपराध नहीं है। इसे अपराध घोषित करने की मांग कई संगठनों द्वारा लंबे वक्त से की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट में भी मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की मांग की गई है।