भारत के आठ बरस से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी यानि भाजपा की अगुवाई वाले गठबंधन, नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस यानि एनडीए ने राष्ट्रपति चुनाव के बाद उपराष्ट्रपति चुनाव भी जीत लिया।संसद के दोनो सदनों,राज्यसभा और लोकसभा सदस्यों की वोटिंग आज शाम पाँच बजे खत्म होने के बाद एनडीए के उम्मीदवार और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे जगदीप धनकड़ ने विपक्ष की संयुक्त प्रत्याशी और कांग्रेस नेता मार्ग्रेट अल्वा को परास्त कर दिया। वह 11 अगस्त को इस पद की शपथ लेने के बाद मौजूदा
उपराष्ट्रपति मुप्पवरपु वेंकैया नायडू की जगह अपना काम संभालेंगे जिनका कार्यकाल 10 अगस्त को खत्म हो जाएगा।
धनखड़ जी को 528 और अल्वा जी को 182 वोट मिले। 15 वोट रद्द हुए। इस तरह धनखड़ जी ने अल्वा जी को 346 मतों के अंतर से हराया। लोकसभा महासचिव उत्पल कुमार ने प्रेस कांफ्रेंस में चुनाव परिणाम की औपचारिक घोषणा की।
धनखड़ जी के उपराष्ट्रपति बनने पर मोदी जी, गृह मंत्री अमित शाह समेत कई नेताओं ने बधाई दी। उनके उपराष्ट्रपति चुने जाने पर दिल्ली में भाजपा मुख्यालय पर जश्न के माहौल में ढोल, नगाड़ों के साथ पार्टी कार्यकर्ता नाचते नजर आए।
उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए कुल 780 में से 725 सांसदों ने अपने मताधिकार का उपयोग किया। कुल 55 सांसदों ने वोट नहीं दिए टीएमसी के फरमान का पालन कर उसके 34 सांसदों, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और शिवसेना के दो -दो सांसदों और इसी राज्य की पूर्व
मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के एक सांसद ने वोट नहीं दिए। शाम 6 बजे से काउंटिंग शुरू हुई।
टीएमसी ने इस चुनाव में भाग नहीं लेने की घोषणा की थी। पर उसके दो सांसदों शिशिर अधिकारी और दिव्येंदु अधिकारी ने वोटिंग में हिस्सा लिया जो धनकड़ जी के पक्ष में गए लगते हैं। भाजपा के दो सांसदों- सनी देओल और संजय धोत्रे ने स्वास्थ्य कारणों से वोटिंग में भाग नहीं लिया। कांग्रेस नेता और राज्यसभा सदस्य अभिषेक मनु सिंघवी कोरोना वायरस से संक्रमित होने
के कारण वोट देने पीपीई किट पहनकर संसद भवन पहुंचे।
मोदी जी ने सबसे पहले संसद भवन पहुंचकर वोट डाला। पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस नेता डॉक्टर मनमोहन सिंह ने व्हील चेयर में पहुंचकर वोट डाला। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी , पार्टी नेता राहुल गांधी समेत उसके सभी सांसदों ने वोट दिए। ओडीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के बीजू जनता दल यानि बीजेडी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने भी धनखड़ जी का समर्थन किया। इस चुनाव में विपक्ष पर एनडीए का सत्तारूढ़ खेमा शुरू से भारी था। एनडीए ने इस चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार विपक्षी पार्टियों के साथ आम सहमति से खड़ा करने के बजाय एकतरफा कदम उठा 16 जुलाई को धनखड़ जी को अपना उम्मीदवार बनाने का ऐलान कर दिया था। कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के उम्मीदवार का जीतना नामुमकिन था।
जगदीप धनखड़
राजस्थान के झुंझुनू जिले में किठाना गांव में कृषि परिवार में जन्मे जगदीप धनखड़ वकील रहे हैं और उसी पेशे से करीब 35 बरस पहले सियासत में आए। वह 1986- 87 में जयपुर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष थे। उन्हें दिवंगत उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल के संपर्क में होने से 1989 में
सियासत शुरू करने का मौका मिला। तब लोकसभा चुनाव में राजस्थान की झुंझुनू सीट से धनखड़ जी बतौर जनता दल उम्मीदवार जीते थे। उस चुनाव के बाद केंद्र में बनी विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में देवीलाल उपप्रधानमंत्री और धनखड़
जी संसदीय कार्यमंत्री बने। वह 1993 में अजमेर जिले की किशनगढ़ सीट से जीत कर राजस्थान विधानसभा पहुंचे। उन्हें मोदी सरकार ने 2019 में पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया था।
वह राजस्थान से दूसरे उपराष्ट्रपति होंगे। राजस्थान के कई बार
मुख्यमंत्री रहे भैरों सिंह शेखावत 2002 के उपराष्ट्रपति चुनाव में बतौर एनडीए उम्मीदवार जीते थे। धनखड़ जी के अपनी नामजदगी का पर्चा दाखिल करने के मौके पर मोदी जी और कई आला नेता मौजूद थे। धनखड़ जी के नामांकन से पहले ही तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल
पद से उनका इस्तीफा मंजूर कर वहां के राज्यपाल का अतिरिक्त भार मणिपुर के राज्यपाल एल गणेशन को दिया।धनखड़ जी ने अपना पर्चा दाखिल करने से पहले निवर्तमान उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू से मुलाकात की थी। वह उपराष्ट्रपति निवास में नायडू जी से उनकी मेजबानी में राज्यपालों और उपराज्यपालों के भोज में मिले। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी इस भोज
में थे।
कभी सोशलिस्ट रहे धनखड़ जी को भाजपा मुखीयले पर मोदी जी की मौजूदगी में पार्टी संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद उम्मीदवार बनाने का एलान किया गया। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड़ड़ा ने इस एलान में धनखड़ जी को किसान पुत्र बताया
और कहा कि उन्होंने बंगाल में जनता के राज्यपाल के रूप में काम किया है। जेपी नड़ड़ा के मुताबिक भाजपा को पूरा भरोसा था कि इस बार के भी उपराष्ट्रपति चुनाव में उसके ही उम्मीदवार की जीत होगी।भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक से पहले मोदी जी ने धनखड़ जी समेत कई राज्यपालों से बातचीत की थी। इनमें एल गणेशन के अलावा मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगू भाई पटेल
भी थे। यह जानकारी प्रधानमंत्री ऑफिस (पीएमओ) के एक ट्वीट में दी गई।
मोदी जी से मिलने के पहले धनखड़ जी ने अमित शाह से मुलाकात की थी।
मारग्रेट अल्वा
उपराष्ट्रपति चुनाव के एनडीए उम्मीदवार की मुनादी के अगले ही दिन लगभग सभी विपक्षी पार्टियों ने भी अपने उम्मीदवार का ऐलान कर दिया। ये ऐलान पूर्व रक्षा मंत्री और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी यानि एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने की, जो कई बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे है। इस ऐलान से पहले दिल्ली में शरद पवार की कोठी पर 17 विपक्षी पार्टियों की मीटिंग हुई।
मार्गरेट अल्वा राजस्थान, गोवा और उत्तराखंड की राज्यपाल रही है। वह मंगलुरु (कर्नाटक) की हैं और लंबे अरसे से कांग्रेस की नेता रहीं हैं। रोमन कैथोलिक फेमिली में 14 अप्रैल 1942 को पैदा हुई अल्वा की उम्र 80 साल है। उनकी पढ़ाई बेंगलुरु में हुई। उनका विवाह 24 मई 1964 को निरंजन अल्वा से हुआ भारत के स्वतंत्रता सेनानी रहे और सांसद बतौर पहली एमपी जोड़ी जोकिम अल्वा और वायलेट अल्वा के बेटे हैं। उनकी एक बेटी और तीन बेटे है। वह कांग्रेस अध्यक्ष और यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस यानि यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी की करीबी हैं। कहते है इसलिए भी उनको उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी दलों का उम्मीदवार बनाया गया। अल्वा पहली बार 1974 में राज्यसभा मेंबर चुनी गईं थी। उन्होंने इस सदन में छह-छह साल
के लगातार चार टर्म पूरे किए। इसके बाद वह 1999 में लोकसभा सदस्य चुनी गईं। उन्हें केंद्र सरकार में पहली बार 1984 में मंत्री बनाया गया। अगले बरस यानि 2023 में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हैं। अभी वहाँ भाजपा की सरकार है। ऐसे में उपराष्ट्रपति चुनाव में मार्गरेट अल्वा के उम्मीदवार होने से कांग्रेस को कर्नाटक को फायदा होने का आँकलन किया गया जहां ईसाई वोटर करीब दो फीसद हैं। उनकी उम्मीदवारी से मुस्लिम और दूसरे अल्पसंख्यक तबकों का भी कांग्रेस पर भरोसा बढ़ने की उम्मीद की गई। अगले साल ही कर्नाटक के साथ त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम और तेलंगाना में भी चुनाव है। आंध्र प्रदेश, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और महाराष्ट्र में भी
2024 में चुनाव है। इन सभी राज्यों में ईसाई वोटर बड़ी तादाद में है। बरस 2011 के पिछली जनगणना के मुताबिक हिंदुस्तान में ईसाईयों की आबादी 2.30 फीसद है। देश में हिंदू और मुसलमान के बाद सबसे ज्यादा आबादी ईसाईयों की ही है।
अल्वा जी की उम्मीदवारी का ऐलान करते हुए शरद पवार ने कुछ सफाई दी थी। उनके मुताबिक उन्होंने ममता बनर्जी से बात करने की कोशिश की जो नहीं हो सकी। उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी यानि आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल से भी बात करने की कोशिश की जो नहीं हो सकी। पवार साहब
ने कहा कि केजरीवाल जी ने राष्ट्रपति चुनाव में संयुक्त विपक्ष के
उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन करने का एलान किया था और उम्मीद है उनकी पार्टी उपराष्ट्रपति चुनाव में अल्वा जी को समर्थन देगी।
अल्वा जी ने 19 जुलाई को नामजदगी का पर्चा दाखिल किया और एक ट्वीट में लिखा वह विपक्ष के नेताओं की शुक्रगुजार हैं जिन्होंने उन पर विश्वास किया है। मुंबई में शिवसेना नेता और राज्यसभा सदस्य संजय राउत ने ईडी द्वारा उन्हें गिरफ्तार करने से पहले कहा था उनकी पार्टी ने राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू का आदिवासी महिला होने के नाते समर्थन दिया लेकिन वह उपराष्ट्रपति चुनाव में अल्वा जी को ही वोट देगी।
वोटिंग काउंटिंग
उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए अधिसूचना पांच जुलाई को जारी हुई थी। छह जुलाई को नामजदगी के पर्चे दाखिल करने का समय शुरू हो गया। ये पर्चे 19 जुलाई तक दाखिल किए जा सकते थे। उनकी जांच 20 जुलाई को हुई। पर्चे 22 जुलाई तक वापस लिए जाने थे। वोटिंग की दरकार होने पर आज छह अगस्त को सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक मतदान हुआ। आज ही काउंटिंग पूरी कर परिणाम घोषित कर दिया गया। इस चुनाव में सांसदों को ही जटिल आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति से वोट डालने का अधिकार था। हर संसद एक ही वोट डाल सकता था। एनडीए को दोनों सदनों में स्पष्ट बहुमत हसिल है इसलिए उसके प्रत्याशी की जीत निश्चित थी। इसके मद्देनजर लगता था कि विपक्षी पार्टियां शायद ही अपना उम्मीदवार खड़ा करने की सोचे। लेकिन जब कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए और ममता बनर्जी की
टीमसी समेत दूसरी विपक्षी पार्टियों ने राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए
उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ यशवंत सिंह को खड़ा कर दिया तो उन सबने उपराष्ट्रपति चुनाव भी निर्विरोध नहीं होने देने का फैसला किया। चुनाव चर्चा के पिछले अंकों में हम विस्तार से यह खबर दे चुके हैं कि राष्ट्रपति चुनाव के निर्वाचक मण्डल में एनडीए को अपने दम पर बहुमत प्राप्त नहीं था। उस निर्वाचक मण्डल में निर्वाचित सांसदों के अलावा देश के सभी 29 राज्यों के विधानमण्डल के सदस्य और मौजूदा 3 केंद्र शासित प्रदेशों के विधायक वोटर थे और उसमें विपक्षी दलों को करीब दो फीसद की बढ़त प्राप्त थी। द्रौपदी मुर्मू ओड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के बीजू जनता दल यानि बीजेडी और भाजपा की कुछ बरस पहले बनी गठबंधन सरकार में मंत्री रहने के अलावा झारखंड की राज्यपाल भी रह चुकी है। संयुक्त विपक्ष ने भारतीय प्रशासनिक सेवा यानि आईएएस के पूर्व अधिकारी और केंद्र में तीन माह टिकी चंद्रशेखर सरकार और दो बार बनी अटल बिहारी वाजपेई सरकार में वित्त और फिर विदेश मंत्री रहे थे। बाद में वह भाजपा छोड़ कर टीएमसी में आकर उसके उपाध्यक्ष हो गए। उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए टीएमसी से इस्तीफा दे दिया। राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग 18 जुलाई को हुई और
21 जुलाई को उसका रिजल्ट आ गया। सिन्हा जी हार गए और मुर्मू जी जीत गईं।
उम्मीदवार
सियासी हल्कों में चर्चा थी कि मोदी जी उपराष्ट्रपति चुनाव में भी
चौंकाने वाला कोई ऐसा फैसला लेंगे जो पहले के उपराष्ट्रपति चुनाव में कभी नहीं हुआ हो। चर्चा थी मोदी जी राष्ट्रपति पद के लिए पहली बार आदिवासी महिला को उम्मीदवार बनाने के बाद किसी महिला को ही उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाने की सोच रहे थे। इस सिलसिले में 16 जुलाई 2019 से छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके के नाम के कयास लगे थे जो भाजपा की राज्यसभा मेम्बर रही है। अभी तक कोई महिला उपराष्ट्रपति नहीं चुनी गई हैं। इसके भी कयास लगे कि मोदी जी उपराष्ट्रपति चुनाव में किसी सिख को अपना उम्मीदवार तय करें। देश में मुस्लिम उपराष्ट्रपति तो हुए हैं लेकिन इस पद पर कभी कोई सिख नहीं रहा है।
राष्ट्रपति चुनाव में मनोनीत सदस्य वोट नहीं डाल सकते हैं। लेकिन वे उपराष्ट्रपति चुनाव में वोट दे सकते हैं। उपराष्ट्रपति चुनाव में दोनों सदनों के जो 780 निर्वाचक वोट डाल सकते थे, जिनमें राज्यसभा के चुने हुए 233 सदस्य और 12 मनोनीत सदस्यों के अलावा लोकसभा के चुने हुए 543 सदस्य
और दो मनोनीत सदस्य भी हैं। उपराष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए भारत का पैदायशी नागरिक होना जरूरी है। उम्मीदवार की उम्र कम से कम 35 बरस की होनी चाहिए और वह राज्यसभा के लिए चुने जाने की शर्तें भी पूरा करता हो। उसे किसी राज्य या केंद्र शासित क्षेत्र का वोटर होना भी अनिवार्य है। जो कोई भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अंदर या स्थानीय निकाय कर्मी के बतौर लाभ के पोस्ट पर हो वह उम्मीदवार नहीं हो सकता। उम्मीदवार को संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होना चाहिए। अगर वह किसी सदन का सदस्य है तो उसे उपराष्ट्रपति चुने जाने
के बाद अपनी सदस्यता छोड़नी पड़ेगी।
नायडू
भारत के मौजूदा उपराष्ट्रपति नायडू का जन्म 1 जुलाई 1949 को आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले के चावटपलेम में एक कम्मू यानि कायस्थ परिवार में हुआ था। उनका विवाह 1970 में उषा से हुआ। उनकी एक बेटी , दीपा वेंकट और एक बेटा , हर्षवर्धन नायडू हैं। नायडू को एनडीए ने 17 जुलाई 2017 को पिछले
उपराष्ट्रपति पद चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया। उन्होंने 5 अगस्त 2017 को हुई वोटिंग में यूपीए उम्मीदवार के बतौर महात्मा गांधी के प्रपौत्र गोपालकृष्ण गांधी को हराया था। उन्होंने भारत के तेरहवें उपराष्ट्रपति के रूप में 11 अगस्त 2017 को यह पोस्ट संभाला था। उन्होंने सियासी और डिप्लोमेटिक स्टडीज में बीए की तालीम हासिल कर आंध्र यूनिवर्सिटी (विशाखापट्टनम) से कानून की डिग्री पाई । वह 1974 में आंध्र यूनिवर्सिटी
स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष चुने गए थे। उन्होने जयप्रकाश नारायण यानि जेपी से प्रभावित होकर कांग्रेस की इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री काल में 25 जून 1975 को लागू इंटरनल इमरजेंसी के खिलाफ आंदोलनों में हिस्सा लिया और जेल भी गए। वह 2002 से 2004 तक बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। वह
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री रहे और नरेंद्र मोदी सरकार में शहरी विकास, आवास और संसदीय कार्य मंत्री रहे। वह दो बार 1978 और 1985 में आंध्र प्रदेश विधानसभा के मेंबर रहे। वह 1980-1985 में आंध्र
प्रदेश भाजपा विधायक दल के नेता, 1988-1993 में आंध्र प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष और 1998 के बाद कर्नाटक से राज्यसभा के तीन बार सदस्य रहे। नायडू अपनी मातृभाषा तेलुगु के साथ ही हिन्दी और अंग्रेजी में बोलते हैं। अगस्त 2017 में उनकी एक किताब ‘ टायरलेस वॉयस रिलेंटलेस जर्नी ‘ रिलीज
हुई थी। फरवरी 2018 में उनकी किताब ‘मूविंग ऑन मूविंग फॉरवर्ड, वन ईयर इन ऑफिस ‘ छपी थी। अगस्त 2019 में उनकी किताब ‘लिस्निंग, लर्निग एंड लीडिंग’ छपी।
उपराष्ट्रपति राज्यसभा सभापति भी
भारत में राष्ट्रपति के बाद उपराष्ट्रपति का पद दूसरा सबसे बड़ा पद है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा सभापति के तौर पर विधायी कार्यों में भी हिस्सा लेते हैं। वह इस पोस्ट पर होते हुए लाभ के किसी और पोस्ट पर नहीं रह सकते हैं। जिस किसी काल में भारत के संविधान के आर्टिकल 65 के तहत कार्यवाहक राष्ट्रपति रहते हैं। उसके दौरान वे राज्यसभा सभापति नहीं रहेंगे। राष्ट्रपति का निधन हो जाने या इस्तीफा या पद से हटाए जाने या अन्य वजह
से वह पद खाली होने की सूरत में उपराष्ट्रपति उस तारीख तक राष्ट्रपति के बतौर काम करेंगे। राष्ट्रपति गैरहाजिर होने , बीमारी या और किसी वजह से अपने काम नहीं करने की हालात में हों तब उपराष्ट्रपति उस तारीख तक वो सभी काम करेगा जिस तारीख को राष्ट्रपति अपना पद फिर से संभालते है।
महाभियोग
उपराष्ट्रपति अपने पोस्ट को संभालने की तारीख से पांच बरस तक इस पोस्ट पर रहेंगे। उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति को अपने हस्ताक्षरयुक्त पत्र इस्तीफा दे सकता है। उपराष्ट्रपति को महाभियोग के तहत राज्यसभा के ऐसे प्रस्ताव के जरिए इस पोस्ट से हटाया जा सकता है जिसे सदन के उस समय के सदस्यों ने बहुमत से पारित किया हो और जिससे लोकसभा राजी हो।
महाभियोग का ऐसा कोई प्रस्ताव सदन में पेश करने के कम से कम चौदह दिन की नोटिस देनी जरूरी है। उपराष्ट्रपति, अपने पोस्ट के टर्म खत्म हो जाने पर भी तब तक उस पोस्ट पर रहेगा जब तक उनकी जगह और कोई नहीं आ जाता है उपराष्ट्रपति पोस्ट खाली होने से पहले ही चुनाव कर लिया जाएगा।
उपराष्ट्रपति के निधन, इस्तीफा या पोस्ट से हटाए जाने या अन्य वजह पोस्ट खाली होने पर उसे भरने के लिए चुनाव जल्द से जल्द किया जाएगा। पोस्ट भरने के लिए चुनाव में चुना गया व्यक्ति, सेक्शन 67 के तहत अपना पोस्ट संभालने की तारीख से पाँच बरस के पूरे टर्म तक उस पोस्ट पर रहने का हकदार होगा।
उपराष्ट्रपतियों की लिस्ट
1- सर्वपल्ली राधाकृष्णन 13 मई 1952 -14 मई 1957
2- जाकिर हुसैन 13 मई 1962-12 मई 1967