छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पिता की मर्जी के खिलाफ लिव-इन में रह रही बेटी को भरण पोषण देने संबंधी एक मामले में बड़ा आदेश दिया है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यदि कोई लड़की अपने माता-पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर प्रेमी के साथ लिव-इन में रहती है तो उसे अपने पिता से भरण-पोषण मांगने का कोई हक़ नहीं है। हाईकोर्ट ने रायपुर के फेमिली कोर्ट के उस आदेश को भी खारिज कर दिया जिसमें पिता को हर महीने 5000 रुपये अपने बेटी के खाते में जमा करने के निर्देश दिए गए थे।
कोर्ट ने कहा, “आदेश से यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी ने बालिग है और बीए फाइनल ईयर में है। सीआरपीसी की धारा 125 के तहत बेटी को दिखाना होगा कि वह खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है या बालिग नहीं हुई है। वर्तमान मामले में, ऐसा कोई दावा नहीं किया गया है। इसलिए प्रतिवादी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण हकदार नहीं है। हालांकि, हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम, 1956 की धारा 20 (3) भरण-पोषण के अधिकारों को मान्यता देती है। यह एक हिंदू का वैधानिक दायित्व है कि वह अपनी बेटी का भरण-पोषण करे, जो अविवाहित है और जो अपनी खुद की अन्य संपत्ति की कमाई से खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है।”
लड़की के पिता ने फैमिली कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में इस आधार पर चुनौती दी थी कि उनकी बेटी बिना किसी कारण के उनसे अलग रह रही है, और ऐसा तब है जबकि परिवार के सदस्य उसे रखने के लिए तैयार थे, लेकिन वह साथ रहने के लिए तैयार नहीं थी। फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए, पिता के वकील ने कहा कि चूंकि ऐसा कोई दावा नहीं है कि प्रतिवादी किसी भी शारीरिक या मानसिक असामान्यता से पीड़ित है या खुद के भरण-पोषण में असमर्थ है, इसलिए, CRPC की धारा 125 के तहत वह भरण-पोषण की हकदार नहीं है।
इससे पहले रायपुर की फेमिली कोर्ट में लड़की ने भरण पोषण की याचिका लगाई थी। इसमें उसने कहा था कि वह अपने पिता के पास नहीं रहती है। लेकिन कोर्ट में लड़की के पिता ने बताया कि वह उनकी मर्जी के खिलाफ अपने प्रेमी के साथ लिव इन में रहती है। ऐसे में उससे उनका कोई संबंध नहीं है। इस पर फेमिली कोर्ट ने पिता के जवाब को खारिज कर दिया और उन्हें निर्देश दिया कि वह बतौर भरण पोषण लड़की को हर महीने पांच हजार रुपये का भुगतान करें। इसी आदेश के खिलाफ लड़की के पिता ने हाई कोर्ट में अपील की थी।
लड़की के पिता ने हाईकोर्ट में भी वही बात कही जो उन्होंने फॅमिली कोर्ट में कही थी। उन्होंने कहा कि शादी के बाद वैसे भी लड़की के भरण पोषण का अधिकार पति का होता है तो इस मामले में भी लड़की उनकी मर्जी के खिलाफ जाकर अपने प्रेमी के साथ लिव इन में रह रही है। ऐसे में उसे भी भरण पोषण के अधिकार से वंचित कर देना चाहिए। हाईकोर्ट ने लड़की के पिता के इस तर्क को मानते हुए फेमिली कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया।