देश की अर्थव्यवस्था का बाजा बजा कर सरकार कुम्भकर्ण की नींद में सो रही है, कोई तैयारी और कदम दिखता नहीं की सरकार लेने के मूड में है। भारतीयों की थाली में महंगाई की कमरतोड़ महंगाई और सब्जी का स्वाद अब शायद करेले से भी ज्यादा कड़वा हो गया है।
लोगों के पास नौकरी नहीं कोरोना के खेल में सब दांव पर लग गये। आर्थिक गुलामी की तरफ बढ़ता हुआ हमारा देश आर्थिक रूप से जर्जर व कमजोर हो गया है । हमारे लोकतंत्र पर आर्थिक आतंकवाद का खतरा बढ़ चुका है। हम आर्थिक आतंकवाद के शिकार हो चुके है।
हवस हावी है केवल चुनाव में ऊंची बोली और ज्यादा कुर्सी अपने पाले में कर्म करने की। अपराध और भुखमरी के इस दौर में एक तरह से आर्थिक आतंकवाद के इस बढ़ते दौर में राजनीतिक दलों का जिसकी लाठी उसकी भैंस के तर्ज पर उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव में खुलेआम सत्तारूढ़ दल के साथ धन बल का बोल बाला देखने को मिला इससे लोकतन्त्र शर्मसार हुआ है, इसका मजाक उड़ाया जा रहा है। यह चिंतनीय है।
इसमें youtube का हमारे देश में विधानसभा लोकसभा के चुनाव में भी बाहुबल और धन – बल का बोलबाला रहा है। उसका असर लोकतंत्र को कमजोर होता हुआ हम देख रहे हैं।
धन – बल से निर्णय प्रभावित होता हैं, जिसकी सरकार होती है उसे ही जिला पंचायत के चुनाव में जीत येन केन प्रकारेण हासिल होती है। उसी दल के लोग वही धन – बल वाले पंचायत चुनाव में जीत हासिल कर ही लेते है। वर्तमान दौर में अगर गहन पड़ताल की जाए तो यह पता चलेगा की ब्लाक प्रमुख से लेकर जिला पंचायत अध्यक्ष के पदों के नीलामी पैसों के बल पर किस प्रकार की जा रही हैं। आज 75 में से 67 सीटों पर विजय पाकर भाजपा सत्तासीन सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है कि उसने विजयश्री बहुत ही आसानी से हासिल कर लिया। इसके पहले जब समाजवादी पार्टी की सरकार रही जो कि वास्तव में समाजवादी नहीं है। वह पूर्णतया परिवारवादी पार्टी है। उसने भी तो आर्थिक आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले तत्वों का साथ लेकर सब पर जीत हासिल कर लिया था। वह भी आगे बढ़ने का ही काम कर रही है। जनता स्वग विचार करें !!
मौजूदा आर्थिक आतंकवाद का पोषण करने वाली उसे बढ़ावा देने वाली सरकार एकाधिकारवाद की नीति पर अग्रसर है । चुनावो में जाति व धन बल के प्रभाव से लोग वाकिफ है। मगर हम सभी इसी जाल में फस जाते है। देश व प्रदेश की हालात किसी से छुपी नही हैं । कुल 75 जिला पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव होना था, और जब निर्णय आता है 75 में 67 पर भाजपा जीती सनद रहे उसके आर्थिक आतंक में सहयोगी पार्टी 05 सीट और 1 सीट रालोद को और सबसे दिलचस्प बात कि 21 निर्विरोध निर्वाचित हुए।
लेकिन पूरे चुनाव लेखाजोखा इस बात का प्रमाण है कि उत्तर प्रदेश में पंचायत के चुनाव में किस प्रकार का सेल लगा और हम आमजन किस लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्यों की बात कर रहे हैं। जब सुबह में आर्थिक आतंकी किसी दूसरे दल में होता है और सायंकाल उसका हृदयपरिवर्तन हो जाता है, और कहीं और कि शोभा बढ़ाता है इससे तो बेहतर होता कि जनता को परेशान न करके सीधे एक साथ ही सभी आर्थिक आतंकवादी और पार्टियों में आर्थिक आतंक फैलाने वाले गिरोह के लोग एक साथ बैठकर के बोली लगा ले, जो जितना धन बल से ताकतवर होगा भैंस उसकी होगी।इस लोकतंत्र में वही जीत का झंडा फहरायेगा जिसे आर्थिक आतंक फैलाने का अवसर मिला है।
आज सूबे सहित पूरे देश की राजनीति अंधी गली में जाते जाते इतनी गहरी खाई में गिर कर दब गई है। उसमें से ही बदबू आने लगी है। देश की राजनीति, राजनीति करने वाले लोग व दल लोकतंत्र विरोधी आर्थिक आतंकवादी गिरोह के यहां बंधक बनाए जा चुके है ? आज उनको कोई चुनौती तक नही दे पा रहा है ? जो कभी चुनौती दे सकता था, उसका साथ इस देश के दुर्भाग्यशाली लोगो तथा कथित राजनेताओं ने नही दिया और झूठ प्रपंच रच कर देश के अंदर अपने आर्थिक आतंकवाद को बढ़ाने के लिए समाजवाद के हितैषी और संभालने वाले लोगों को बदनाम करने का कुत्सित प्रयास भी किया गया है।
परिणामस्वरूप नागनाथ (बीजेपी) और कुछ संपोले सहायोगियो ने गठबंधन करके देश को भारत की जनता को कहीं का नही छोड़ा। हमारे भविष्य को दलदल में डाल दिया जिससे निकलने का उपाय खुद ढूढना है।
आज जरूरत इस बात की है कि देश को इन आर्थिक आतंकवादियों से कैसे बचाया जाय और इसका एकमात्र उपाय यह है कि हम महात्मा गांधी के बताए हुए रास्ते पर चलने का प्रयास शुरू करे । समाजवाद की तरफ अग्रसर हो वही एक मात्र रास्ता है देश को बचाने का गांधी जी ने जो कहा था उस विषय वस्तुओं पर ध्यान दें समाजवादियों व आजादी के दीवानों की राह अपना ले फिर शायद आर्थिक आंतकवादी देश से पलायन कर जाए।
गाँधी जी के ही बताए आर्थिक सामाजिक सोच को आप अपनाए। इस राह को अपनाने का समाजवादी सपना पूर्व प्रधानमंत्री जननायक चंद्रशेखर ने भी देखा था। उनका इसपर पूर्ण विश्वास रहा। इसको उन्होंने जगह-जगह उद्धरित भी किया है उसपर जीवन भर चलते रहे।
महात्मा गांधी के बताये स्वदेशी नीति की आज देश को जरूरत हैं ताकि क्रोनी कैपिटलिज्म से देश उबर कर एक बार फिर विकास के रास्ते पर चलता रहे।
योजनाओं का ग्रामिणकरण हो !
ग्रामो का औद्योगिकरण हो !
उद्योगो का श्रमिककरण हो !
श्रम का राष्ट्रीयकरण हो !
राष्ट्र का पूंजीकरण हो!
पूंजी का बिकेन्द्रीकरण हो !!
आखिर 1990 के बाद से इस देश मे ऐसा क्या हुआ कि चुनाव तक इतना महंगा हो गया कि कोई सामान्य सामाजिक व्यक्ति चुनाव में भाग लेने की हिम्मत नही जुटा पाता है। सोच भी नही सकता है। सोचकर बताइये …।