बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किए गए एक एक वैज्ञानिक अध्ययन में दावा किया गया है कि भारत में वास्तविक कोरोना संक्रमण (बिना रिपोर्ट किए गए और गैर-लक्षण वाले मामलों समेत) की संख्या संभवतः 4.5 करोड़ के आधिकारिक आंकड़े से 17 गुना अधिक हो सकती है। अध्ययन में देश के कई अन्य संस्थानों के वैज्ञानिक भी शामिल थे। यह अध्ययन प्रतिष्ठित इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इंफेक्शियस डिजीज में प्रकाशित हुआ है।
The study led by BHU geneticist Prof. Gyaneshwer Chaubey, Department of Zoology, Institute of Science, also involved 88 scientists from 34 research institutes across the country. Here's the online link of the paper: https://t.co/nu3HETw6Gh #BHUInMedia #BHUInNews
— BHU RESEARCH DESK (@BHUResearchDesk) February 8, 2023
बीएचयू के विज्ञान संस्थान के जूलॉजी विभाग के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में देश भर के 34 शोध संस्थानों के 88 वैज्ञानिकों को भी शामिल किया गया था। वैज्ञानिकों की इस टीम ने सितंबर से दिसंबर, 2020 तक भारत के छह राज्यों के 14 जिलों के शहरी क्षेत्रों में 2,301 व्यक्तियों के बीच सीरोसर्वे (एंटीबॉडी परीक्षण) किया।
प्रो. चौबे ने कहा कि इस अध्ययन का सबसे खास पहलू यह था कि भारतीय आबादी का एक बड़ा हिस्सा कोविड-19 से लक्षणहीन था और 26-35 आयु वर्ग के लोगों में बिना लक्षण वालों की संख्या सबसे अधिक थी।
शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया कि किसी भी कोविड लहर के बाद लोगों में एंटीबॉडी परीक्षण से वास्तविक संक्रमण का सटीक आकलन किया जा सकता है। इसी वजह से इस प्रक्रिया को अपनाते हुए टीम ने 14 भारतीय जिलों के शहरी क्षेत्रों में रहने वाले उन लोगों (स्ट्रीट वेंडर्स) के बीच यह शोध किया, जिन्हें कोरोना वायरस संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा था।
प्रो. चौबे के मुताबिक़, ‘नमूने केवल उन लोगों के लिए गए थे जिन्होंने ये बताया था कि उन्होंने अपने अंदर कभी भी कोविड-19 का लक्षण नहीं पाया और ना उनका आरटीपीसीआर टेस्ट पॉजीटिव आया था। एंटीबॉडी पॉजिटिव लोगों का न्यूनतम अनुपात छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले (2%) में देखा गया, जबकि एंटीबॉडी पॉजिटिव व्यक्तियों का अधिकतम अनुपात उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले (47%) में पाया गया।
ये अध्ययन बताती है कि संक्रमण की आधिकारिक संख्या और वास्तविक संभावित संक्रमण के बीच का अंतर, लक्षणहीन मामलों की बड़ी संख्या के कारण हो सकता है जो कभी रिपोर्ट नहीं किए गए थे। आकलन पर पहुंचने के लिए अध्ययन गणितीय मॉडलिंग पर निर्भर था।