साल 2002 में गुजरात दंगों के दौरान गैंगरेप और हत्या मामले में 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई को बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए पुनर्विचार याचिका दायर की है। बिलकिस बानो ने शीर्ष अदालत के द्वारा दिए गए उस आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की है, जिसमें रिहाई का फैसला गुजरात सरकार पर छोड़ दिया गया था। इसके अलावा गुजरात सरकार द्वारा 11 दोषियों को रिहा करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में बिल्किस बानो की ओर से दायर की गई है। बिलकिस ने अपनी याचिका में सभी दोषियों को फिर से जेल भेजने की मांग की है।
Bilkis Bano approaches Supreme Court, challenging the premature release of 11 convicts, who had gang-raped her & murdered her family members during the 2002 Godhra riots.Bano filed a review plea against the May order of SC which allowed Gujarat govt to apply 1992 Remission Policy pic.twitter.com/JKfXf55gr9
— ANI (@ANI) November 30, 2022
13 मई के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गैंगरेप के दोषियों की रिहाई में 1992 में बने नियम लागू होंगे और इसी आधार पर 11 दोषियों की रिहाई हुई थी। उम्र कैद की सजा काट रहे इन दोषियों को इसी साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था। बिलकिस बानो के वकील ने मामले की लिस्टिंग के लिए CJI डी वाई चंद्रचूड़ के समक्ष उल्लेख किया। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि वह इस मुद्दे की जांच करेंगे कि क्या दोनों याचिकाओं को एक साथ सुना जा सकता है और क्या उन्हें एक ही बेंच के सामने सुना जा सकता है?।
Bilkis Banos' lawyer mentioned the matter before Chief Justice of India DY Chandrachud for listing. CJI said he will examine the issue whether both pleas can be heard together and if they can be heard before the same bench.
— ANI (@ANI) November 30, 2022
बिलकिस बानो ने पुनर्विचार याचिका में कहा है कि इस मामले में रिहा करने की नीति महाराष्ट्र सरकार की लागू होनी चाहिए, ना कि गुजरात सरकार की। इसके पीछे का तर्क ये दिया गया है कि, कानून के मुताबिक, समुचित सरकार का मतलब इस मामले में महाराष्ट्र सरकार है ना कि गुजरात सरकार, क्योंकि महाराष्ट्र में ही यह मामला सुना गया था और सजा भी यहीं सुनाई गई थी।
मालूम हो कि इस मामले में सीबीआई कोर्ट ने 11 लोगों को दोषी ठहराया था और उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसमें से एक दोषी ने गुजरात हाईकोर्ट में अपील कर रिमिशन पॉलिसी के तहत रिहाई की मांग की थी। गुजरात हाईकोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था। उसके बाद दोषी ने गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में गुजरात सरकार फैसला करे। कोर्ट के निर्देश पर ही गुजरात सरकार ने रिहाई पर फैसला लेने के लिए एक कमेटी बनाई। कमेटी की सिफारिश पर गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को रिहा करने का फैसला किया।
बिलकिस बानो केस में रिहाई के खिलाफ कई याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं। सभी याचिकाओं में दोषियों की रिहाई के गुजरात सरकार के आदेश को तत्काल रद्द कर दोषियों को जेल भेजने की मांग की गई है। एक मुख्य याचिका के अलावा 21 अक्तूबर को एक महिला संगठन की ओर से भी इस मामले में याचिका दायर की गई थी। जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने दोनों याचिकाओं को एक साथ जोड़ दी थी।सुप्रीम कोर्ट ‘नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमन’ द्वारा दायर एक याचिका पर पहले से ही सुनवाई कर रही थी जिसमे सजा की छूट और मामले में दोषियों की रिहाई को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 18 अक्तूबर की सुनवाई के दौरान कहा था कि सजा में छूट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुजरात सरकार का जवाब बहुत वजनदार है। गुजरात सरकार द्वारा दाखिल जवाब में कई फैसलों का जिक्र किया गया है, लेकिन तथ्यात्मक बयान गायब हैं। इन याचिकाओं पर पर सुनवाई जारी है।
क्या है ये मामला?
27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस ट्रैन के एक कोच को जला दिया गया था जिसमे कोच में बैठे 59 कारसेवकों की मौत हो गई थी। इसके बाद गुजरात में दंगे भड़क गए। दंगों की आग से बचने के लिए बिलकिस बानो और उनका परिवार जहां छिपा था, वहां 3 मार्च 2002 को 20-30 लोगों की भीड़ ने तलवार और लाठियों से हमला कर दिया। भीड़ ने बिलकिस बानो के साथ बलात्कार किया। उस समय बिलकिस 5 महीने की गर्भवती थीं। इतना ही नहीं, उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या भी कर दी थी. बाकी 6 सदस्य वहां से भाग गए थे।
बता दें कि दोषियों की रिहाई को लेकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने बीजेपी सरकार और प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोलै था। राहुल ने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी ने महिलाओं के साथ सिर्फ छल किया है। असदुद्दीन ओवैसी ने इसको लेकर कहा था कि पीड़ित अगर मुसलिम है तो बीजेपी के लिए कोई भी अपराध गंभीर नहीं है।