म्यांमार में 1 फरवरी को सेना ने सत्ता अपने हाथ में लेकर राष्ट्रपति यू विन मिंट के साथ राष्ट्रीय सलाहकार आंग सान सू को हिरासत में लेकर देश में 1 साल के लिए आपातकाल की घोषणा की थी। सेना का कहना था कि नवंबर में हुये चुनाव में धांधली हुई थी , जिसकी शिकायत चुनाव आयोग में भी की गई पर आयोग ने मानने से इनकार कर दिया था।
तख़्तापलट के बाद और सेना की सख्ती के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है। बड़ी संख्या में सड़कों पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है। प्रदर्शन पर रोक और सुरक्षा बलों द्वारा की गई कार्रवाई के बावजूद बुधवार को म्यांमार में लोगों ने सड़कों पर उतरकर तख्तापलट का विरोध किया। बुधवार को हिंसा की कोई खबर तो सामने नहीं आई, लेकिन सेना द्वारा उस अस्पताल पर कब्जे करने की बात पता चली है, जिसमें प्रदर्शनकारियों का इलाज किया जा रहा था। सुरक्षा बलों द्वारा अपदस्थ नेता आंग सान सू की राजनीतिक पार्टी के मुख्यालय पर छापा भी मारा गया।
विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुई पुलिस
देश के दो सबसे बड़े शहरों यंगून और मांडले के साथ-साथ राजधानी नेपिता और अन्य स्थानों पर हुए विरोध-प्रदर्शनों में लोगों ने भाग लिया।
हजारों सरकारी कर्मचारी भी इन प्रदर्शनों में भाग ले रहे हैं। केह प्रांत में पुलिस से जुड़े एक समूह ने भी विरोध-प्रदर्शन में हिस्सा लिया। ये लोग ‘हम तानाशाही नहीं चाहते’ जैसा पोस्टर लेकर चल रहे थे। राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक बढ़ते विरोध-प्रदर्शन और सेना द्वारा की जा रही कार्रवाई से यह बात पूरी तरह तय हो गई है कि अब दोनों पक्षों में सहमति होने की संभावना नहीं बची है।
सुरक्षा बलों ने दागी गोलियां
नेपिता और मांडले में मंगलवार को पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर वाटर कैनन और रबर की बुलेट चलाई थी। इंटरनेट मीडिया पर चल रही कुछ तस्वीरों में सुरक्षा बलों को गोलियां दागे जाते दिखाया गया है। मानवाधिकारों पर नजर रखने वाले अमेरिका के एक संगठन ने मंगलवार के प्रदर्शन में घायल हुई एक महिला की हालत गंभीर बताई है। अस्पताल से जुड़े डॉक्टरों का कहना है कि उसके बचने की संभावना बहुत कम है।
म्यांमार में हुए ये प्रदर्शन साल 2007 में हुई तथाकथित केसरिया क्रांति के बाद से सबसे बड़े प्रदर्शन हैं। देश के कई शहरों में दसियों हज़ार लोग सड़क पर उतर रहे हैं। सोमवार को पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को घर लौटने या फिर बल का सामना करने की चेतावनी दी।
म्यांमार को सहायता की समीक्षा करेगा अमेरिका
संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बल प्रयोग की निंदा की है। विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने मंगलवार को कहा कि वाशिंगटन म्यांमार को सहायता की समीक्षा करेगा ताकि तख्तापलट के लिए जिम्मेदार लोगों को सबक सिखाया जा सके। हम सेना से एक बार फिर अपील करते हैं कि लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार को बहाल करे, जिन्हें पकड़ा गया है उन्हें रिहा किया जाए, संचार सेवाओं पर लगे प्रतिबंधों को हटाया जाए।
शुक्रवार को होगी यूएनएचआरसी में चर्चा
जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) म्यांमार पर स्थिति की चर्चा के लिए शुक्रवार को एक विशेष सत्र आयोजित करेगा। 47 सदस्यीय परिषद से ब्रिटेन और यूरोपीय यूनियन ने अधिवेशन बुलाने की पहल की थी। माना जा रहा है कि स्थिति की गंभीरता को देखते हुए बैठक में ना केवल म्यांमार के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया जा सकता है बल्कि कार्रवाई की भी सिफारिश की जा सकती है
भारत में भी अलर्ट जारी किया गया
म्यांमार में तख्तापलट के बाद भारत में भी अलर्ट जारी किया गया है। ऐसे में मिजोरम के अलावा मणिपुर से लगी म्यांमार की सीमा पर घुसपैठ की संभावना को देखते हुए सुरक्षा बढ़ा दी गई है। इस बीच म्यांमार के सशस्त्र उग्रवादी समूह चिन नेशनल आर्मी (सीएनए) ने भारत में अपने परिवारों के लिए शरण की गुहार लगाई है। ये करीब 40 परिवार है जिनके लिए भारत से मदद की गुहार लगाई गई है।
मिजोरम के चंफाई जिला की उपायुक्त मारिया सी टी जुआली ने जानकारी दी है कि चिन नेशनल फ्रंट (सीएनएफ) की सशस्त्र इकाई सीएनए ने 40 परिवारों के लिए शरण का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा, ”सीएनए ने फरकावन ग्राम परिषद के अध्यक्ष से इस बारे में बात की और उन्होंने चंफाई जिला प्रशासन को इस बारे में अवगत कराया।”
अधिकारियों ने बताया कि जिला प्रशासन ने तख्तापलट के मद्देनजर म्यांमार से बड़ी संख्या में शरणार्थियों के आने की आशंका को लेकर एक अलर्ट जारी किया है। गौरतलब है कि मिजोरम में म्यांमार से लगी 404 किलोमीटर की अंतरराष्ट्रीय सीमा है।
सीमावर्ती इलाकों में चिन समुदाय की बड़ी आबादी रहती है। यह लोग म्यांमार में हुई कोई तीन दशक पहले हिंसा के बाद शरण के लिए सीमा पार कर मिजोरम आ गए थे। मिजोरम की राजधानी आइजोल में ही चिन समुदाय के तीन हजार से ज्यादा लोग रहते हैं।
जुआली ने मंगलवार को एक अधिसूचना भी जारी की थी। इस अधिसूचना के तहत सभी गांवों को इलाके में म्यांमार के शरणार्थियों के दिखने पर जिला प्रशासन को सूचित करने का निर्देश दिया गया है।
अधिकारियों ने बताया कि 1980 के दशक में सैन्य जुंटा के कारण म्यांमार के चिन समुदाय के हजारों सदस्य मिजोरम आ गए थे। पड़ोसी देश में लोकतंत्र बहाल होने पर कई लोग लौट गए थे, लेकिन हजारों लोग अब भी राज्य में हैं। म्यांमार के चिन और भारत के मिजो, एक ही कुल और संस्कृति के हैं।
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