दिल्ली/चंडीगढ़: मशहूर धावक और उड़न सिख के नाम से पहचाने जाने वाले मिल्खा सिंह का कोरोना के पोस्ट रिकवरी के दौरान हुआ निधन, महान एथलीट पद्मश्री मिल्खा सिंह का शुक्रवार देर रात निधन हो गया। उन्होंने रात 11:30 बजे अंतिम सांस ली। मिल्खा सिंह कोरोना वायरस से तो उबर चुके थे लेकिन पोस्ट कोविड साइडइफेक्ट्स से वह नहीं उबर सके। उन्होंने चंडीगढ़ पीजीआइ में अंतिम सांस ली। वह 91 साल के थे। पांच नि पहले ही उनकी पत्नी निर्मल मिल्खा सिंह का भी पोस्ट कोविड से निधन हुआ था। अपनी पत्नी के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो सके थे। माना जा रहा है कि निर्मल कौर की मौत का सदमा उन्हें सहन नहीं हुआ। निर्मल मिल्खा सिंह भी कोरोना से रिकवरी कर रही थी।
भारत पाकिस्तान बंटवारे के दंश को देख था-
मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर, 1929 के दिन पाकिस्तान में हुआ। उनका गांव अविभाजित भारत के मुजफ्फरगढ़ जिले में पड़ता था, जो अब पश्चिमी पाकिस्तान में है। उनके गांव का नाम गोविंदपुरा था। वे राजपूत राठोर परिवार में जन्मे थे। उनके कुल 15 भाई-बहन थे, लेकिन उनका परिवार विभाजन की त्रासदी का शिकार हो गया, उस दौरान उनके माता-पिता के साथ आठ भाई-बहन भी मारे गए। बड़ी बहन के साथ मिल्खा सिंह भारत आये जहाँ विस्थापितों के लिए बने शिविर में काफी समय बिताया उन्होंने। उनकी जिंदगी पर फरहान अख्तर ने भाग मिल्खा भाग फ़िल्म भी बनाई।
काफी संघर्ष के बाद मिल्खा सिंह ने जिंदगी में फ्लाइंग सिख का मुकाम हासिल किया। मिल्खा सिंह भारत के इकलौते ऐसे एथलीट हैं जिन्होंने 400 मीटर की दौड़ में एशियाई खेलों के साथ साथ कॉमनवेल्थ खेलों में भी गोल्ड मेडल जीता। उन्होंने 1962 में भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की कप्तान रह चुकी निर्मल कौर से विवाह किया था। निर्मल कौर से उनकी पहली मुलाकात कोलंबो में हुई थी। उनके 4 बच्चे हैं, जिनमे 3 बेटियां और एक बेटा है। उनके बेटे जीव मिल्खा सिंह एक नामी गोल्फर हैं। मिल्खा सिंह भारत के खेल इतिहास के सबसे सफल एथलीट थे।
कैसे बने फ्लाइंग सिख-
मिल्खा सिंह को अगर आज देश उड़न सिख के नाम से जानता है, तो इसका योगदान देश के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को जाता है क्योंकि, जिस रेस में उन्हें ये खिताब मिला उस रेस के लिए उन्होंने जाने से पहले मना कर दिया था, क्योंकि बचपन की कड़वी यादें पाकिस्तान की उनके जेहन में मौजूद थी, पर प्रधानमंत्री के समझाने के बाद वो तैयार हुये और देश को खेल जगत को मिला फ्लाइंग सिख आजतक उनका रिकॉर्ड कोई तोड़ नहीं पाया है।
1960 के रोम ओलिंपिक में पदक से चूकने का मिल्खा सिंह के मन में खासा मलाल था। इसी साल उन्हें पाकिस्तान में आयोजित इंटरनेशनल एथलीट कम्पटिशन में हिस्सा लेने का न्योता मिला। जिसे उन्होंने बाद में पंडित जी के कहने पर स्वीकार कर लिया था।
पाकिस्तान में उस समय एथलेटिक्स में अब्दुल खालिक का नाम बेहद मशहूर था। उन्हें वहां का सबसे तेज धावक माना जाता था। यहां मिल्खा सिंह का मुकाबला उन्हीं से था। अब्दुल खालिक के साथ हुई इस दौड़ में हालात मिल्खा के खिलाफ थे और पूरा स्टेडियम अपने हीरो का जोश बढ़ा रहा था लेकिन मिल्खा की रफ्तार के सामने खालिक टिक नहीं पाए। रेस के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने मिल्खा सिंह को ‘फ्लाइंग सिख’ का नाम दिया और कहा ‘आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो। इसलिए हम तुम्हें फ्लाइंग सिख का खिताब देते हैं”। इसके बाद से ही वो इस नाम से दुनिया भर में मशहूर हो गए। खेलों में उनके अतुल्य योगदान के लिये भारत सरकार ने उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से भी सम्मानित किया ।
अपनी बायोपिक फिल्म के लॉन्चिंग के मौके पर मिल्खा सिंह (Milkha Singh Dies) ने पाकिस्तान दौरे को याद कर कहा था, ‘ मुझे 1960 में पाकिस्तान से लाहौर में दौड़ने का आमंत्रण आया था। मगर मैंने पाकिस्तान जाने से इनकार कर दिया था। क्यों इनकार किया क्योंकि जब उस रात की सीन मेरी आंखों के सामने आता था कि किस तरह बंटवारे के समय मेरे मां-बाप, भाई बहनों को मारा जा रहा था तब मेरा दिल दहल जाता था और मैंने कहा कि मैं पाकिस्तान नहीं जाउंगा। मगर पंडित जी ने मुझे बुलाया और कहा कि मिल्खा जी नहीं, हमारा पड़ोसी देश है। खेल प्यार बढ़ाती है और भाईचारा करती है। हमने जाना ही जाना है पाकिस्तान।’
कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को स्वर्ण पदक दिलवाने वाले पहले भारतीय-
मिल्खा सिंह ने साल 1958 में कटक में आयोजित नेशनल गेम्स में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर स्पर्धा में रिकॉर्ड बनाए। इसके बाद उसी साल टोक्यो में आयोजित हुए एशियन गेम्स में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में भी गोल्ड मेडल अपने नाम किया। साल 1958 में ही इंग्लैंड के कार्डिफ में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में मिल्खा ने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए 400 मीटर की रेस में गोल्ड मेडल अपने नाम किया. उस समय आजाद भारत में कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को स्वर्ण पदक जीताने वाले वे पहले भारतीय थे।
1958 के एशियाई खेलो में मिली सफलता के बाद मिल्खा सिंह को आर्मी में जूनियर कमीशन का पद मिला। साल 1960 में रोम में आयोजित ओलंपिक खेलों में उन्होंने 400 मीटर की रेस में शानदार प्रदर्शन किया लेकिन अंतिम पलों में वे जर्मनी के एथलीट कार्ल कूफमैन से सेकेंड के सौवें हिस्से से पिछड़ गए थे और कांस्य पदक जीतने से मामूली अंतर से चूक गए थे। इस दौरान उन्होंने इस रेस में पूर्व ओलंपिक कीर्तिमान भी तोड़ा और 400 मीटर की दौड़ 45.73 सेकेंड में पूरी कर नेशनल रिकॉर्ड भी बनाया। 400 मीटर की रेस में उनका ये रिकॉर्ड 40 साल बाद जाकर टूटा।
1960 के रोम ओलंपिक और टोक्यो में आयोजित 1964 के ओलंपिक में मिल्खा सिंह अपने शानदार प्रदर्शन के साथ दशकों तक भारत के सबसे महान ओलंपियन बने रहे। 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर और चार गुना 400 मीटर रिले दौड़ में भी गोल्ड मेडल हासिल किया था।
मिल्खा सिंह के निधन पर राजनेताओं सहित खेल और सामाजिक क्षेत्रों से जुड़े लाेगों ने शोक जताया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, हरियाणा के गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने शोक जताया है और श्रद्धांजलि दी है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मिल्खा सिंह के निधन पर पंजाब में एक दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है।
Shri Milkha Singh ji was not just a sports star but a source of inspiration for millions of Indians for his dedication and resilience.
My condolences to his family and friends.
India remembers her #FlyingSikh pic.twitter.com/dE70KmiQJz
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) June 19, 2021