पटियाला नरेश कैप्टेनअमरिंदर सिंह देखते ही देखते पंजाब के भूतपूर्व मुख्यमंत्री हो गए। विगत शनिवार, 18 सितम्बर 2021 को हुए एक नाटकीय घटनाक्रम के बाद उन्होंने पांजब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित को अपना इस्तीफ़ा दे दिया था। इसके अगले ही दिन पंजाब कांग्रेस विधायक दल ने पार्टी आला कमान के इशारों पर पार्टी के एक दलित विधायक चरणजीत सिंह चन्नी को अपना नेता चुन लिया था और उसके एक दिन बाद ही सोमवार 20 सितम्बर 2021 को सुबह 11 बजे श्री चन्नी ने अपने दो उप मुख्यमंत्रियों और कुछ मंत्री मंडलीय सहयोगियों के साथ मुख्यमंत्री और मंत्री पद की गोपनीयता की शपथ भी ले ली थी।
अब अमरिंदर के स्थान पर चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब के मुख्यमंत्री हैं और आम्रिंदर सिंह भूतपूर्व नुख्य्मंत्री हो गए हैं ..यह तथ्य तो सब जानते हैं कि भाजपा से कांग्रेस में आए पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू और पटियाला नरेश अमरिंदर के बीच कई महीनों से तनाव चल रहा था, पार्टी आला कमान ने दोनों के बीच मन मुटाव दूर करने की कई असफल कोशिश भी कीं लेकिन बात नहीं बनी। अंततः आला कमान के ही कहने पर शनिवार शाम 5 बजे कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाने का फैसला लिया गयाआ था और सभी पार्टी विधायकों को उस बैठक में अनिवार्य रूप से भाग लेने को कहा गया था। इस बैठक के एजेंडे में अन्य बातों के साथ ही नेतृत्व परिवर्तन भी एक संभावित मुद्दा माना जा रहा है और यह भी माना जा रहा था किअगर विधायक दल की बैठक में अमरिंदर के स्थान पर किसी अन्य को नेतृत्व देने की बात आई तो अमरिंदर के लिए बाख पाना संभव नहीं होगा और उन्हें मुख्यमंत्री का पद छोड़ना ही पड़ेगा।
सार्वजनिक रूप से नेतृत्व परिवर्तन का मुद्दा उठाना कहीं ज्यादा अपमानजनक होता इसलिए अमरिंदर सिंह ने बड़ी चतुराई से इसी कथित अपमान को मुद्दा बनाते हुए विधायक दल की बैठक शुरू होने से आधा घंटा पहले ही अपनी मंत्रिपरिषद का इस्तीफ़ा सौंप दिया।
लिहाजा कहा जा सकता है कि अमरिंदर सिंह को नवजोत सिंह सिद्धू की तरफ किये जा रहे जबरदस्त विद्रोह के चलते इस्तीफा देने को विवश होना पड़ा था। ऐसा करना इसलिए भी जरूरी हो गया था क्योंकि नवजोतसिंह सिद्धू ने अमरिंदर के विरोध में पार्टी के 40 से अधिक विधायकों का समर्थन जूता लिया था और इन सभी विधायकों ने इस बाबत आला कमान को लिखित रूप में भी तमाम जाकारी उपलब्ध करा दी थी। इस प्रसंग में एक महत्वपूर्ण बात रह – रह कर सामने आती है कि जब शनिवार 18 सितम्बर को यह एकदम साफ़ हो गया था की अमरिंदर सिंह कांग्रेस विधायक दल का भरोसा पूरी तरह काफी पहले ही खो चुके थे तो करीब 10 महीने तक वो आला कमान को यह भरोसा कैसे दिलाते रहे कि पार्टी के विधायकों का बहुमत उनके पास है, जबकि हालात इसके एकदम विपरीत थे।
ऐसे में एक सवाल यह भी उठता है कि पार्टी के वो प्रभारी और पर्यवेक्षक क्या कर रहे थे जिनको पंजाब संकट पर नजर रखने के साथ ही उसके समाधान का सुझाव देने की जिम्मेदारी दे गई थी। गौरतलब है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बहुमत हासिल किया था, और कैप्टन अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री बनाए गए थे । उन्होंने पंजाब के 26 वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।इससे पहले 23 नवम्बर 2016 को 2016 को उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था और पूरी तरह से पंजाब विधानसभा चुनावों में जुट गए थे।
2015 वो पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए और वो पांच बार पंजाब विधानसभा के लिए चुने भी गए थे। विधानसभा में तीन बार उन्होंने पटियाला (शहर) का प्रतिनिधित्व किया और एक एक बार समाना और तलवंडी साबू का आम्रिंदर ने मुख्यमंत्री पद से अपना इस्तीफ़ा देने का कारण भी यह बताया कि बार – बार पार्टी विधायकों की बैठक बुलाये जाने को उन्होंने अपना अपमान समझा और अपमानित होने से बेहतर इस्तीफा देना उन्हें ठीक लगा।
शनिवार की सुबह जब उन्हें विधायक दल की बैठक की सूचना मिली थी तभी उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को फ़ोन कर अपना इस्तीफा देने का फैसला भी सुना दिया था। इस बीच अपने सहयोगियों के साथ बैठक कर अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस विधायक दल की बैठक से आधा घंटा पहले ही राज्यपाल को अपनी सरकार का इस्तीफा दे दिया था, उल्लेखनीय है कि 117 सदस्यी पंजाब विधानसभा में कांग्रेस के 80 विधायक हैं और शनिवार को कांग्रेस आलाकमान के कहने पर बुलाई गई बठक में 78 विधायकों ने भाग लिया था इनमें 40 से अधिक विधायक अमरिंदर विरोधी खेमे के थे। मतलब साफ़ है कि अगर इस बैठक से पहले अमरिंदर सिंह राज्यपाल को अपनी सरकार का इस्तीफा नहीं सौंपते तो विधायक दल की बैठक में निश्चित रूप से नेतृत्व परिवर्तन का मामला उठने पर उनकी सरकार को जाना ही पड़ता।
अमरिंदर सिंह अपने पक्ष में पार्टी विधायकों के समर्थन और बहुमत होने का चाहे जितना भी नाटक क्यों न कर रहे हों लेकिन खुद अमरिंदर को भी पता था की विधायकों का स्बहुमत उनके पास नहीं था। अमरिंदर को इस सच्चाई का एहसास तब हुआ जब राजभवन जाने से पहले उन्होंने पार्टी विधायकों की जो बैठक बुलाई थी उसमें मुश्किल 20 -25 विधायक ही पहुंचे थे ऐसे हालात में उनके पास इस्तीफ़ा ही एकमात्र विकल्प बचा रह गया था। मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने के बाद अमरिंदर सिंह ने सिद्धू के खिलाफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और पाक सेना के वरिष्ठ अधिकारी बाजवा के साथ कथित संबंधों का बयान देकर अपनी खुद ही किरकिरी करवा ली। सवाल ये भी है कि एक मुख्यमंत्री को यह मालूम हो की उसके राज्य में कोई व्यक्ति किस तरह एक दुश्मन देश के नागरिक को सहयोग कर रहा है तब उस मुख्यमंत्री ने ऐसे तत्व के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की और इसकी सूचना केन्द्रीय आसूचना एजेंसी एनआईए को क्यों नहीं दी। एक तरफ अमरिंदर का सिद्धू पर यह आरोप और दूसरी तरफ पाकिस्तान की एक महिला के उनके साथ कई महीनों तक मुख्यमंत्री निवास में रहने की कहानी उनको कटघरे में ही खड़ा करती है।