प्रयागराज, देश में निजीकरण जिस बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। उसका अंदाजा इस खबर से लगाया जा सकता है। पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के प्रयासों से यूपी के रायबरेली में शुरू हुई ढाई अरब की पेपर मिल आज बिकने के कगार पर है। हजारों लोगों को रोजगार देने वाली ये मिल को अब 44 करोड़ रुपए में बेचने की तैयारी की जा रही है।
मिल को बेचने के पीछे वहीं कारण बताया जा रहा है। जो अन्य सरकारी कंपनियों का बताया जाता रहा है। यानि घाटा और कुप्रबंधन। हालांकि इस मिल का टर्नओवर 200 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष रहा है, बावजूद अब ये मिल कभी भी नीलाम हो सकती है। नीलामी के लिए मिल का मूल्यांकन भी हो चुका है। जिसमे इसकी कीमत 44 करोड़ रुपए आँकी गई है।
सबसे खास बात ये है कि जिस जमीन पर ये मिल बनी है। आज उस जमीन की कीमत ही 100 करोड़ से ज्यादा की है। बावजूद मिल की कीमत 44 करोड़ ही लगाई गई। इस मिल में 950 लोग काम करते है। जिसमे अधिकारी, कर्मचारी से लेकर मजदूर भी शामिल है।
इस मामले में भवानी पेपर मिल के जीएम कर्नल बीआर कुशवाहा ने कहा कि मिल पर काफी कर्ज है। इसकी अदायगी न होने के कारण मामला एनसीएलटी में चला गया। इसके बाद प्रबंधन से फैक्ट्री लेकर रेगुलेटर नियुक्त कर दिया गया। अब इसे नीलाम होना है। मूल्यांकन में करीब 44 करोड़ रुपये कीमत आंकी गई है। नीलामी में यह धनराशि बढ़ भी सकती है।
इस मिल के बंद होने के साथ ही सैकड़ों लोगों की रोजी-रोटी पर संकट आ जाएगा। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी के प्रयासों से शुरू हुई ये मिल भारत में ही विदेशों में कागज का निर्यात करती रही है। मिल के कागज की मांग बांग्लादेश और नेपाल समेत अन्य कई देशों में थी। हालांकि करोड़ों रुपए के कर्ज में डूबी ये मिल 2015 से ही बंद है।
बता दें कि क्षेत्र में कांग्रेस सरकार में स्थापित की गई दर्जनों फैक्ट्रियां स्पिनिंग मिल, वेस्पा कंपनी, शीना टैक्सटाइल्स, अपकाम केबल फैक्ट्री, रावल पेपर मिल अब धूल खा रही हैं। जिनकी भी कभी भी बोली लग सकती है।