दिल्ली की एक अदालत ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा उनके खिलाफ दर्ज कराए गए मानहानि मामले में दोषी ठहराया है। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने पाटकर को आपराधिक मानहानि का दोषी पाया। पाटकर और सक्सेना के बीच 2000 से कानूनी लड़ाई चल रही है, जब उन्होंने उनके और नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए उनके खिलाफ मुकदमा दायर किया था।
उस समय सक्सेना अहमदाबाद स्थित एनजीओ नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे। एक टीवी चैनल पर उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और मानहानिकारक बयान जारी करने के आरोप में सक्सेना ने उनके खिलाफ दो मामले भी दर्ज कराए थे।
सक्सेना ने पाटकर के खिलाफ 25 नवंबर, 2000 को अहमदाबाद की एक अदालत में मानहानि का शिकायत किया था और उसमें पाटकर की एक प्रेस नोट का हवाला दिया था। प्रेस नोट ‘देशभक्त का असली चेहरा‘ शीषर्क से था और उसमें कहा गया था कि हवाला लेन-देन से दुखी वीके सक्सेना खुद मालेगांव आए। एनबीए की तारीफ की और 40 हजार रुपए का चेक दिया। लेकिन चेक भुनाया नहीं जा सका और बाउंस हो गया। जांच करने पर बैंक ने बताया कि खाता मौजूद ही नहीं है। पाटकर ने यह भी कहा था कि सक्सेना कायर है, देशभक्त नहीं। अदालत ने इस मामले में वर्ष 2001 में संज्ञान ले लिया था और पाटकर को नोटिस जारी किया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से इस मुकदमे को दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया था। पाटकर ने खुद को निर्दोष बताया और आरोप साबित करने की बात कही थी।
अदालत ने कहा कि सक्सेना के खिलाफ पाटकर के बयान “न केवल मानहानिकारक थे, बल्कि नकारात्मक धारणाओं को भड़काने के लिए भी तैयार किए गए थे”।
अदालत के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने पाटकर को आईपीसी की धारा 500 के तहत दोषी ठहराया है और सजा के बिंदु पर सुनवाई 30 मई के लिए स्थगित कर दी है।
मजिस्ट्रेट ने अपने फैसले में कहा है कि पाटकर की हरकतें जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण थीं, जिसका उद्देश्य सक्सेना की अच्छी छवि को धूमिल करना था। इससे उनकी छवि और साख को काफी नुकसान पहुंचा है। उनके लगाए गए आरोप भी न केवल मानहानिकारक हैं, बल्कि नकारात्मक धारणाओं को भड़काने के लिए भी गढ़े हुए हैं।
इसके अलावा यह आरोप कि शिकायतकर्ता गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए गिरवी रख रहा है, यह उनकी ईमानदारी और सार्वजनिक सेवा पर सीधा हमला है। शिकायतकर्ता को ‘कायर व देशभक्त नहीं‘ के रूप में लेबल करने का पाटकर का बयान उनके व्यक्तिगत चरित्र और राष्ट्र के प्रति वफादारी पर सीधा हमला था।
अदालत ने कहा कि इस तरह के आरोप सार्वजनिक क्षेत्र में विशेष रूप से गंभीर हैं, जहां देशभक्ति को बहुत महत्व दिया जाता है। किसी के साहस और देश के प्रति निष्ठा पर सवाल उठाने से उनकी सार्वजनिक छवि और सामाजिक प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति हो सकती है। ये शब्द न केवल भड़काऊ थे, बल्कि सार्वजनिक जीवन में उन्हें नीचा दिखाना व उनके सम्मान को कम करने के इरादे से था।
अदालत ने कहा, “मेधा पाटकर ने आईपीसी की धारा 500 के तहत दंडनीय अपराध किया है। उन्हें इसके लिए दोषी ठहराया जाता है।”
संबंधित कानून के तहत पाटकर को सजा के तौर पर दो साल की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।