गुजरात के मोरबी पुल हादसे को लेकर एक बड़ा खुलासा हुआ है। मंगलवार को मोरबी के लोकल कोर्ट में फोरेंसिक जांच रिपोर्ट (एफएसएल) सौंपी गई, जिसमें कहा गया है कि पुल के मरम्मत और प्रबंधन का काम ओरेवा ग्रुप ने अपने हाथों में लिया था जिसमे उनकी तरफ से भारी चूक हुई और इस पुल की भार सहने की क्षमता का बिना आकलन किये म अनमाना ढंग से क्षमता से बहुत अधिक टिकट जारी किये गए।
इस हादसे के आठ आरोपियों की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान लोकल कोर्ट में फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) रिपोर्ट सौंपी गई। रिपोर्ट के मुताबिक़ ओरेवा ग्रुप, जिसके पास पुल के रखरखाव, संचालन और सुरक्षा की जिम्मेदारी थी, उसने घटना के दिन यानी 30 अक्टूबर को 3165 टिकट जारी किए थे। सरकारी वकील ने कोर्ट में बताया कि हालांकि सभी टिकटों को बेचा नहीं गया था, लेकिन कंपनी ने पुल की भार वहन क्षमता का आकलन नहीं किया था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि, ‘पुल के केबल जंग खा गए थे, इसके एंकर टूट गए थे और केबल को एंकर से जोड़ने वाले बोल्ट भी ढीले थे। दुर्घटना के बाद प्रारंभिक जांच में यह बात सामने आई कि पुराने केबल नई भारी फर्श का भार नहीं उठा सकते थे। ओरेवा द्वारा रखे गए गार्ड और टिकट कलेक्टर दिहाड़ी मजदूर थे, जिन्हें भीड़ प्रबंधन में कोई विशेषज्ञता नहीं थी। गार्डों को सुरक्षा प्रोटोकॉल या पुल पर कितने लोगों को अनुमति दी जानी चाहिए, के बारे में कभी नहीं बताया गया था। मोरबी नगर निगम ने मेंटेनेंस वर्क के लिए ओरेवा कंपनी से करार किया था, जिसमें ब्रिज के प्लेटफॉर्म के अलावा रिपेयर से लेकर केबल का मेंटेनेंस, नट-बोल्ट और पेंच सभी की देखरेख शामिल थी’। सरकारी वकील विजय जानी ने कहा कि ओरेवा सुरक्षा के लिए जिम्मेदार था, लेकिन उन्होंने दुर्घटना की स्थिति में लोगों को बचाने के लिए कोई लाइफगार्ड या नाव तक नहीं रखी।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि, ‘मच्छू नदी पर बना पुल दोबारा खोले जाने के चार दिन बाद ही ढह गया। कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार इसे आठ से 12 महीनों के लिए बंद रखा जाना था, लेकिन सात महीने के बाद – 26 अक्टूबर, गुजराती नव वर्ष पर, मोरबी नगर निगम द्वारा किसी भी फिटनेस प्रमाण पत्र के बिना फिर से खोल दिया गया’। मोरबी नगरपालिका ने गुजरात उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि पुल को कंपनी द्वारा नगर निकाय की बिना किसी पूर्व स्वीकृति के और किए गए मरम्मत कार्य के बारे में सूचित किए बिना फिर से खोल दिया गया था।
इस हादसे के बाद गिरफ्तार लोगों में ओरेवा समूह के प्रबंधक दीपक पारेख और दिनेश दवे, व मरम्मत करने वाले ठेकेदार प्रकाश परमार, देव प्रकाश सॉल्यूशन के मालिक देवांग परमार शामिल हैं, जिन्हें ओरेवा ने पुल की मरम्मत कार्य के लिए रखा था। सरकारी वकील विजय जानी ने बताया, “देव प्रकाश सॉल्यूशन ने स्वीकार किया है कि उसने केवल फर्श बदला. एफएसएल रिपोर्ट के मुताबिक, धातु के नए फर्श ने पुल का वजन बढ़ा दिया। इसके अलावा, मरम्मत करने वाले दोनों ठेकेदार इस तरह की मरम्मत और नवीनीकरण कार्य करने के लिए योग्य नहीं थे।”
बीते दिनों गुजरात हाईकोर्ट में मोरबी नगर निगम ने हादसे की जिम्मेदारी ली थी और कोर्ट में अपने दिए हलफनामे में कहा था कि पुल को खोला नहीं जाना चाहिए था। इस मामले में एक अधिकारी को निलंबित किया गया है। हलफनामा दायर करने में देरी से पहले की दो बार की सुनवाई में हाईकोर्ट ने नगर निगम को खूब फटकार लगाई गई थी। अदालत ने अपने आदेश में कहा था, “ऐसा लगता है कि इस संबंध में कोई टेंडर जारी ही नहीं किया गया। अदालत ने पूछा कि जून 2017 के बाद कंपनी किस आधार पर पुल का संचालन कर रही थी? जब अनुबंध (2008 में नौ साल के लिए हस्ताक्षरित) को नवीनीकृत नहीं किया गया था तो मार्च 2022 में 15 साल के लिए एक नए समझौते पर कैसे हस्ताक्षर किए गए? गुजरात हाईकोर्ट ने खुद इस त्रासदी को संज्ञान लेते हुए छह विभागों से जवाब मांगा था।
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने मोरबी पुल हादसे कोबड़ी त्रासदी करार देते हुए सोमवार (21 नवंबर) को गुजरात हाईकोर्ट से इस मामले में जांच और पुनर्वास तथा पीड़ितों को सम्मानजनक मुआवजा दिलाने समेत अन्य पहलुओं की समय-समय पर निगरानी करने को कहा है। CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने इन दलीलों को भी खारिज कर दिया कि मोरबी जैसे हादसे फिर नहीं हों, इसके लिए एक जांच आयोग गठित किया जाना चाहिए। बेंच ने कहा कि कई बार, आयोग मामले को केवल ठंडे बस्ते में डाल देता है। कई बार, न्यायाधीशों के लिए कार्यवाही को संभालना सही होता है। हमने इसे खुद किया होता, लेकिन अब गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पहले ही हादसे का स्वत: संज्ञान लिया है और वे इसे देख रहे हैं।
बता दें कि मोरबी का पुल 30 अक्टूबर को टूट गया था और इस दर्दनाक हादसे में महिलाओं, बच्चों सहित 141 लोगों की जान चली गई थी।