पंजाब ,उत्तराखंड , उत्तर प्रदेश , गुजरात ,गोआ और मणिपुर राज्यों की विधान सभा चुनावों के लड़ाकों के लिए निर्वाचन आयोग की बिगुल बजने के पहले से सियासी शतरंज की बिसात पर किंग्स गैम्बिट में नई किलाबंदी के लिए प्यादों ,ऊंटों ,घोड़ों और वजीर की चालें चलीं जा चुकी है। ये चुनाव इन राज्यों की खेतों में धान की खड़ी फसल की कटाई और ठंढ के छोटे दिन खतम हो जाने पर अगली फसल की बुवाई तक फ़रवरी-मार्च 2022 में हो सकते हैं।गोआ की 40 सीट की मौजूदा विधान सभा 16 मार्च 2017 को गठित हुई थी. उसका कार्यकाल 15 मार्च को खतम होगा. अन्य विधान सभाओ में से 60 सीटो की मणिपुर का 19 मार्च को , 70 सीट के उत्तराखंड का 23 मार्च को और 403 सीट के उत्तर प्रदेश विधान सभा का कार्यकाल 14 मई तक हैं।
पंजाब की 16वीं विधान सभा चुनाव के लिए सियासी गोटें उसकी कुल 117 सीटों पर पसार चुकी हैं। 2017 में हुए पिछले चुनाव के फलस्वरूप गठित विधान सभा के पाँच बरस के सांविधिक कार्यकाल 17 मार्च 2022 को खतम होने वाला है। उसके पहले नई-नवेली विधान सभा विधिवत स्थापित करने नए चुनाव लगभग अनिवार्य हैं।
पंजाब के मुख्य निर्वाचन अधिकारी डा.एस करुणा राजू के अनुसार विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। इस बार 80 साल से अधिक आयु के करीब 5 लाख वोटरों को पोस्टल बैलेट की सुविधा दी जाएगी। राज्य के 23 जिलों में फैले 24 हजार बूथों पर चुनाव पूर्व तैयारियां जोरों पर है। ट्रांसजेंडर और एनआरआइ वोटरों को भी मतदाता सूची में शामिल करने की प्रक्रिया चालू है। पांच जनवरी 2022 को फाइनल वोटर लिस्ट जारी कर दी जाएगी। उन्होनें कहा कि इस बार करीब दस लाख नए वोटर बनने की आशा है। इसके पहले तैयार ड्राफ्ट लिस्ट पर शिकायत आदि का निपटान किया जाएगा। कोरोना महामारी के मद्देनजर स्वास्थ्य विभाग की गाइड लाइन का पालन किया जाएगा।
पिछले पाँच बरस में पंजाब की नदियों में बहुत पानी बह चुका है। पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और पंजाब के चार बार मुख्यमंत्री रह चुके प्रकाश सिँह बादल के शिरोमणि अकाली दल (शिअद) को परास्त कर देने वाली कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह की नई सरकार ने 17 मार्च 2017 को ही शपथ ली थी। किसी भी दल या उनके गठबंधन को अगली सरकार बनाने के विधान सभा की 117 में से न्यूनतम 59 सीटों पर जीतने वाले विधायकों का समर्थन हासिल करना होगा।
कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी शाही सीट, पटियाला शहरी से ही चुनाव लड़ने की तैयारी में लगे हैं। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व सलामी बल्लेबाज और अभी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ,उनके करीबी ओलंपियन हॉकी खिलाड़ी और अभी प्रदेश कांग्रेस महासचिव परगट सिंह ,कांग्रेस के मौजूदा मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी पूर्व लोकसभा स्पीकर बलराम जाखड़ के पुत्र और पिछले लोकसभा चुनाव में गुरदासपुर सीट पर फिल्म अभिनेता सनी देओल से हारे पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ ही नहीं प्रकाश सिंह बादल (लाम्बी) उनके पुत्र और शिअद प्रमुख एवं सांसद सुखबीर सिंह बादल (अमृतसर पूर्व ) और मोदी सरकार में काबिना मंत्री रहीं उनकी पुत्रवधु हरसिमरत कौर बादल , बादल जूनियर के साले साहब बिक्रमजीत सिंह मजीठिया भी चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरी वाल की आम आदमी पार्टी (आआपा ) भी विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं।आआपा के संभावित उम्मीदवारों में पंजाब पुलिस के पूर्व आईजी कुंवर विजय प्रताप सिंह,विधानसभा में सबसे बड़े विरोधी दल बतौर आआपा नेता हरपाल सिंह चीमा,पूर्व विपक्ष नेता सुखपाल सिंह खैरा, महिला नेता बलजिंदर कौर और लोकप्रिय पंजाबी गायिका अनमोल गगन मान की चर्चा है।अनमोल जी के खरड़ से उम्मीदवारी की अधिकृत घोषणा हो चुकी है।
चुनावी मुद्दे-
सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा यही बन गया लगता है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कौन बैठे। लेकिन सारे मुद्दों पर मोदी सरकार के बनाए तीन कृषि क़ानून का विरोध हावी है। इन क़ानूनों के विरोध में दिल्ली बॉर्डर पर बरस भर से डटे हुए किसानों की आह पूरे पंजाब में गूंज रही है। इन्हीं क़ानूनों के कारण शिअद ने भाजपा से दशकों पुराना चुनावी गठबंधन तोड़ कर मोदी सरकार के मंत्रिमण्डल से हरसिमरत कौर बादल को हटा लिया।
बेरोज़गारी, नशाखोरी, अवैध खनन, मंहगी बिजली आदि के भी चुनावी मुद्दे हैं।
पिछला चुनाव-
2017 के चुनाव में कांग्रेस ने 38.5 फ़ीसद वोट शेयर की बदौलत 117 विधान सीटों में से 77 पर जीत दर्ज की थी। पंजाब के चुनावी मैदान में पहली बार ही उतरी आप 23.8 फ़ीसद वोट शेयर हासिल कर 20 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी. शिअद ने 25.3 फ़ीसदी वोट शेयर के साथ 15 और भाजपा ने 5.3 प्रतिशत वोट शेयर पाकर सिर्फ 3 सीटें जीती थी। आआपा दो सीट जीतने वाली लोक इंसाफ़ पार्टी से गठबंधन किया था जो बाद में टूट गया।
पंजाब के भोगौलिक तौर पर विभाजित तीन क्षेत्रों में से मालवा में कांग्रेस ने 40, आप ने 8 ,शिअद ने 8, भाजपा ने एक और लोक इंसाफ़ पार्टी ने 2 सीट जीती थी। माझा क्षेत्र में कांग्रेस ने 22, शिअद ने दो और भाजपा ने एक सीट जीती थी। दोआबा में कांग्रेस ने 15 ,शिअद ने 5, आआपा ने 2 और भाजपा ने एक सीट जीती थी।
बैकग्राउंड-
पंजाब में कांग्रेस विधायक दल के नवनिर्वाचित नेता सरदार चरणजीत सिंह चन्नी ने 20 सितंबर 2021 को चंडीगढ़ में राजभवन में पूर्वाहन 11 बजे राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत आदि की उपस्थिति में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो पाकिस्तान से लगे करीब साढ़े 3 करोड़ की आबादी के इस सीमांत कृषि–प्रधान सूबा ही नहीं भारत भर की सियासत में नया चुनावी अध्याय शुरू हो गया। उनके साथ सुखजिंदर सिंह रंधावा और ओम प्रकाश सोनी ने भी मंत्री पद और गोपनीयता की शपथ ली। दोनों को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है।
चन्नी सिख समुदाय में अभी भी बरकरार जाति व्यवस्था के तहत अनुसूचित जाति के हैं। यानि वे दलित हैं। वह 1966 में भारत के राज्यों के पुनर्गठन के बाद से पंजाब के सर्वप्रथम और अभी देश भर के एकलौते दलित मुख्यमंत्री हैं। रंधावा, जट सिख और सोनी जी हिंदू समुदाय के हैं।
चन्नी जी को मुख्यमंत्री बन जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी ( रागा) समेत कई सियासी पार्टियों के नेताओं ने बधाई दी। मोदी जी ने फौरन अपने ट्वीट में लिखा कि वह राज्य की नई सरकार से मिलकर पंजाब की बेहतरी के लिए काम करते रहेंगे। राहुल गांधी ने फेसबुक पर अपने एक पोस्ट में लिखा:” पंजाब के नए मुख्यमंत्री श्री चरणजीत सिंह चन्नी जी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुआ। हम आज भी जनता की प्रगति के लिए प्रतिबद्ध हैं और आगे भी रहेंगे। ये नयी शुरुआत पंजाब को मुबारक हो ! आम आदमी पार्टी के पंजाब अध्यक्ष और लोक सभा सदस्य भगवंत मान ने अपने ट्वीट में पंजाबी में एक लाइन लिखकर चरणजीत चन्नी को मुख्यमंत्री बनने पर बधाई दी।
विधि एवं प्रबंधन शिक्षा में स्नातक और अब पीएचडी भी कर रहे 58 वर्षीय चन्नी ने शपथ ग्रहण के बाद मुख्यमंत्री पद की बागडोर संभालने के फौरन बाद मीडिया से बातचीत में ‘ एक आम आदमी ‘ को सीएम बनाने के लिए कांग्रेस ‘आलाकमान‘ का धन्यवाद दिया। उन्होंने तनिक भावुक स्वर मेँ कहा: मैं आम आदमी हूं। यहाँ बैठा हूँ। किसानों पर आंच आई तो गर्दन पेश कर दूंगा ‘।
राहुल गांधी ने दिल्ली में अपनी माँ और कांग्रेस की मौजूदा अध्यक्ष सोनिया गांधी,बड़ी बहन और उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव में मुख्यमंत्री के लिए पार्टी की घोषित दावेदार प्रियंका गांधी वढेरा समेत कुछ वरिष्ठ नेताओं के साथ गहरी मंत्रणा के बाद नए सीएम के रूप में चन्नी के नाम पर मुहर लगाई। कहते हैं कांग्रेस के पंजाब अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने भी चन्नी के नाम पर सहमति दे दी थी। वह अभी कांग्रेस विधायक हैं और कैप्टन अमरिंदर सिंह से भिड़ने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। कांग्रेस में अंतर्कलह दूर करने के लिए पार्टी हाईकमान ने तीन सदस्यीय कमेटी तैयार बनाई थी और रागा ने पार्टी के पंजाब विधायकों, सांसदों की राय ली थी। लेकिन अंतर्कलह बढ़ते गए जिसके कारण सबसे पहले सिद्धू जी प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। ये इस्तीफा पार्टी आलाकमान ने स्वीकार नहीं किया। फिर इसी अंतर्कलह में कैप्टन को सीएम की कुर्सी से हटाकर ये कुर्सी के चन्नी जी के हवाले कर दी गई।
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के बीच रविवार को नए सीएम के लिए कई नाम पर चर्चा हुई। अंततः चन्नी को ही का नया नेता घोषित कर दिया गया। पार्टी विधायक दल के सदस्य विधायकों ने चंडीगढ़ में सात सितारा जेडबल्यू मैरियट होटल में हरीश रावत की उपस्थिति में हुई बैठक में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास कर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को नया सीएम चुनने के लिए विधिवत अधिकृत कर दिया गया। बैठक में कांग्रेस के कुल 80 में से 78 विधायक मौजूद थे। कैप्टन अमरिंदर सिंह और एक अन्य विधायक इस बैठक में नहीं आए।
इस प्रस्ताव के मिल जाने पर सोनिया गांधी दिल्ली की भीषण गर्मी से निजात पाने, राहुल को मामला संभालने की जिम्मेवारी सौंप हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला पहुंच गई जहां प्रियंका पहले से मौजूद हैं। प्रियंका का हिमाचल में अपना एक बसेरा है। ऐसे में पंजाब की सियासी बिसात की बाजी पर मोहरों की चाल और उन्हें बदलने का फैसला राहुल के ही हाथ में आ गया। इसलिए वह खुद चन्नी के शपथ ग्रहण समारोह में भी उपस्थित भी हुए। शपथ ग्रहण समारोह के बाद राहुल भी अपनी माँ और बहन के पास शिमला पहुँच गए।
यूपी का भी कांग्रेसी चुनावी गणित और रसायन है बतौर सीएम चन्नी
सियासी और मीडिया हल्कों में सवाल दर सवाल उठे कि कांग्रेस ने कैप्टन को क्यों हटाया, जिन्होंने पिछले विधान सभा चुनाव में पार्टी को बड़ी जीत दिलाई और उसके बाद स्थानीय नगर निकायों के भी चुनाव में कांग्रेस का परचम लहराए रखा?
ये भी सवाल उठे कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की पार्टी, आअपा से कांग्रेस में आए सिद्धू को ही नया सीएम क्यों नहीं बनाया गया, जों राहुल गांधी की पसंद हैं और कैप्टन के सार्वजनिक तौर पर व्यक्त नानुकुर के बावजूद हाल में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किये गए ? ये सवाल खूब उठे कि क्या पहले भी कांग्रेस अध्यक्ष रहे राहुल गांधी अब फिर अपनी वृद्ध माँ की जगह पार्टी की कमान संभाल सकते हैं?
उल्लेख किया गया कि पंजाब के पूर्ववर्ती पटियाला राजघराना के वारिस और भारतीय सेना में कैप्टन रहे ये वही राजनेता हैं जिन्होंने 2014 के लोक सभा चुनाव में अमृतसर की अहम सीट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाजपा के शीर्ष नेताओं में शामिल एवं केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली (अब दिवंगत) को चारों खाने चित्त कर दिया था।
कुछ स्वनामधन्य मीडिया मठाधीशों ने हास्यास्पद रूप से ये सवाल उठाया कि जाति व्यवस्था को नकार देने वाले सिख धार्मिक समुदाय के बीच से कांग्रेस द्वारा अनुसूचित जाति के चन्नी जी को सीएंम बनाए जाने का बखान करने का औचित्य क्या है? जाहिर है इन स्वयंभू विद्वानों को भारत में सामाजिक संस्तरण की रत्ती भर जानकारी नहीं हैं। होती तो वे नहीं भूलते कि राजीव गांधी सरकार में केन्द्रीय गृह मंत्री रहे बूटा सिँह (अब दिवंगत) सिख समुदाय में अनुसूचित जाति के ही थे।
इन मीडिया मठाधीशों को डेविड मेंडलबाम की लिखी समाजशास्त्र के क्लासिक टेक्स्टबुक सोसायटी इन इंडिया के 700 से अधिक पन्ने में से कम से कम कुछ तो पलटने चाहिए जिसमें साफ है पंजाब में सिख धार्मिक समुदाय के लोग बहुसंख्यक होने और उनके केश काटने की मनाही होने के बावजूद नाई जातिगत पेशा के पुरुष और महिला की भी समाज में शिशु जन्म से लेकर विवाह और मृत्यु उपरांत जरूरत पड़ती है।
ये सच है सिखों में बुनियादी तौर पर जात-पात, अगड़ा-पिछड़ा, अवर्ण-सवर्ण नहीं होता। पर जब से देश की सियासत जातीय चक्कर में पड़ी है इसका वायरस पंजाब में भी पसरा है। फिर भी पंजाब हिंदी भाषी राज्यों की तरह के जातिवादी जहर से काफी हद तक बचा हुआ है।
दलित सीएम लिस्ट-
भारत की आजादी के बाद 1947 से चन्नी जी समेत केवल नौ दलित मुख्यमंत्री रहे हैं।इनमें डी संजीवैया (आंध्र प्रदेश 1960 कांग्रेस), कर्पूरी ठाकुर (बिहार 1970 सोशलिस्ट पार्टी), भोला पासवान शास्त्री (बिहार 1978 कांग्रेस),रामसुंदर दास (बिहार 1979 जनता दल), जगन्नाथ पहाड़िया (राजस्थान 1980 कांग्रेस), मायावती (उत्तर प्रदेश, जून 1995 से चार बार,बसपा),सुशील कुमार शिंदे (महाराष्ट्र 2003 कांग्रेस), जीतनराम मांझी (बिहार 2014 जनता दल यूनाइटेड),(चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब 2021 कांग्रेस) शामिल हैं।कर्पूरी ठाकुर को बिहार में दलित नहीं बल्कि अति पिछडा वर्ग की जातियों में से नाई जाति का माना जाता है।
‘ रागा ‘ का बहुराज्यीय दलित कार्ड-
दरअसल , कांग्रेस ने चन्नी को सीएम बनाकर उत्तर प्रदेश के दलितों को भी रिझाने की कोशिश की है जहां पंजाब, उत्तराखंड , गुजरात, गोवा, मणिपुर राज्यों के साथ ही 2022 की पहली तिमाही में विधानसभा चुनाव निर्धारित हैं।
हम गुजरात की स्थिति का प्राथमिक आँकलन पिछले बुधवार को तक्षक पोस्ट में चुनाव चर्चा कॉलम की शुरू की गई नई शृंखला में कर चुके हैं। उसमें साफ लिखा था कि गुजरात में चुनावी तकाजों के कारण ही भाजपा ने सीएम की कुर्सी से विजय रुपानी को अचानक हटा कर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल जाति समूह पाटीदार के भूपेन्द्र पटेल को बिठा दिया।
चन्नी दलित सिख यानि रामदसिया सिख समुदाय के हैं और अमरिंदर सरकार में तकनीकी शिक्षा मंत्री थे। वह रूपनगर जिले के चमकौर साहिब विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। वह इस क्षेत्र से 2007 में पहली बार विधायक बने और इसके बाद से लगातार जीतते रहे हैं। वह विधान सभा में विपक्ष के नेता भी रह चुके हैं।
दलित नेता चन्नी को सीएम पद देकर राहुल ने पंजाब की धरती से यूपी, राजस्थान और दूसरे राज्यों के लोगों को भी सियासी राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है। ये राहुल गांधी का बहुराज्यीय दलित कार्ड है।
चन्नी पर आरोप-
राष्ट्रीय महिला आयोग की भाजपा समर्थक अध्यक्ष श्रीमति रेखा शर्मा ने चन्नी जी को सीएम पद से हटाने की मांग कर बयान दिया है कि वह मुख्यमंत्री बनने लायक नहीं है और उन पर 2018 में चर्चित ‘ मी-टू ‘ के दौर में यौन कदाचार के आरोप लगे थे। वो भूल गईं कि भारतीय न्यायिक व्यवस्था के मूलभूत सिद्धांत के अनुसार जब तक किसी पर लगा आरोप अदालत में सिद्ध नहीं हो जाता उसे निर्दोष ही माना जाता है।
भाजपा की चुनावी हैसियत-
करीब एक बरस से जारी किसान आंदोलन को हल्के में लेने के कारण भाजपा को रावी, सतलुज ,व्यास आदि अनेक बड़ी नदियों के इस सूबा में 2022 में निर्धारित विधान सभा चुनाव में कोई पानी देने वाला भी शायद ही मिले। ऐसे में मोदी जी की पार्टी पंजाब में राम भरोसे भी नहीं लगती है।
पंजाब के हालिया स्थानीय निकाय चुनाव में कांग्रेस की जबरदस्त जीत के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिँह ने मोदी सरकार को आगाह किया था कि वह किसान आंदोलन को हल्के से न ले। उन्होंने निकाय चुनाव के परिणाम घोषित होने के उपरांत इसी बरस 17 फरवरी 2021 को ट्वीट किया था : किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ देशभर के सभी आयु-वर्ग के लोग प्रदर्शन कर रहे हैं. फिर से केन्द्र से अपील करता हूं, वो इस आंदोलन को हल्के में ना लें और अपने बनाए नए कृषि कानूनों को वापस ले।
कांग्रेस ने छह नगर निगमों: बठिंडा, बटाला अबोहर , होशियारपुर , कपूरथला और पठानकोट में भारी जीत हासिल की. वह मोगा नगर निगम चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी साबित हुई.कांग्रेस को मोगा में बहुमत से सिर्फ छह सीट की कमी पड़ी। शहरी निकाय चुनावों में विपक्षी दलों का सूपड़ा साफ हो गया जो मोदी सरकार द्वारा संसद में और खास कर राज्यसभा में कथित तिकड़म से पारित कराये तीन कृषि कानूनों के खिलाफ 25 सितंबर 2020 से दिल्ली बॉर्डर पर जारी जबरदस्त किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में हुए थे। राज्य में नगर निगमों के साथ ही 109 नगर परिषदों के भी चुनाव हुए जिनमें कांग्रेस का बोलबाला रहा. किसान आंदोलन में शामिल अधिकतर पंजाब एवं हरियाणा से हैं।
दिवंगत पूर्व लोकसभा स्पीकर बलराम जाखड़ के पुत्र एवं पंजाब प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने कहा था पंजाबियों ने मोदी जी भाजपा और पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की शिरोमणि अकाली दल यानि शिअद की ही नहीं बल्कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी यानि आआपा की भी सियासत को खारिज कर दिया।
पंजाब नगर निगमों और नगर परिषदों के चुनाव में कुल 9,222 उम्मीदवार थे। इनमें सबसे ज्यादा 2,037 उम्मीदवार कांग्रेस के थे। शिअद ने 1569, भाजपा ने 1003,आआपा ने 1606 और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी यानि बसपा ने 160 उम्मीदवार चुनावी मुकाबले में उतारे थे. कुल 2,832 निर्दलीय उम्मीदवार भी थे। मोगा में किसी भी राजनीतिक दल को बहुमत नहीं मिला। कांग्रेस इस निगम के 50 वार्डों में से 20 में जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बनी। शिअद चार वार्डों में ही जीत सकी। भाजपा की झोली में सिर्फ एक सीट आई. वहाँ दस निर्दलीय उम्मीदवार जीते। स्थानीय निकाय चुनाव के लिए परंपरागत बैलेट से 14 फरवरी को कराये गए मतदान में पंजीकृत वोटरों में से 70 प्रतिशत से कुछ अधिक ने वोट दिए थे।
पंजाब दा कैप्टन-
कैप्टन ने पिछले चुनाव में घर-घर जाकर रोज़गार देने का वादा किया था.कैप्टन का दावा रहा उनकी कांग्रेस सरकार ने राज्य में 17.60 लाख युवाओं को रोज़गार दिया और एक लाख अन्य नौजवानों को नौकरी देने की योजना पर काम चल रहा है।
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने शनिवार को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफ़े से पहले पंजाब कांग्रेस विधायक दल की बैठक होनी तय थी। उस बैठक में अमरिंदर सिंह ने भाग नहीं लिया।
अरविन्द केजरीवाल-
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की दूसरी बार सरकार बनने के बाद केजरीवाल पंजाब चुनाव को लेकर बहुत उम्मीद से हैं। लेकिन केजरीवाल के इस ऐलान को अमरिंदर सिंह सरकार के तब मंत्री रहे चरणजीत सिंह चन्नी ने नाटक बताया।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने इस चुनाव में अपनी पार्टी की तैयारी तेज करने कुछ माह पहले पंजाब का दौरा कर कहा था कि उनकी पार्टी की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री सिख ही बनेगा और लोगों को दिल्ली मॉडल पर 300 यूनिट बिजली मुफ्त दी जाएगी। उनका कहना था राज्य में अतिरिक्त बिजली उत्पादन के बावजूद लंबे समय तक बिजली कटौती की जाती है और लोगों को खेती के लिए बिजली नहीं मिलती है। बिजली उत्पादक राज्य होने के बावजूद पंजाब में बिजली देश में सबसे महंगी है. हम दिल्ली में बिजली का उत्पादन नहीं करते हैं। हम इसे दूसरे राज्यों से खरीदते हैं और इसके बावजूद दिल्ली में सबसे सस्ती दर पर बिजली आपूर्ति की जा रही है।
शिरोमणि अकाली दल (बादल)-
पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की पार्टी , शिअद ने पिछले बरस कृषि कानूनों के ही विरोध में भाजपा के नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस यानि एनडीए से रिश्ता तोड़ने के साथ ही मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर बादल को हटा लिया था। वह बादल सीनियर के सुपुत्र सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हैं। दोनों सियासी दल निकाय चुनाव में अलग-अलग लड़े थे। अकाली दल ने विधान सभा चुनाव में बसपा से गठबंधन करने की घोषणा की है।
वोटिंग-
नई विधान सभा चुनाव के लिए मतदान वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडित ट्रोल यानि वीवीपीएटी की अलग मशीन से जुडी हुई इलेक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन यानि ईवीएम से ही कराये जाएंगे।
बहरहाल , देखना यह है कि निर्वाचन आयोग पंजाब में चुनाव कार्यक्रम की घोषाण कब करता है और मोदी जी इस राज्य में कांग्रेस को जीतने से रोकने के क्या-क्या जतन करते हैं। देखना ये भी है कि पंजाब में कांग्रेस के दलित मुख्यमंत्री बनाने के प्रयोग का उत्तर प्रदेश में कितना असर पड़ेगा और क्या भाजपा किसी राज्य में किसी दलित को मुख्यमंत्री का दावेदार घोषित करेगी।
देखना यह भी है कि 13 अप्रैल 2021 से भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुशील चंद्रा बतौर सीईसी पंजाब चुनाव में क्या गुल खिलाते है और कैप्टन मुख्यमन्त्री की कुर्सी फिर हासिल करने क्या क्या चाल चलते हैं। पंजाब में दलित 32 प्रतिशत हैं। शिअद ने विधानसभा चुनाव जीतने पर उपमुख्यमंत्री दलित को बनाने की घोषणा की है। कैप्टन अमरिंदर सिंह के नई पार्टी बनाने और भाजपा के साथ गठबंधन करने के बयान के बाद कुछ लोगों का कहना है वह शहरी इलाकों में हिंदुओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। शहरी हिंदू पंजाब की आबादी का 38 फीसदी के करीब हैं।
कैप्टन ने मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद नई दिल्ली जाकर भाजपा के चुनावी चाणक्य कहे जाने वाले केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। उसके बाद ही उन्होंने 20 अक्टूबर को नई पार्टी बनाने की घोषणा कर कहा था ये पार्टी पंजाब चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन करने के लिए तैयार हैं. कैप्टन के हवाले से उनके सियासी सलाहकार ने ट्वीट में लिखा था , ‘अगर किसानों के मुद्दों को हल किया जाएगा तो उम्मीद है कि साल 2022 के चुनाव के लिए भाजपा के साथ सीट शेयरिंग पर समझौता हो सकता है।
हम इतना जरूर कहना चाहेंगे ‘ पहुंची वहीं पे खाक जहां का खमीर था ‘ ।