प्रयागराज: केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री के बयान को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकीलों का गुस्सा इन दिनों बढ़ा हुआ है। दरअसल उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच आगरा में बनाए जाने का बयान दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील हाईकोर्ट का विभाजन किसी भी हालत में नहीं चाहते हैं। जब भी हाईकोर्ट की बेंच पश्चिम उत्तर प्रदेश में बनाते जाने की बात होती है, तो इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील आक्रोशित हो जाते हैं।
किरण रिजिजू के बयान गरमाई सियासत-
केंद्रीय कानून मंत्री के बयान को लेकर विवाद लगातार गहराता जा रहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू के इस बयान का जमकर विरोध कर रहे हैं। इस मामले में हाईकोर्ट की निवर्तमान कमेटी की ओर से बुलाई गई आपात बैठक में निवर्तमान कार्यकारिणी को रणनीति तय कर आगे का फैसला लेने के लिए अधिकृत कर दिया गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने हाईकोर्ट की बेंच मेरठ या आगरा में गठित करने के फैसले का कड़ा विरोध करने का ऐलान किया है।
हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के निवर्तमान अध्यक्ष अमरेंद्र नाथ सिंह ने कहा है कि यूपी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, और दिल्ली में जो उच्च न्यायालय के अधिवक्ता है और जो लॉ फर्म हैं उनके द्वारा यह प्रायोजित है। निवर्तमान बार एशोसिएशन अध्यक्ष ने कहा है कि दिल्ली के वकीलों द्वारा यूपी सरकार और हाईकोर्ट के अधिवक्ताओं को छेड़ने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा है कि हाईकोर्ट की बेंच बनाने का आंदोलन जनता का आंदोलन नहीं है। उन्होंने कहा है कि हाईकोर्ट के वकील वादकारियों को इस लड़ाई में घसीटना नहीं चाहते हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एशोसिएशन के निवर्तमान अध्यक्ष अमरेंद्र नाथ सिंह ने कहा है कि निचली अदालतों में न्यायिक अधिकारियों के 30 फीसदी पद रिक्त हैं। जबकि हाईकोर्ट में 40 फ़ीसदी जजों के पद खाली हैं। उन्होंने कहा है कि सरकार से यह मांग है कि अगर यह पद भर दिए जाएं तो वादकारियों को आसानी से न्याय मिल सकेगा। उन्होंने कहा है कि जहां तक पश्चिमी यूपी से प्रयागराज वादकारियों के आने में परेशानी का सवाल है। तो यह पूरी तरह से निरर्थक है क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक युग में घर बैठे मुकदमे को दाखिल किया जा सकता है और उसकी जानकारी भी मिल सकती है। उन्होंने कहा है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक और बेंच बनाने का फैसला संविधान के खिलाफ है। यह न्यायिक निर्णयों में भी विविधता को बढ़ावा देना होगा। उन्होंने कहा है कि जब विभिन्न प्रकार के निर्णय होंगे तो उसका दबाव सुप्रीम कोर्ट पर भी पड़ेगा।
हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के निवर्तमान अध्यक्ष ने कहा है कि केंद्रीय कानून मंत्री का बयान हाईकोर्ट की अस्मिता, अस्तित्व और न्याय व्यवस्था के खिलाफ है। उन्होंने कहा है कि उनके इस बयान से वकील ही नहीं बल्कि वादकारी, व्यवसायी और शिक्षा जगत से जुड़े लोग भी आहत हैं। उन्होंने कहा है कि देश की आजादी के आंदोलन में भी इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण स्थान है।उन्होंने कहा है कि वकीलों का विरोध तर्कपूर्ण है और जायज है। उन्होंने कहा है कि जसवंत सिंह कमीशन की रिपोर्ट के बाद उत्तराखंड राज्य बन चुका है। इसलिए अब इसकी आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा है कि जहां तक दूरी का सवाल है वह सुप्रीम कोर्ट के लिए लागू हो सकती है। लेकिन आज आवागमन के यातायात के बहुत सारे साधन मौजूद हैं।
इलेक्ट्रॉनिक युग है घर बैठे लोग याचिका दाखिल कर सकते हैं। ऐसे में पश्चिमी यूपी में बेंच की मांग अनुचित है। उन्होंने कहा है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायिक अधिकार को कम करना इसी गरिमा को कम करना होगा।श्री सिंह ने कहा कि हाईकोर्ट बार एसोसिएशन केंद्र सरकार राज्य सरकार और चीफ जस्टिस को इस मामले में वैधानिक स्थिति के साथ ही साथ यहां के लोगों की भावनाओं से भी अवगत करायेंगे।
आसन्न विधानसभा चुनाव को देखते हुए हाईकोर्ट की बेंच को लेकर वकीलों के उग्र होना योगी सरकार के लिए भी परेशानी का सबब है। शायद इसी प्रयागराज शहर पश्चिमी से विधायक और कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने इस पूरे मामले में सफाई दी है। उन्होंने कहा है कि हाईकोर्ट की नई बेंच का गठन असंभव है। उन्होंने कहा है कि हाईकोर्ट की कोई भी बेंच पश्चिम उत्तर प्रदेश में नहीं बनने जा रही है। उन्होंने कहा है कि पहले भी एक बार इस तरह का मुद्दा उठा था, और एक बार फिर से यह मुद्दा उठा है। उन्होंने कहा है कि हाईकोर्ट की नई बेंच बनाने की प्रक्रिया बहुत लंबी है। उन्होंने कहा है कि उस प्रक्रिया के तहत यूपी की सरकार अभी कोई बेंच बनने की इजाजत नहीं देगी।
सरकार के प्रवक्ता का बयान आने के बाद भी फिलहाल प्रयागराज के वकील मानने के मूड में नहीं है।वह भविष्य के आंदोलन की रूप रेखा तैयार कर रहे हैं।याद रहे कि पहले भी ये मुद्दा उठा था लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकीलों के तेवर के आगे मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। जानकारों का कहना है कि किसान आंदोलन के बाद भाजपा को पश्चिम उत्तर प्रदेश में कुछ राजनीतिक नुकसान दिख रहा है,इसी लिए ये मुद्दा फिर उछाला गया है।ताकि हाईकोर्ट के बेंच के नाम पर कुछ भरपाई की जा सके।