बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। राष्ट्रपति कार्यालय की ओर से यह घोषणा दिवंगत समाजवादी नेता की जयंती से एक दिन पहले की गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्पूरी ठाकुर को ‘सामाजिक न्याय का प्रतीक’ बताते हुए कहा कि दलितों के उत्थान के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता और उनके दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने पर एक अमिट छाप छोड़ी है।
पीएम मोदी ने कहा, “मुझे इस बात की बहुत प्रसन्नता हो रही है कि भारत सरकार ने समाजिक न्याय के पुरोधा महान जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। उनकी जन्म-शताब्दी के अवसर पर यह निर्णय देशवासियों को गौरवान्वित करने वाला है। पिछड़ों और वंचितों के उत्थान के लिए कर्पूरी जी की अटूट प्रतिबद्धता और दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ी है। यह भारत रत्न न केवल उनके अतुलनीय योगदान का विनम्र सम्मान है, बल्कि इससे समाज में समरसता को और बढ़ावा मिलेगा।”
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सरकार के इस फैसले पर ख़ुशी जताते हुए के कर्पूरी ठाकुर बेटे और जेडीयू सांसद रामनाथ ठाकुर ने कहा, “मैं अपनी तरफ से, अपनी पार्टी की तरफ से और बिहार के लोगों की तरफ से केंद्र सरकार को धन्यवाद देना चाहता हूं। मैं इसे राजनीति के रूप से नहीं देखता हूं। बुधवार को उनकी (कर्पूरी ठाकुर) 100वीं जयंती है शायद उसी को देखते हुए केंद्र सरकार ने यह फैसला लिया है।”
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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और सामाजिक न्याय के जनक माने जाने वाले जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत सरकार द्वारा भारत रत्न से सम्मानित किए जाने के निर्णय की मैं भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए हर्ष की अभिव्यक्ति करता हूं। कर्पूरी ठाकुर ने आजीवन समाज के गरीब एवं पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिए काम किया। उनसे ही प्रेरणा लेते हुए मैंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में अति पिछड़ा और अति दलित वर्ग के कल्याण के लिए आरक्षण की सुविधा देने का कानून बनाया था। उन्होंने कहा कि कर्पूरी को भारत रत्न देने का निर्णय सामाजिक समरसता एवं गरीब कल्याण के विचार का और सार्वजनिक जीवन में उनके योगदान का सम्मान है। इस निर्णय के लिए मैं राष्ट्रपतिभवन को धन्यवाद देता हूं एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूं।
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सामाजिक न्याय के अग्रदूत, जननायक कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से विभूषित किए जाने का निर्णय अभिनंदनीय है। सामाजिक न्याय को समृद्ध करता यह निर्णय लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रति उनकी सच्ची श्रद्धा तथा वंचितों, शोषितों व उपेक्षितों के उन्नयन हेतु उनके योगदानों के प्रति देशवासियों की ओर से समेकित श्रद्धांजलि है।
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जनता दल यूनाइटेड ने कर्पूरी को भारत रत्न दिए जाने की केंद्र सरकार से मांग की थी। बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ने ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की घोषणा पर खुशी जाहिर करते हुए इसे सरकार का सही फैसला बताया। मुख्यमंत्री ने कहा कि कर्पूरी ठाकुर को उनकी 100वीं जयंती पर दिया जाने वाला ये सर्वोच्च सम्मान दलितों, वंचितों और उपेक्षित तबकों के बीच सकारात्मक भाव पैदा करेगा। उन्होंने कहा कि वो हमेशा से कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग करते रहे हैं। आज कर्पूरी ठाकुर जी को दिए जाने वाले इस सम्मान से उन्हें खुशी मिली है और जेडीयू की वर्षो पुरानी मांग पूरी हुई है।
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने के ऐलान के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि जननायक कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत घोषित भारत रत्न दरअसल सामाजिक न्याय के आंदोलन की जीत है, जो दर्शाती है कि सामाजिक न्याय व आरक्षण के परंपरागत विरोधियों को भी मन मारकर अब पीडीए के 90 फीसदी लोगों की एकजुटता के आगे झुकना पड़ रहा है। पीडीए की एकता फलीभूत हो रही है. पीडीए हराएगा एनडीए।
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कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने के ऐलान का राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने स्वागत किया है लेकिन साथ ही केंद्र पर निशाना भी साधा है। आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का फैसला केंद्र सरकार ने किया है। ये वही बीजेपी है, जो कर्पूरी ठाकुर को जीते-जी गाली दे रही थी। बीजेपी को वो बरसों तक याद नहीं आए। हम लोगों ने, हमारे नेता लालू यादव ने कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने की लगातार मांग की है। तिवारी ने कहा कि अब जब चुनाव नजदीक है तो बीजेपी को कर्पूरी ठाकुर याद आ रहे हैं। इन्हें वोट के लिए वो याद आ रहे हैं। लेकिन इन्हीं लोगों ने उन्हें काफी जलील किया है। हम लोगों के दबाव में केंद्र सरकार ने ठाकुर को भारत रत्न देने का फैसला लिया है।
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राजद प्रमुख लालू यादव ने कहा, “मेरे राजनीतिक और वैचारिक गुरु स्व॰ कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न अब से बहुत पहले मिलना चाहिए था। हमने सदन से लेकर सड़क तक ये आवाज़ उठायी लेकिन केंद्र सरकार तब जागी जब सामाजिक सरोकार की मौजूदा बिहार सरकार ने जातिगत जनगणना करवाई और आरक्षण का दायरा बहुजन हितार्थ बढ़ाया। डर ही सही राजनीति को दलित बहुजन सरोकार पर आना ही होगा।”
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कांग्रेस ने भी सरकार के फैसले का स्वागत किया है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, “सामाजिक न्याय के प्रणेता जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न दिया जाना भले ही मोदी सरकार की हताशा और पाखंड को दर्शाता है, फिर भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कर्पूरी ठाकुर जी को मरणोपरांत भारत रत्न दिए जाने का स्वागत करती है। ‘भागीदारी न्याय’ भारत जोड़ो न्याय यात्रा के पांच स्तंभों में से एक है, इसके आरंभिक बिंदु के रूप में राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना की आवश्यकता होगी। श्री राहुल गांधी जी लगातार इसकी वकालत करते रहे हैं, लेकिन मोदी सरकार ने सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना 2011 के नतीजे जारी करने से इनकार कर दिया है और एक नई राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना कराने से भी इनकार कर दिया है। सभी वर्गों को भागीदारी देने के लिए जातिगत जनगणना कराना ही सही मायनों में जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को सबसे उचित श्रद्धांजलि होती, मगर मोदी सरकार इससे भाग रही है।”
कौन थे कर्पूरी ठाकुर-
24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर के पितौंझिया (अब कर्पूरीग्राम) में कर्पूरी ठाकुर का जन्म हुआ था। वो हज्जाम (नाई) समाज से आते थे, जो अति पिछड़ा वर्ग में आती है। कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार डिप्टी सीएम, दो बार मुख्यमंत्री और कई बार विधायक और विपक्ष के नेता रहे। 1952 में सोशलिस्ट पार्टी की टिकट पर ताजपुर सीट से पहला विधानसभा चुनाव जीता था। इसके बाद से वो कोई भी विधानसभा चुाव नहीं हारे। कर्पूरी ठाकुर दो बार मुख्यमंत्री जरूर रहे, लेकिन कार्यकाल कभी पूरा नहीं कर सके। वो दो बार- दिसंबर 1970 से जून 1971 तक और दिसंबर 1977 से अप्रैल 1979 तक मुख्यमंत्री रहे हैं। हालांकि, खास बात ये है कि वो बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे।
कर्पूरी ठाकुर, सामाजिक न्याय का पर्याय और उत्तर भारत में पिछड़े वर्गों की वकालत करने वाला नाम, बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में एक प्रभावशाली व्यक्ति बने रहे। नाई समाज में गोकुल ठाकुर और रामदुलारी देवी के घर जन्मे कर्पूरी ठाकुर की साधारण शुरुआत से लेकर बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता के गलियारों तक की यात्रा सार्वजनिक सेवा के प्रति उनके लचीलेपन और समर्पण का प्रमाण थी।
1970 के दशक में बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल अभूतपूर्व था, खासकर समाज के वंचित वर्गों के लिए। दिल से समाजवादी, ठाकुर अपने छात्र जीवन के दौरान राष्ट्रवादी विचारों से गहराई से प्रभावित थे और बाद में ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन में शामिल हो गए। उनकी राजनीतिक विचारधारा को ‘लोहिया’ विचारधारा द्वारा आगे आकार दिया गया, जिसने निचली जातियों को सशक्त बनाने पर जोर दिया।
ठाकुर के सबसे महत्वपूर्ण योगदानों में से एक आरक्षण के लिए “कर्पूरी ठाकुर फॉर्मूला” की शुरुआत थी, जिसका उद्देश्य सरकारी सेवाओं में पिछड़े वर्गों के लिए समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना था।
नवंबर 1978 में उन्होंने बिहार में पिछड़े वर्गों के लिए 26 प्रतिशत आरक्षण लागू किया। यह एक ऐसा कदम था जिसने 1990 के दशक में मंडल आयोग की सिफारिशों के लिए मंच तैयार किया। इस नीति ने न केवल पिछड़े वर्गों को सशक्त बनाया बल्कि क्षेत्रीय दलों के उदय को भी बढ़ावा दिया जिसने हिंदी पट्टी में राजनीति का चेहरा बदल दिया।
एक शिक्षा मंत्री के रूप में ठाकुर ने मैट्रिक स्तर पर अंग्रेजी को अनिवार्य विषय के रूप में समाप्त कर दिया। उन्होंने विशेष रूप से पिछड़े क्षेत्रों में कई स्कूल और कॉलेज स्थापित किए, और कक्षा 8 तक की शिक्षा मुफ्त कर दी, जिससे स्कूल छोड़ने की दर में काफी कमी आई।
कर्पूरी ठाकुर की विरासत शैक्षिक सुधारों से भी आगे तक फैली हुई है। उन्होंने प्रमुख भूमि सुधारों की शुरुआत की, जिससे जमींदारों से भूमिहीन दलितों को भूमि का पुनर्वितरण हुआ, जिससे उन्हें “जननायक” या पीपुल्स हीरो की उपाधि मिली।
विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग से महत्वपूर्ण प्रतिरोध और दुर्व्यवहार का सामना करने के बावजूद, ठाकुर की नीतियों ने भविष्य के नेताओं के लिए सामाजिक न्याय की वकालत जारी रखने के लिए आधार तैयार किया।