प्रयागराज: मंडल के प्रतापगढ़ जिले में पूर्व में बना कोरोना माता का मंदिर एक बार फिर चर्चा में है।कोरोना महामारी के दौरान प्रतापगढ़ जिले के जुही शुकुलपुर गांव में गांव के ही कुछ लोगों ने ये मंदिर बना लिया था।उस समय इस मंदिर ने खूब सुर्खियां बटोरी थी। लेकिन बाद में विवाद बढ़ने पर इसे ढ़हा दिया गया था।कहा गया था कि इसे पुलिस बल गिराया था, लेकिन बाद में पुलिस ने इससे इंकार कर दिया था।
मंदिर गिराने का विवाद सम्बन्ध पक्ष सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका के जरिए ले गया।अब देश की सर्वोच्च अदालत ने के प्रतापगढ़ जिले में एक महिला द्वारा अपने पति के साथ मिलकर बनाए गए ‘कोरोना माता मंदिर’ को ध्वस्त किए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका खारिज कर दी। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि यह याचिका न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। दो जजों की पीठ ने यह पीआईएल खारिज करने के साथ ही याचिकाकर्ता पर 5,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। पीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा कि जिस जमीन पर मंदिर बनाया गया था, वह विवादित थी।
कोर्ट ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता की दलील यह है कि यह उसकी निजी जमीन है और निर्माण स्थानीय नियमों के अनुरूप किया गया है तो, उसने मंदिर गिराए जाने के खिलाफ किसी उपयुक्त कानूनी प्रक्रिया को नहीं अपनाया। अब तक याचिकाकर्ता ने अन्य सभी संक्रामक बीमारियों के खिलाफ मंदिरों का निर्माण नहीं किया है। कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड के मुताबिक यह जमीन विवादित है। इस मामले में पुलिस में एक शिकायत भी की गई है।पीठ ने कहा कि यह स्पष्ट रूप से संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस अदालत के न्याय क्षेत्र की प्रक्रिया का उल्लंघन है। इसलिए यह रिट याचिका पांच हजार रुपये जुर्माने के साथ खारिज की जाती है। यह राशि चार सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट के वकीलों के कल्याण कारी कोष में जमा कराई जाए।यह याचिकाकर्ता ने मूलभूत अधिकार के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की थी। ‘कोराना माता मंदिर’ का निर्माण प्रतापगढ़ जिले के जुही शुकुलपुर गांव में किया गया था। महामारी से मुक्ति के लिए यह मंदिर बनाया गया था।