सिनेमाघरों में बाहर से खाने-पीने की चीजों को ले जाने की इजाजत देने के जम्मू हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स में बाहर से खाने की चीजें लाने पर रोक लगाना बिल्क़ुल सही है। कोर्ट ने कहा कि सिनेमा हॉल जिम नहीं है, जहां आपको पौष्टिक भोजन चाहिए। वह मनोरंजन की जगह है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- सिनेमा हॉल प्रबंधन की निजी संपत्ति है। यह सिनेमा हॉल मालिकों के व्यापार के अधिकार के दायरे में आता है। इस अधिकार को उनसे नहीं छीना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी को भी सिनेमा हॉल परिसर में मिलने वाली चीजें खाने के लिए बाध्य नहीं किया जाता। ये अपनी इच्छा है। जिसे वहां कहना हो खाए, न खाना हो, न खाए।
Supreme Court observes that cinema halls are fully entitled to set their terms and conditions for the sale of food and beverages inside the halls.
Court says a moviegoer has a choice to not consume the food and beverages served inside theatres.
— ANI (@ANI) January 3, 2023
सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर के सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स मालिकों की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये आदेश दिया। सिनेमा हॉल में बाहर का खाना ले जाने की अनुमति मिलनी चाहिए या नहीं? इस मुद्दे पर जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने साल 2018 में एक आदेश दिया था कि सिनेमा हॉल में बाहर का खाना ले जाने की अनुमति होनी चाहिए। हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ जम्मू-कश्मीर सिनेमा हॉल ऑनर्स एसोसिएशन सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। हाई कोर्ट ने तब यह आदेश दिया था कि सिनेमा हॉल में आने वाले लोग बाहर से खाने की चीजें ला सकते हैं। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के उस फैसले को निरस्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को अनुचित बताते हुए कहा कि ये आदेश देते हुए हाईकोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया।
CJI डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने कहा, ”सिनेमा हॉल कोई जिम नहीं है जहां आपको पौष्टिक भोजन की आवश्यकता है। यह एक मनोरंजन का स्थान है। सिनेमा हॉल प्राइवेट प्रोपर्टी है। यहां उसके मालिक ही मर्जी चलेगी। हाई कोर्ट कैसे कह सकता है कि वे सिनेमा हॉल के अंदर कोई भी खाना ला सकते हैं?”
CJI डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने सुनवाई के दौरान कई दिलचस्प टिप्पणियां कीं। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ”अगर कोई सिनेमा हॉल में जलेबी लेकर जाना चाहे तो प्रबंधन उसे मना कर सकता है। अगर दर्शक ने जलेबी खाकर सीट से अपनी चाशनी वाली अंगुलियां पोंछ ली तो सीट खराब हो सकती है। इसके बाद सीट की सफाई का खर्च कौन देगा? कुछ लोग तंदूरी चिकन लेकर भी सिनेमा हॉल आते हैं लेकिन बाद में उनकी हड्डियां वहीं छोड़ जाते हैं। उससे भी कुछ लोगों को परेशानी होती है।”
CJI ने कहा कि, “जब टीवी पर 11 बजे के बाद कुछ ‘खास’ वर्ग की फिल्मों के प्रसारण का नियम बनाया गया तो उसका मकसद ये था की बच्चों के सोने के बाद वयस्क लोग वो फिल्में देख सकें। जब वो बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के तौर पर ऐसी PIL सुन रहे थे तो उन्होंने दूसरे जज से कहा था कि देर रात में वयस्क तो खाना पीना खा पी कर सो जाते हैं। बच्चे ही जागे रहते हैं। मैंने जज से पूछा कि क्या उन्होंने कभी 11 बजे के बाद फिल्म देखी है। जज ने कहा कि कभी नहीं। बहुत देर हो जाती है”।