Gujarat Morbi Bridge Collapse Update: मेंटिनेंस कंपनी ‘ओरेवा’ की वजह से गई इतने लोगों की जान ! दीवार घड़ी बनाने वाली इस कंपनी को कैसे मिला मोरबी पुल के रखरखाव का काम?
गुजरात के मोरबी में हुए दर्दनाक पुल हादसे में जैसे जैसे ज्यादा जानकारी सामने आ रही है उससे लगता है कि इस घटना से जुड़े मामलों में अलग अलग स्तर पर लापरवाही बरती गई है।
सबसे पहले नाम आता है उस ‘ओरेवा’ (अजंता मेन्युफेक्चरिंग प्राइवेट लिमिटेड) कंपनी का जिसे इस पुल के रखरखाव की जिम्मेदारी दी गई थी। ओरेवा, ओधावजी राघवजी पटेल द्वारा स्थापित कंपनी है। ओरेवा कंपनी सीएफएल बल्ब, दीवार घड़ी, बिजली के उपकरण, बिजली के लैम्प, कैलकुलेटर, चीनी मिट्टी, ई-बाइक और मच्छरमार रैकेट बनाती है। ओरेवा ट्रस्ट कई सामाजिक कार्य भी मोरबी जिले में करता है। ओरेवा मोरबी में एक एनजीओ के रूप में भी जाना जाता है जो गरीब लड़कियों की शादी वगैरह भी कराता है। ओरेवा के और भी बिजनेस गुजरात में अलग अलग जगहों पर हैं। इस सबमें सबसे बड़ी बात ये है कि ये ग्रुप सत्ता के नजदीक है मतलब इस ट्रस्ट या कंपनी के मालिकों के सीधे संबंध बीजेपी और आरएसएस नेताओं से हैं। और शायद यही वजह है कि इस मामले में सरकारी लीपापोती जम के की जा रही है।
मोरबी नगर पालिका ने केबल पुल का ठेका 15 वर्षों के लिए ओरेवा ट्रस्ट को दिया था। सवाल यह है कि एक ऐसी कंपनी जो ‘निर्माण कारोबार’ में है ही नहीं, उस कंपनी को मरम्मत का ठेका मिला कैसे और वो भी 15 साल के लिए? ये सत्ता में बैठे लोगों के बिना संभव ही नहीं है। मोरबी के लोग बताते हैं कि माछु नदी पर बना केबल पुल जब गिरा, उससे पहले कुछ लोगों ने चेतावनी दी थी, लेकिन पुल की मरम्मत करने वाले ओरेवा ट्रस्ट ठेकेदार के कर्मचारियों ने उन चेतावनियों की अनदेखी की।
‘ओरेवा’ कंपनी की वेबसाइट क्या कहती है-
1. ओरेवा ग्रुप में 6,000 से अधिक लोग काम करते हैं लेकिन उसने इनके दवारा किसी तरह के निर्माण कारोबार का कोई उल्लेख नहीं है।
2. ये कंपनी घरेलू और बिजली के उपकरण, बिजली के लैम्प, कैलकुलेटर, चीनी मिट्टी के उत्पाद और ई-बाइक बनाता है।
3. कंपनी ने दीवार घड़ी बनाने से शुरुआत करने के बाद कई क्षेत्रों में अपना कारोबार फैलाया।
4. ओरेवा ग्रुप देशभर में 55,000 साझेदारों के जरिए अपने उत्पादों को बेचता है।
5. गुजरात के कच्छ में समाखियाली में उसका भारत का सबसे बड़ा विनिर्माण संयंत्र है जो 200 एकड़ से भी अधिक में फैला हुआ है।
ओरेवा कंपनी ने दिवाली के बाद वाले वीकेंड पर कमाई के लालच में इस पुल को बिना फिटनेस जांच के ही खोल दिया. कंपनी ने पुल पर जाने के लिए 17 रुपये का पास जारी किया। लोगों को इस पुल पर जाने के लिए ओरेवा कंपनी के कर्मचारियों से 17 रुपये का टिकट खरीदना पड़ता था। इसका मतलब साफ़ है कि ओरेवा कंपनी ने जितने टिकट बेचे, उसका उनको पता था और पुल पर इतनी भीड़ एक साथ जमा ना हो, इसका नियंत्रण भी उनके हाथ था। जितने टिकट बेचे गए, उतने लोग पुल पर पहुंचे। पुलिस ने बताया था कि हादसे के समय पुल पर 400 लोग थे। सवाल है कि मोरबी के पुल पर 400 से अधिक लोग कैसे पहुंच गए?
अब बात करते हैं इस पुल को बिना फिटनेस सार्टिफिकेट के खोले जाने को लेकर। मजे की बात तो यह है कि मोरबी नगर निगम के अधिकारी संदीप सिंह जाला ने बताया कि निगम से कंपनी को ना तो फिटनेस सार्टिफिकेट दिया गया और ना ही उसे शुरू करने के लिए आदेश ही दिया गया। तो क्या ये सवाल लाजमी नहीं है कि आखिर कोई ठेकेदार इतना प्रभावशाली कैसे हो सकता है कि वो सरकारी एजेंसी या स्थानीय प्रशासन की परवाह ही न करे और पुल को खोल दे? क्या सत्ताधारी पार्टी बीजेपी से संबंधों के कारण नगरपालिका के अधिकारियों ने ओरेवा ठेकेदार को खुली छूट दे रखी थी? क्या सिर्फ इतना कह भर देने से उन अधिकारियों की जिम्मेदारी खत्म हो जाती है, जो इसे अनुमति देने के सीधे जिम्मेदार थे?
पुलिस ने 9 लोगों को लिया है हिरासत में, पूछताछ जारी-
केबल पुल का रखरखाव करने वाली एजेंसी ‘ओरेवा’ के खिलाफ 304, 308 और 114 के तहत क्रिमिनल केस दर्ज किया गया है और जांच शुरू कर दी गई है। हादसे के बाद 9 लोगों को हिरासत में लिया गया है, जिनसे पूछताछ की जा रही है।