पिछले पाँच बरस में पंजाब की नदियों में बहुत पानी बह चुका है। इस बार मुकाबला कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, अकाली गठबंधन और भाजपा गठजोड़ के बीच लगभग चौतरफा है। बेरोज़गारी, नशा , अवैध खनन, मंहगी बिजली कई चुनावी मुद्दे हैं। फिलहाल सबसे बड़ा मुद्दा यही बन गया लगता है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कौन बैठे। इस चुनावी सीन पर एक अनार सौ बीमार की कहावत सटीक नजर आती है।
पिछले चुनाव में चुनी गई पंजाब विधानसभा के पाँच बरस का कार्यकाल 17 मार्च 2022 को खतम हो रहा है। पांच जनवरी 2022 की तारीख से अपडेट फाइनल वोटर लिस्ट प्रकाशित करने की हरी झंडी मिल गई है। निवाचन आयोग की दिल्ली में बैठक के उपरांत चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कभी भी कर दी जाएगी।संभावना है उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड , गोवा और मणिपुर की विधान सभा के साथ ही पंजाब के चुनाव कराये जाएंगे।
चुनाव कार्यक्रम की निर्वाचन आयोग की घोषणा के हिसाब से ही इन सभी के राज्यपाल अपने-अपने राज्यों की नई विधान सभा के सांविधिक गठन के लिए चुनाव की गज़ट अधिसूचना जारी करेंगे। पंजाब के मुख्य निर्वाचन अधिकारी डा. एस करुणा राजू के अनुसार चुनाव की तैयारियां पहले से शुरू हैं।
मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए लालायित सियासी नेताओं की लंबी लाइन में मौजूदा मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व सलामी बल्लेबाज और इस वक्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के अलावा विपक्षी खेमा की तरफ से चार बार मुख्यमंत्री रहे प्रकाश सिँह बादल के शिरोमणि अकाली दल ( एसएडी ) के करता धरता सुखबीर सिंह बादल , और उनकी पत्नी एवं मोदी सरकार में काबिना मंत्री रहीं हरसिमरत कौर, पूर्व मुख्यमंत्री एवं नई नवेली पार्टी, पंजाब लोक कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह ही नहीं बल्कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ( आप ) के चर्चित सांसद भगवंत सिंह मान भी है।
आम आदमी पार्टी-
आप ने किसी से गठबंधन नहीं किया है। आप के संभावित उम्मीदवारों में पंजाब पुलिस के पूर्व आईजी कुंवर विजय प्रताप सिंह, विधानसभा में विरोधी दल के नेता हरपाल सिंह चीमा, पूर्व विपक्ष नेता सुखपाल सिंह खैरा और महिला नेता बलजिंदर कौर की चर्चा है। आप ने अब तक अपने करीब 100 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है।
इस बीच , टाइम्स नाउ नवभारत ओपिनियन पोल के मुताबिक आप बहुमत से थोड़ा ही पीछे रहेगी। वह 117 सीटों की विधान सभा की 53 से 57 सीटें जीत सकती है। कांग्रेस को 41 से 45 सीटें ही मिलने का अनुमान है। अकाली गठबंधन को 17 सीटें तक मिल सकती हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी ( भाजपा ) और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की नई नवेली पार्टी के नए गठजोड़ की झोली में 3 सीटो की ही आमद हो सकती है।
पिछले चुनाव में भाजपाऔर एसएडी के गठबंधन को कांग्रेस ने हरा दिया था। कांग्रेस विधायकों के नेता चुने गए कैप्टन अमरिंदर सिंह की नई सरकार ने 17 मार्च 2017 को शपथ ली थी. कैप्टन ने कांग्रेस से पंजाब लोक कांग्रेस नामक नई पार्टी बनाकर अब भाजपा के साथ चुनावी गठबंधन कर लिया है। लेकिन भाजपा ने उन्हें या किसी और को मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदार अब तक घोषित नहीं किया है। कैप्टन अपनी ‘ शाही सीट ‘,पटियाला शहरी से चुनाव लड़ने की तैयारी में लगे हैं। भाजपा के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ गठबंधन हिंदुओं का ध्रुवीकरण करने में मदद कर सकता हैं. शहरी हिंदू , पंजाब की आबादी का करीब 38 फीसदी हैं.
भाजपा ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री सिंसुखदेव सिंह ढ़ींढसा की पार्टी ,शिरोमणि अकाली दल संयुक्त को भी अपने पाले में ले लिया है। चुनाव चर्चा के 27 अक्टूबर 2021 अंक का शीर्षक था अमित शाह की चुनावी चाणक्यगरि और ‘ शाही ‘ कैप्टन अमरिंदर सिँह की नई पार्टी के मायने। बरस बीतते-बीतते ये चुनावी चाणक्यगरि खुलकर सामने आ गई। किसान आंदोलन में जबरदस्त विरोध के बीच भाजपा को रावी, सतलुज ,व्यास आदि बड़ी नदियों के इस सूबा में विधान सभा चुनाव में कोई पानी देने वाला भी नहीं मिल रहा था। भाजपा राम भरोसे थी। ऐसे में उसे कैप्टन मिल गए।
अकालियों के साथ बसपा के मायने-
एसएड़ी और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 25 बरस पहले टूट गए अपने गठबंधन को बहाल करने की घोषणा पहले ही कर दी थी। दोनों दल , भाजपा के साथ सत्ता में रह चुके है। एसएडी ने कृषि क़ानूनों के विरोध में मोदी सरकार से बाहर आने के साथ ही भाजपा का ढाई दशक पुराना साथ पिछले वर्ष सितम्बर में छोड़ दिया था। वह 1996 के लोकसभा के बाद केंद्र में भाजपा की पहली अटल बिहारी वाजपेई सरकार में शामिल हुई थी। उसने 1997 के पंजाब चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन किया था और उसके लिए 24 सीट छोड़ शेष पर खुद लड़ती रही थी। एसएडी ने कहा है उसके और बसपा के गठजोड़ के चुनाव जीतने पर कोई दलित उपमुख्यमंत्री बनेगा।
अकाली दल गुटों में से निर्वाचन आयोग की मान्यता प्राप्त कई गुट है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार के दौरान हम ग्राउंड रिपोर्टिंग के लिए पंजाब गए थे। 1985 के राजीव – लोन्गोवाल समझौता के बाद पंजाब में हुए चुनाव में अकालियों की जीत हुई थी। लेकिन मुख्यमंत्री बादल को नहीं बल्कि सुरजीत सिंह बरनाला को बनाया गया। कुछ अरसा बाद बादल ने उस खेमा से अपना अलग गुट बना लिया।
कुछ टीकाकार मानते हैं कि अकाली दल धनी ( कुलक) किसानों की पार्टी है। यह बात शायद गलत भी नहीं है। राज्य में अनुसूचित जातियों के वोटर ( दलित ) कुल आबादी का 31.94 फीसद हैं जो पूरे देश में सर्वाधिक हिस्सा है। पर इनके पास कृषि भूमि का बहुत कम ही ही मालिकाना है। पंजाब की कुल आबादी का क़रीब 25 फीसद ‘ जट्ट सिक्ख ‘ हैं जिनका क़रीब 80 फीसद भूमि पर मालिकाना है। वैसे , सभी जट्ट सिख बड़े किसान नहीं हैं। उनमें मजदूरी करने वाले छोटे और सीमांत किसान भी हैं। श्रमिक आबादी का 35.88 फीसद अनुसूचित जातियों का है। उनके पास राज्य की करीब 11 लाख कृषि जोतों में से 6.02 फीसद होने का फौरी अनुमान है। ग़रीबी रेखा से नीचे के करीब पाँच लाख परिवारों में से 61.4 फीसद दलित हैं। कृषि क्षेत्र में 17.9 फीसद और ग़ैर-कृषि क्षेत्र में 21.7 प्रतिशत दलित है। अधिकतर गाँवों में दलितों के लिए अलग पूजास्थल और श्मशान घाट हैं। धार्मिक कृत्यों के लिए गुरुद्वारों में उनको प्रवेश की अनुमति है। लेकिन उन्हें लंगर में खाना पकाने के काम में आम तौर पर शामिल नहीं किया जाता है।
किसान आंदोलन-
दिल्ली बॉर्डर पर करीब बरस भर ज़्यादा चले किसान आंदोलन में शामिल पंजाब के 32 में से 22 किसान संगठन की संयुक्त समाज मोर्चा नामक नई पार्टी ने भी विधानसभा की सभी 117 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करने की घोषणा की है। ये घोषणा पार्टी नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने चंडीगढ़ में की। इस नई पार्टी में भारतीय किसान यूनियन एकता उगराहां यूनियन शामिल नहीं है जिसे राज्य में सबसे मजबूत किसान संगठन माना जाता है। उसने सियासत में नहीं उतरने का फैसला कायम रखा है। उसके प्रदेश अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उग्राहन ने साफ कहा वह चुनाव में नहीं उतरेगी। पिछले सप्ताह शुक्रवार को मुल्लांपुर के गुरशरण कला भवन में 32 किसान संगठनों की बैठक के बाद उसकी तरफ से पांच किसानों के प्रतिनिधिमंडल ने कहा सभी किसान संघर्ष के लिए एकजुट हैं। सबको राजनीतिक चुनाव लड़ने का हक है।
पिछला चुनाव-
2017 के चुनाव में कांग्रेस ने 38.5 फ़ीसद वोट शेयर की बदौलत 117 विधान सीटों में से 77 पर जीत दर्ज की थी। पंजाब के चुनावी मैदान में पहली बार ही उतरी आप 23.8 फ़ीसद वोट शेयर हासिल कर 20 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी. एसएडी ने 25.3 फ़ीसदी वोट शेयर के साथ 15 और भाजपा ने 5.3 प्रतिशत वोट शेयर पाकर सिर्फ 3 सीटें जीती थी। आप ने दो सीट जीतने वाली लोक इंसाफ़ पार्टी से गठबंधन किया था जो बाद में टूट गया। पंजाब के भोगौलिक तौर पर विभाजित तीन क्षेत्रों में से मालवा में कांग्रेस ने 40, आप ने 8 , एसएडी ने 8, भाजपा ने एक और लोक इंसाफ़ पार्टी ने 2 सीट जीती थी। माझा क्षेत्र में कांग्रेस ने 22, एसएडी ने दो और भाजपा ने एक सीट जीती थी। दोआबा में कांग्रेस ने 15, एसएडी ने 5, आप ने 2 और भाजपा ने एक सीट जीती थी।
बैकग्राउंड-
पंजाब में कांग्रेस विधायक दल के नवनिर्वाचित नेता चरणजीत सिंह चन्नी ने 20 सितंबर 2021 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो पाकिस्तान से लगे इस कृषि–प्रधान सूबा में नया चुनावी अध्याय शुरू हो गया। सुखजिंदर सिंह रंधावा और ओम प्रकाश सोनी को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है। चन्नी सिख समुदाय में अभी भी बरकरार जाति व्यवस्था के तहत अनुसूचित जाति के हैं। यानि वे दलित हैं। वह 1966 में भारत के राज्यों के पुनर्गठन के बाद से पंजाब के सर्वप्रथम और अभी देश भर के एकलौते दलित मुख्यमंत्री हैं। रंधावा, जट सिख और सोनी जी हिंदू समुदाय के हैं। विधि एवं प्रबंधन शिक्षा में स्नातक और अब पीएचडी भी कर रहे 58 वर्षीय चन्नी रामदसिया सिख समुदाय के हैं। वह अमरिंदर सरकार में तकनीकी शिक्षा मंत्री थे और रूपनगर जिले के चमकौर साहिब से विधायक हैं। वह 2007 में पहली बार विधायक बने। लगातार जीतते रहे हैं। वह विधानसभा में विपक्ष के नेता भी रह चुके हैं।
राहुल गांधी ने दिल्ली में अपनी माँ और कांग्रेस की मौजूदा अध्यक्ष सोनिया गांधी, बड़ी बहन प्रियंका गांधी वढेरा समेत कुछ वरिष्ठ नेताओं के साथ मंत्रणा के बाद चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने की पेशकदमी पर अंतिम मुहर लगाई थी। कहते हैं सिद्धू ने भी चन्नी के नाम पर सहमति दे दी थी। सियासी हल्कों में सवाल उठे कि कांग्रेस ने कैप्टन को क्यों हटा दिया जिन्होंने पिछले विधान सभा चुनाव में पार्टी को बड़ी जीत दिलाई और उसके बाद स्थानीय नगर निकायों के भी चुनाव में कांग्रेस का परचम लहराए रखा। ये भी सवाल उठे कि सिद्धू जी को ही नया सीएम क्यों नहीं बनाया गया जो कैप्टन के नानुकुर के बावजूद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किये गए। कुछ मीडिया पंडितों ने सवाल उठाया जाति व्यवस्था को नकार देने वाले सिख धार्मिक समुदाय के बीच से कांग्रेस द्वारा अनुसूचित जाति के चन्नी जी को सीएंम बनाने के बखान का क्या औचित्य है? जाहिर है उन्हें भारत में सदियों पुराने सामाजिक संस्तरण की जानकारी नहीं हैं। होती तो वे नहीं भूलते कि राजीव गांधी सरकार में केन्द्रीय गृह मंत्री रहे बूटा सिँह (अब दिवंगत) सिख समुदाय में अनुसूचित जाति के ही थे। इन मीडिया पंडितों को डेविड मेंडलबाम की लिखी पुस्तक ‘ सोसायटी इन इंडिया ‘ के 700 से अधिक पन्ने में से कुछ पलटने चाहिए जिनमें साफ है पंजाब में सिख धार्मिक समुदाय के लोग बहुसंख्यक होने और उनके केश काटने की मनाही होने के बावजूद नाई जातिगत पेशा के पुरुष और महिला की भी समाज में शिशु जन्म से लेकर विवाह और मृत्यु उपरांत जरूरत पड़ती है। सच है सिखों में बुनियादी तौर पर जात-पात , अगड़ा-पिछड़ा, अवर्ण-सवर्ण नहीं होता। पर हिंदुस्तान की सियासत के जातीय समीकरणों का वायरस पंजाब में भी पसरा है। फिर भी पंजाब , हिंदी भाषी राज्यों की तरह के जातिवादी जहर से काफी हद तक बचा हुआ है।
दरअसल , कांग्रेस ने चन्नी को सीएम बनाकर उत्तर प्रदेश के दलितों को भी रिझाने की कोशिश की है जहां पंजाब के साथ ही चुनाव निर्धारित हैं। गुजरात में चुनावी जातीय तकाजों के कारण ही भाजपा ने सीएम की कुर्सी से विजय रुपानी को अचानक हटा कर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल जाति समूह पाटीदार के भूपेन्द्र पटेल को बिठा दिया।
कांग्रेस-
कांग्रेस ने कुछ अरसा तीन कृषि कानूनों के खिलाफ 25 सितंबर 2020 से दिल्ली बॉर्डर पर जबरदस्त किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में पंजाब के छह नगर निगमों : बठिंडा, बटाला अबोहर , होशियारपुर , कपूरथला और पठानकोट के हुए चुनाव में भारी जीत हासिल की. शहरी निकाय चुनावों में विपक्षी दलों का सूपड़ा साफ हो गया। राज्य में 109 नगर परिषदों के भी चुनाव हुए जिनमें कांग्रेस का बोलबाला रहा. स्थानीय निकाय चुनाव के लिए परंपरागत बैलेट से 14 फरवरी 2021 को कराई वोटिंग में पंजीकृत वोटरों में से 70 फीसद से कुछ अधिक ने वोट दिए थे.
पंजाब दा कैप्टन-
कैप्टन ने पिछले चुनाव में घर-घर जाकर रोज़गार देने का वादा किया था.कैप्टन का दावा था उनकी सरकार ने 17.60 लाख युवाओं को रोज़गार दिया और एक लाख नौजवानों को नौकरी देने की योजना पर काम कर रही है. वे काम कितने हुए इसका ब्योरा नहीं है। कैप्टन ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।वह इस्तीफा से पहले पंजाब कांग्रेस विधायक दल की बुलाई बैठक में नहीं आए। कैप्टन ने मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद नई दिल्ली जाकर केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। उसके बाद ही उन्होंने 20 अक्टूबर को नई पार्टी बनाने की घोषणा की थी। पंजाब के पूर्ववर्ती पटियाला राजघराना के वारिस और भारतीय सेना में कैप्टन रहे ये वही राजनेता हैं जिन्होंने 2014 के लोक सभा चुनाव में अमृतसर सीट पर भाजपा के नेता एवं केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली (अब दिवंगत) को हराया था।
अरविन्द केजरीवाल-
दिल्ली के मुख्यमंत्री वहां अपनी पार्टी की सरकार लगातार दो बार बनने और चंडीगढ़ नगर निगम के हालिया चुनाव में आप के और सभी से आगे रहने के बाद से पंजाब चुनाव को लेकर बहुत उम्मीद से हैं. उन्होंने पार्टी की तैयारी तेज करने कुछ माह पहले पंजाब का दौरा कर कहा था उनकी पार्टी की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री सिख ही बनेगा। उन्होंने लोगों को दिल्ली मॉडल पर 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने का वादा भी किया था।
वोटिंग
नई विधान सभा चुनाव के लिए मतदान वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडित ट्रोल यानि वीवीपीएटी की अलग मशीन से जुडी हुई इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन यानि ईवीएम से ही कराये जाएंगे. इस बार 80 साल से अधिक आयु के करीब 5 लाख वोटरों को पोस्टल बैलेट की सुविधा दी जाएगी। राज्य के 23 जिलों में फैले 24 हजार बूथों पर चुनाव पूर्व तैयारियां जोरों पर है। ट्रांसजेंडर और एनआरआइ वोटरों को भी वोटर लिस्ट में शामिल किया गया है। इस बार दस लाख नए वोटर बनने की आशा है। देखना है , इस चुनाव में वोटर क्या करते है। फिलहाल इतना संकेत है कि लोगों में बड़ी बेचैनी है और ये बेचैनी नए चुनावी गुल भी खिला सकती है।