राष्ट्रपति चुनाव में देश के करीब आठ बरस से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जानती पार्टी यानि बीजेपी की रणनीति का विपक्षी पार्टियां कोई तोड़ नहीं पेश कर सकीं। बीजेपी के नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस यानि एनडीए ने झारखंड की राज्यपाल रहीं द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाया। जैसे अंदाजा था इंडिया दैट इज भारत का नया प्रेसीडेंट बनने कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों समेत करीब सभी दलों के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा की राष्ट्रपति भवन पर काबिज होने की मुहीम का नतीजा 21 जुलाई को निकलने पर हार ही गए।
भारत के सभी राज्यों और दिल्ली, पुडुचेरी, जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेशों की राजधानी में उनके विधानसभा भवन में 18 जुलाई को बैलेट से वोटिंग हुई। उनकी काउंटिंग सभी बैलेट बॉक्स दिल्ली लाकर 21 जुलाई को हुई। इस चुनाव में नामजदगी के 115 पर्चे दाखिल हुए जिनमें मुर्मू जी और सिन्हा जी के सिवाय सभी खारिज कर दिए गए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मुर्मू जी के दिल्ली के आवास जाकर बधाई दी। गुरुवार को सुबह 11 बजे शुरू काउंटिंग में मुर्मू जी ने कांग्रेस की अगुवाई के यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस यानि यूपीए और अन्य के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को तीसरे राउंड की गिनती में ही हरा दिया।मुर्मू जी को जीत के लिए जरूरी 5 लाख 43 हजार 261 वोट इसी राउंड में मिल गए।इस राउंड में उन्हें 5 लाख 77 हजार 777 वोट मिले। सिन्हा जी इस राउंड में 2 लाख 61 हजार 62 वोट ही जुटा सके। इसमें राज्यसभा और लोकसभा के सांसदों समेत 20 राज्यों के विधायकों के वोट शामिल थे। मुर्मू जी को केरल से सिर्फ एक वोट मिला। सिन्हा जी को 3 राज्यों से एक भी वोट नहीं मिला। वोटों की गिनती गुरुवार देर रात 4 राउंड में पूरी हुई। कुल 4754 वोट पड़े थे। गिनती के वक्त 4701 वोट वैध और 53 अमान्य पाए गए। कुल वोटों का कोटा 5,28,491 था। इसमें मुर्मू जी को कुल 2824 वोट मिले। इनकी वैल्यू 6 लाख 76 हजार 803 थी। मुर्मू जी को यूपी से सबसे ज्यादा 287 वोट मिले।सिन्हा जी को कुल 1877 वोट मिले, जिनकी वैल्यू 3 लाख 80 हजार 177 रही। सिन्हा जी को आंध्र प्रदेश, नागालैंड और सिक्किम से एक भी वोट नहीं मिला। उन्हें सबसे ज्यादा 216 वोट पश्चिम बंगाल से मिले। वोट प्रतिशत के हिसाब से मुर्मू जी को 64% और सिन्हा जी को 36 फीसद वोट मिले।
पहले राउंड की गिनती में मुर्मू जी को 540 और सिन्हा जी को 208 सांसदों के वोट मिले। राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल पीसी मोदी के मुताबिक दोपहर 2 बजे सांसदों के वोटो की गिनती पूरी हुई। इसमें द्रौपदी मुर्मू को 540 वोट मिले। इनकी कुल वैल्यू 3 लाख 78 हजार है। यशवंत सिन्हा को 208 सांसदों के वोट मिले। इनकी वैल्यू 1 लाख 45 हजार 600 है। सांसदों के कुल 15 वोट रद्द हो गए। जानकार सूत्रों के मुताबिक 17 सांसदों ने क्रॉस वोटिंग की। दूसरे राउंड की गिनती में 10 राज्यों में 10 राज्यों की गिनती में भी मुर्मू जी और सिन्हा जी के बीच काफी अंतर था। इन राज्यों में कुल 1 लाख 49 हजार 575 वैल्यू के 1138 वोट थे। मुर्मू जी को मिले वोटों की वैल्यू 1 लाख 5 हजार 299 है।सिन्हा जी को 329 वोट मिलें जिनकी वैल्यू 44 हजार 276 है।इन 10 राज्यों में अरुणाचल प्रदेश,असम,बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड , आंध्र प्रदेश के वोट थे। इनमें से 7 राज्यों में भाजपा और गठबंधन की सरकारें हैं। झारखंड और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की सरकार है। तीसरे राउंड की गिनती में मुर्मू जी को 812 और सिन्हा जी को 521 वोट मिले। इस राउंड के 10 राज्यों की गिनती में भी मुर्मू जी और सिन्हा जी के बीच बड़ा अंतर रहा। इन राज्यों में कुल 1,333 वोट हैं जिनकी वैल्यू 1 लाख 65 हजार 664 है। इनमें मुर्मू जी को 812 और सिन्हा जी को 521 वोट मिले। इन 10 राज्यों में कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, ओड़िशा और पंजाब के वोट हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ट्वीट में मुर्मू को बधाई देते हुए लिखा कि भारत ने नया इतिहास रचा है। देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, आदिवासी समुदाय की बेटी को राष्ट्रपति चुना गया है। मुर्मू जी की बेटी इतिश्री ने बताया मां को प्रधानमंत्री का फोन आया था, आंखों में आंसू थे, चुप हो गईं; आभार भी जता न सकीं। रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी मुर्मू जी को बधाई दी। सिन्हा जी ने भी मुर्मू जी को बधाई देकर अपनी हार मान ली।उन्होंने एक ट्वीट में लिखा द्रौपदी मुर्मू को जीत की बधाई देता हूं। उम्मीद है कि गणतंत्र के 15वें राष्ट्रपति के रूप में वह बिना भय या पक्षपात के संविधान के संरक्षक के रूप में कार्य करेंगी। मुर्मू जी की जीत के बाद उनके गृह राज्य ओडिशा में भाजपा समर्थकों ने रंग-गुलाल उड़ाकर और ढोल-नगाड़े बजाकर एक-दूसरे को बधाई दी। आंध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने एनडीए उम्मीदवार को जीत की बधाई दी। मुंबई में स्कूली बच्चों ने पेटिंग बना द्रौपदी मुर्मू को जीत की बधाई दी।द्रौपदी मुर्मू के रायरंगपुर स्थित मायका , उपरवाड़ा और ससुराल , पहाड़पुर में भी लोगों ने घर की बेटी की जीत की पर जश्न मनाया। लोगों ने ढोल-नगाड़े बजा जीत की खुशियां मनाई। ओडिशा के मयुरभंज जिले में रायरंगपुर कस्बे के मुर्मू जी के गांव और ससुराल में लड्डू बांटे गए।
एनडीए ने 21 जून को जब मुर्मू जी को अपना उमीदवार बनाया तब उसके खाते में 5 लाख 63 हजार 825, यानी 52% वोट थे। 24 विपक्षी दलों के साथ होने पर सिन्हा के साथ 4 लाख 80 हजार 748 यानी 44% वोट माने जा रहे थे। कई गैर एनडीए दलों के भी समर्थन से मुर्मू जी को बढ़त मिल गई। सभी 10 लाख 86 हजार 431 वोट पड़ने की स्थिति में जीत के लिए 5 लाख 40 हजार 65 वोट चाहिए थे। मुर्मू जी को तीसरे राउंड में ही जरूरी वोट हासिल कर लिया।
चुनाव आयोग ने 18 जुलाई 2022 को वोटिंग तय की थी। उसके आब्जरवरों ने सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक वोटिंग पर नजर रखी। मोदी जी और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने नई दिल्ली में और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में अपने वोट दिए। देशभर के करीब 4 हजार एमपी, एमएलए और एमएलसी वोट दे सकते थे। एक एमपी के वोट का वैल्यू 700 है।एमएलए और एमएलसी के वोट का वैल्यू उनके सूबों की आबादी के हिसाव से अलग-अलग है। यूपी के विधायक के वोट का वैल्यू 208 है।
विपक्षी पार्टियों ने पूर्व केन्द्रीय वित्त और विदेश मंत्री सिन्हा जी को चुनाव मैदान में उतारा। उन सबने इस चुनाव में बतौर अपने उम्मीदवार महात्मा गांधी के परपोता गोपाल गांधी, पूर्व रक्षा मंत्री और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी यानि एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला का नाम हवा में उछालने बाद आखिरकार सिन्हा जी को खड़ा कर दिया। गोपाल गांधी,शरद पवार और फारुख अब्दुल्ला ने उम्मीदवार बनने से साफ मना कर दिया था। दरअसल विपक्षी पार्टियों ने इस चुनाव में अपना सियासी अजेंडा पेश करने का मौका गंवा दिया।
द्रौपदी मुर्मू ने बुरे हालात में पढ़ाई पूरी कर पाद रायरंगपुर के श्रीऑरोबिंदों इंटिग्रल एजुकेशन सेंटर में कुछ समय पढ़ाया भी. वह संथाल जनजाति की हैं। वह सियासत में आने से पहले अध्यापिका और सरकारी क्लर्क रहीं। वह भुबनेश्वर के रामदेवी वीमेंस कॉलेज से बीए पास हैं। ओडिशा के मयूरभंज ज़िले के बैडपोसी गाँव में जन्मी और रायरंगपुर से दो बार भाजपा की विधायक रही। द्रौपदी मुर्मू का निजी जीवन त्रासदी से गुज़रा है. बैंक ऑफ इंडिया में कार्यरत रहे उनके पति और दो बेटों की अकाल मृत्यु हो गई।
इस चुनाव में 64 बरस की द्रौपदी मुर्मू को पहली आदिवासी उम्मीदवार बताकर बीजेपी ने उसके कुछ विरोधियों का भी समर्थन हासिल कर लिया। पालतू गोदी मीडिया इसे मोदी जी का एक और मास्टर स्ट्रोक बता विपक्ष से सिन्हा जी की उम्मीदवारी वापस लेकर मुर्मू जी को बिनविरोध राष्ट्रपति बनने देने का पाठ पढ़ाने लगी।ये मीडिया भूल गई बीजेपी ने मेघालय के मुख्यमंत्री रहे पूर्व लोकसभा स्पीकर पीए संगमा ( अब दिवंगत ) को राष्ट्रपति चुनाव में पहला आदिवासी प्रत्याशी बता उनका समर्थन किया था। संगमा जी बीजेपी को सुहाते थे क्योंकि उन्होंने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी को विदेशी मूल का बता उनके प्रधानमंत्री बनने की कोशिश का विरोध किया था। याद रखा जाना चाहिए कि एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार,संगमा और बिहार के कटिहार से पूर्व सांसद तारिक अनवर को संग लेकर इसी मुद्दे पर कांग्रेस से बाहर निकल गए थे। खैर वह अलग कहानी है।
नामजदगी
यशवंत सिन्हा ने नामजदगी के पर्चों का 4 सेट राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल पीसी मोदी के ऑफिस में दाखिल किया तो उनके साथ कांग्रेस नेता राहुल गांधी ही नहीं बल्कि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया यानि सीपीआई के तमिलनाडु के नागरिक जनरल सेक्रेटरी डी. राजा, डॉ फारूक अब्दुल्ला, महाराष्ट्र के मराठा लीडर , शरद पवार,उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके और समाजवादी पार्टी यानि सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी मौजूद थे। इस मौके पर राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश,तमिलनाडु में सरकार चला रही द्रविड मुनेत्र कषगम यानि डीएमके पार्टी के ए राजा जैसे कई और भी सियासी नेता मौजूद थे। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस यानि टीएमसी के उपाध्यक्ष रहे सिन्हा जी को संयुक्त विपक्ष ने 21 जून को अपना साझा उम्मीदवार घोषित किया था। उन्होंने उम्मीदवार बनने से पहले टीएमसी से इस्तीफा देने की दरकार पूरी कर ली थी।
राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान सीएए -एनआरसी का मुद्दा भी तब उठा जब सिन्हा जी बोले कि अगर वह राष्ट्रपति बन गए तो सीएए और एनआरसी कानून नहीं लागू होने देंगे।
इधर, कुछ टीवी चैनलों पर 22 जून को श्रीमती यशवंत सिन्हा को इंटरव्यू में अपने पति की उम्मीदवारी कमजोर बताने से विपक्षी खेमे में पस्ती रही।
द्रौपदी मुर्मू पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति बन गईं है। मगर उनके भी असम के दिवंगत फखरुद्दीन अली अहमद की तरह रबर स्टाम्प राष्ट्रपति होने का अंदेशा है। देश अभी संकटों से घिरा हुआ है। ऐसे में राष्ट्रपति पर उम्मीदें टिकी रहेंगी जिन्हे देश का प्रथम नागरिक माना जाता है. भारत के संविधान के आर्टिकल 52 के तहत उसका एक राष्ट्रपति होगा जो आर्टिकल 53 के तहत भारत गणराज्य की सभी कार्यकारी शक्तियाँ से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपने अधिकारियों के माध्यम से काम करेंगे। एक आदिवासी महिला राष्ट्रपति ऐसा करे तो देश को गर्व होगा वरना यस प्राइम मिनिस्टर की परिपाटी निभाने वाले को भारत के समाज में कद्र नहीं मिल सकता है।
इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट के लखनऊ में बसे अध्यक्ष के विक्रम राव ने फेसबुक पर एक पोस्ट में लिखा यशवंत सिन्हा को अपना नाम तब वापस ले लेना चाहिये था जब उनकी प्रस्तावक ममता बनर्जी ने कह दिया बीजेपी ने राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू उतारने से पहले विपक्ष से चर्चा की होती तो वे उनका समर्थन कर सकती थी। ममता बनर्जी ने यह भी कहा मुर्मू के पास राष्ट्रपति चुनाव जीतने की बेहतर संभावना है क्योंकि महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के बाद एनडीए की स्थिति मजबूत हुयी है।’
आदिवासी
राष्ट्रपति पद के लिए सत्ताधारी दल की प्रत्याशी द्रोपदी मूर्मू का आदिवासी समुदाय से होना ऐतिहासिक उपलब्धि मानी जा रही है। इसलिए आज उस आदिवासी कुल की चर्चा भी जरुरी हो जाती है कि वे किस आदिवासी कुल से संबंध रखती हैं। भारत में आदिवासियों के अनेक कुल है, सभी का इतिहास, परम्परायें, धर्म, कर्मकाण्ड अलग-अलगहै। मूर्मू जी संथाल आदिवासी समुदाय के चौदह गोत्रों में से एक मूर्मू गोत्र से आती है। जिनकी आस्था, धर्म,परम्परायें,संस्कृति अन्य आदिवासी कुलो व प्रचलित धर्मों से बिल्कुल अलग है। हाँलाकि अन्य आदिवासी समूहो की ही तरह संथाल कुल के शिक्षित विकसित लोग हिन्दू और ईसाई परम्पराओं के मानने लगें है,परन्तु गाँवों में रहने वाले आज भी अपनी परम्पराओं पर कायम है। आइये संथाल आदिवासी समुदाय के बारे में जानते है। संथाली भाषा बोलने वाले आदिवासी समुदाय को संथाल कहते हैं। परन्तु विभिन्न क्षेत्रो में रहने वाले इस समुदाय लोग क्षेत्रीय भाषा-बोलियों के प्रभाव में खुद को संथाल, संताल, संवतल, संवतर,संताड़ी आदि कहते हैं,जबकि संथाल, संताल, संवतल, संवतर आदि ऐसा कोई शब्द ही नहीं है। शब्द केवल “संथाली” है, जिसे उच्चारण के अभाव में देवनागरी में “संथाली” लिखा जाता है। संथाली भाषा बोलने वाले खेरवाड़ समुदाय से आते हैं, जो अपने को “होड़” (मनुष्य) अथवा “होड़ होपोन” (मनुष्य की सन्तान) भी कहते हैं। यहां “खेरवाड़” और “खरवार” में अंतर है। खेरवाड़ एक समुदाय है, जबकि खरवार इसी की ही उपजाति है। इसी तरह हो, मुंडा, कुरुख, बिरहोड़, खड़िया, असुर, लोहरा, सावरा, भूमिज, महली रेमो, बेधिया आदि इसी समुदाय की बोलियां है, जो संताड़ी भाषा परिवार के अन्तर्गत आते हैं। संताड़ी भाषा भाषी लोग भारत में झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार, असम, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर, सिक्किम, मिजोरम राज्यों तथा देश के बाहर चीन, न्यूजीलैंड, नेपाल, भूटान, बंगलादेश, जवा, सुमात्रा आदि देशों में रहते हैं।उपजाति के खरवार लोग बहुत कम संख्या में उत्तर,मध्यप्रदेश भी रहते हैं।
संथाल आदिवासी समुदाय भारत की प्राचीनतम जनजातियों में से एक हैं। किन्तु वर्तमान में इन्हे झारखंडी (जाहेर खोंडी) के रूप में जाना जाता है। झारखंडी का अर्थ झारखंड में निवास करने वाले से नहीं है बल्कि “जाहेर” (सारना स्थल) के “खोंड” (वेदी) की पूजा करने वाले लोगो से है, जो प्रकृति को विधाता मानते है। अर्थात् प्रकृति पूजक है,जिसमें पानी, सूर्य, चन्द्र,धलती,पेंड़ो की पूजा करते है।संथाली मिथकों के अनुसार पृथ्वी पर मनुष्य की उत्पत्ति आदि पिता “मारांग बुरु” और आदि माता “जाहेर आयो” से हुई है,इस लिए उनकी आदि देवता है. है। यह समुदाय वस्तुत: संथाली भाषा भाषी के लोग मूल रूप से खेरवाड़ समुदाय से आते हैं, किन्तु मानवशास्त्रियों ने इन्हें प्रोटो आस्ट्रेलायड मानव प्रजाति से मानते है।संताड़ी समाज की जीवन शैली और परम्परायें प्रकृति पर आधारित हैं,उनके लोकसंगीत, गीत, नृत्य और भाषा अपनी हैं। उनकी स्वयं की मान्यता प्राप्त लिपि ‘ओल-चिकी‘ है, जो खेरवाड़ समुदाय के लिये अद्वितीय है। इनकी सांस्कृतिक शोध दैनिक कार्य में परिलक्षित होते है- जैसे डिजाइन, निर्माण, रंग संयोजन और अपने घर की सफाई व्यवस्था में है।दीवारों पर आरेखण, चित्र और अपने आंगन की स्वच्छता कई आधुनिक शहरी घर भी फीके पड़ जाते है। अन्य विषेशता इनके सुन्दर ढंग के मकान हैं जिनमें खिड़कियां नहीं होती हैं। इनके सहज परिष्कार भी स्पष्ट रूप से उनके परिवार के माता पिता, पति पत्नी, भाई बहन के साथ मजबूत संबंधों को दर्शाता है। सामाजिक कार्य सामूहिक होता है। अत: पूजा, त्यौहार, उत्सव, विवाह, जन्म, मृत्यु आदि में पूरा समाज शामिल होता है। हालांकि, संताड़ी समाज पुरुष प्रधान होता है किन्तु सभी को बराबरी का दर्जा दिया गया है। स्त्री पुरुष में लिंग भेद नहीं है। इसलिए पुत्र-पुत्री के जन्म पर एक समाज खुशी मनायी जाती है। इस समुदाय में लैंगिक भेद-भाव नहीं हैं।स्त्री-पुरुष समाज रूप खेती,शिकार,खाना पकाना एक साथ करते हैं। इस समुदाय में पर्दा प्रथा, सती प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा नहीं है बल्कि विधवा विवाह, अनाथ व नजायज बच्चों को नाम, गोत्र पंचायत के माध्यम निर्णय किया जाता है।
पंचायक के निर्णय पर उनके पालन का जिम्मेदारी उठाने की अद्बुत मानवीय परम्परा है। संथाल समुदाय में मृत्यु शोक और अन्त्येष्टि संस्कार का रूप अलग है।आस्था-विश्वास और धार्मिक क्रिया कलाप अलग होता है। सिञ बोंगा, मारांग बुरु (लिटा गोसांय), जाहेर एरा, गोसांय एरा, मोणे को, तुरूय को, माझी पाट, आतु पाट, बुरू पाट, सेंदरा बोंगा, आबगे बोंगा, ओड़ा बोंगा, जोमसिम बोंगा, परगना बोंगा, सीमा बोंगा (सीमा साड़े), हापड़ाम बोंगा प्रमुख देवता है। जिनकी पूजा पशुबलि के साथ की जाती है।सभी सामाजिक कार्य,पूजा-पाठ सामूहिक होता है।सामाजिक व्यवस्था के निर्वहन के लिए माझी, जोग माझी, परनिक, जोग परनिक, गोडेत, नायके और परगना नियुक्त होते हैं, जो सामाजिक व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, त्यौहार, उत्सव, समारोह, झगड़े, विवाद, शादी, जन्म, मृत्यु, शिकार आदि के निर्णय भूमिका निभाते है।इनके चौदह मूल गोत्र हैं- हासंदा, मुर्मू, किस्कु, सोरेन, टुडू, मार्डी, हेंब्रोम, बास्के, बेसरा, चोणे, बेधिया, गेंडवार, डोंडका और पौरिया है। संथाली समाज में मुख्यतः बाहा, सोहराय, माग, ऐरोक, माक मोंड़े, जानताड़, हरियाड़ सीम, पाता, सेंदरा, सकरात, राजा साला: त्यौहार मनाया जाता हैं। इनके विवाह को ‘बापला‘ कहा जाता है,जिसकी कुल 23 विधियाँ हैं।
स्वतंत्रता संग्राम में संथाल
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में संथाल जाति की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 1857 के पहले 1855-56 में संथाल विद्रोह दुनियाँ के इतिहास की महत्व घटना है,जिसका सिद्दो,कान्हू नाम दो भाइयों ने किया था।इस विद्रोह में अंग्रेजी हूकूमत के दांत खट्टे हो गये थे.। अंग्रेजों ने इनके विद्रोह को ऐसे कुचला कि जालियांवाला कांड भी छोटा पड़ जाता है। इस विद्रोह में अंग्रेजों ने लगभग 30 हजार संथालियों को गोलियों से भून डाला था,परन्तु खेद है कि भारतीय इतिहास इस विद्रोह उचित स्थान नहीं मिल सका।
बहरहाल ,यह पहली मर्तबा नहीं जब आरएसएस ने द्रौपदी मुर्मू जैसी उम्मीदवार पर दांव खेला हो। अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री थे तब भी भाजपा ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रवादी मुसलमान बता राष्ट्रपति चुनाव में खड़ा कर दिया था। देखना यह है कि मुर्मू जी राष्ट्रपति के रूप में आदिवादियों के कल्याण के लिए मोदी सरकार को क्या और कैसे निर्देश देती हैं। उन्हे रबर स्टाम्प राष्ट्रपति होने से बचने के लिए सतर्क रहना होगा।
*सीपी नाम से चर्चित पत्रकार,यूनाईटेड न्यूज ऑफ इंडिया , मुम्बई ब्यूरो के विशेष संवाददाता पद से दिसंबर 2017 में रिटायर होने के बाद बिहार के अपने गांव में खेतीबाडी करने और स्कूल चलाने के अलावा स्वतंत्र पत्रकारिता और पुस्तक लेखन करते हैं.वह इन दिनों भारत के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक हालात को समझने सभी सूबों के दौरे पर है।