स्वतंत्र भारत का संविधान तैयार करने वाली संविधान सभा के अध्यक्ष और संप्रभुता-सम्पन्न भारत गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति डा.राजेन्द्र प्रसाद ( 3 दिसंबर 1884: 28 फरवरी 1963 ) ने लिखा था “ अक्सर दुनिया में जो लड़ाइयाँ हुई हैं, उनमें शास्त्रार्थों और साज सरंजामों की उत्कृष्टता को ही सबसे ऊंचा महत्व प्राप्त हुआ है। हिंदुस्तान में हमने सामान्य स्तर से उपर उठकर सत्य और अहिंसा के लिए कष्ट सहन करते हुए लड़ाई जारी रखी और इस तरह हम सत्याग्रह की जिस ऊंचाई पर पहुंचे, उससे निःसंदेह इतिहास का रूप बदल गया। स्वाधीनता संग्राम के दिनों में हिंदुस्तान में घटनाओं ने जो रूप धारण किया , वह संसार में अद्वितीय है और सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों का प्रयोग- जिसे संक्षेप में सत्याग्रह कहते हैं– ऐसा है , जिसकी बहुत-सी मंजिलें और दर्जे हैं, जिनके द्वारा राष्ट्रीय क्षोभ विभिन्न रूपों द्वारा प्रकाशित किया गया है । इस ऐतिहासिक काल का वर्णन इस पुस्तक में किया गया है । बीसवीं सदी ने एक नया ही ध्येय प्राप्त कर लिया है और पा लिया है , एक नया झण्डा और नया नेता। और इन पृष्ठों में भारत की आजादी के पवित्र ध्येय के प्रति संसार की प्रतिक्रिया का वर्णन किया गया है। उसकी आजादी के राष्ट्र ध्वज के परिवर्तन और स्वाधीनता -प्राप्त करने के लिए भारत के राष्ट्र व्यापी संघर्ष का नेतृत्व करने वाले महात्मा गांधी के महान उपदेश और उनकी योजना का भी इसमें समावेश है। “
डा. राजेन्द्र प्रसाद ने ये बातें दिसंबर 1935 में मनाई गई कांग्रेस स्वर्ण जयंती पर कांग्रेस द्वारा प्रकाशित और स्वतंत्रता सेनानी गाँधीवादी पत्रकार डा. बी पट्टाभि सीतारमैया (1880-1959 ) की अंग्रेजी में लिखी किताब हिस्ट्री ऑफ द कांग्रेस की प्रस्तावना में लिखी थी। तीन खंडों में छपी कुल करीब 1939 पन्नों की इस किताब का हिंदी अनुवाद साहित्य सेवक हरिभाऊ उपाध्याय (1882:1972) ने किया। हाल में इसके नए संस्करण को सस्ता साहित्य मण्डल प्रकाशन ने छापा है जिसकी स्थापना महात्मा गांधी की प्रेरणा और जमनालाल बजाज , घनश्यामदास बिड़ला आदि उधोगपतियों की आर्थिक मदद से 1925 में हुई थी।
सौ बरस बाद
कांग्रेस की स्थापना के एक सौ बर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में दिसम्बर 1985 में मुंबई में जब उसका शताब्दी अधिवेशन हुआ तब भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। वह अधिवेशन क्रिकेट क्लब ऑफ़ इंडिया के ब्रेबौर्न स्टेडियम में हुआ था। तब दिल्ली से छपने वाली हिंदी पत्रिका युवकधारा के लिए उसकी रिपोर्टिंग करने मैं गया था। उसके पास के ही अम्बेसडर होटल के एक कमरे में कांग्रेस के सौजन्य से हमारे ठहरने का इंतजाम था। मेरा ही नहीं लगभग सभी पत्रकारों का दिल्ली से राजधानी एक्सप्रेस से मुंबई जाने का इंतजाम भी कांग्रेस के सौजन्य से ही था। मैं और दिवंगत हिंदी कवि पंकज सिंह उस होटल के कमरे में साथ ठहरे थे। वह बीबीसी हिंदी सेवा की नौकरी के लिए लन्दन जाने के कुछ माह पहले औपचारिक रूप से युवकधारा के सम्पादकीय सलाहकार बन चुके थे। वह 1970 के दशक में नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ( जेएनयू ) के छात्र रहे थे। मेरे भी जेएनयू से होने से उनका मेरे प्रति स्नेह था। वह पत्रिका युवक कांग्रेस के तब के अध्यक्ष तारिक अनवर की थी। तीन मूर्ति से ग्यारह मूर्ति तक के 7 विल्लिंग्डन क्रेस्सेंट रोड पर उनको सांसद के बतौर आवंटित कोठी के पिछवाड़े में नौकरों के लिए बने हिस्से में हमारा सम्पादकीय विभाग था। सुरेश सलिल उसके संपादक थे। चर्चित हिंदी कवि अमिताभ और राजेश कुमार उसके उपसंपादक थे। पत्रिका की नौकरी के लिए रविवार की सुबह हुए इंटरव्यू में उसी दिन रविवारी जनसत्ता में प्रकाशित अग्र लेख मेरा लिखा था जो तारिक अनवर सुबह देख चुके थे। उस अग्र लेख में प्रधानमंत्री के रूप में राजीव गाँधी के कामकाज पर अन्य पार्टियों के आला नेताओं के बतौर पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह से लेकर लालकृष्ण अडवानी, ईएम्एस नम्बूदरीपाद, सी राजेश्वर राव और चन्द्रशेखर के मेरे लिए इंटरव्यू छपे थे। रविवारी जनसत्ता के प्रभारी और प्रख्यात कवि मंगलेश डबराल (अब दिवंगत) ने मुझे उस अंक की प्रति चुपके से दो दिन पहले ही दे दी थी। उस अग्र लेख को तैयार करने के शिल्प का सुझाव मुझे जेएनयू के पूर्व छात्र और तब जनसत्ता के सम्पादकीय विभाग में कार्यरत चमन लाल जी ने दिया था। ईएम्एस से इंटरव्यू लेने में मेरी मदद जेएनयू के पूर्व छात्र और सीपीएम् के हिंदी मुखपत्र लोक लहर के संपादक राजेंद्र शर्मा और उनकी पत्नी वंदना शर्मा ने की थी जो पार्टी के बुक शॉप की प्रभारी है। राजेंद्र शर्मा जी ने मेरे पास रविवारी जनसत्ता का वह अंक शनिवार को ही देख कह डाला तुमने तो नेताओं की लाइन लगा दी है। सीपीआई के तब के महासचिव सी राजेश्वर राव से इंटरव्यू लेना सबसे आसन रहा। चन्द्रशेखर जी से इंटरव्यू लेने में कई पापड़ बेलने पड़े और उनके निजी सचिव की मांग पर मुझे मंगलेश डबराल जी का लिखा एक पत्र देना पड़ा कि मैं जनसत्ता के लिए उनसे इंटरव्यू लेने के वास्ते अधिकृत हूँ। मुझे उनकी दो टूक बात ने प्रभावित किया। उनसे इंटरव्यू के लिए जनता पार्टी के मुख्यालय के चक्कर लगाने के दौरान सुबोध कान्त सहाय (वह बाद में केन्द्रीय मंत्री रहे) जी से मुलाकात हुई जिन्होंने मुझसे ये कहा कि मैं अपने लेख के लिए उनके जैसे युवा नेता का इंटरव्यू क्यों नहीं लेता। मैं क्या कहता चुप रहा। मुझे जनसत्ता के लिए यह लेख लिखने का मौका इसी शर्त पर मिला था कि मैं सभी प्रमुख विपक्षी दलों के आला नेताओं का इंटरव्यू जुटा दूंगा ।
चौधरी चरण सिंह जी से इंटरव्यू का समय आसानी से मिल गया और उन्होंने तुगलक रोड पर अपनी कोठी के अध्ययन कक्ष में मुझसे बड़े प्यार से बात भी की। उन्होंने इंटरव्यू के दौरान मुझे उनकी कही बात टेप रेकॉर्डिंग करने तो दी लेकिन नोट्स लिखने की अनुमति नहीं दी और सुबह की बेला मैं इंटरव्यू खतम होने के बाद कहा ‘ तुमने मेरा बहुत समय खराब किया ‘.
सबसे बड़ा हादसा लालकृष्ण अडवाणी जी के इंटरव्यू में हुआ जिसका समय उनके पंडारा रोड की कोठी पर लंच के बाद था। उनकी पत्नी कमला अडवाणी (अब दिवंगत ) ने बड़े प्यार से मुझे भी खाना खिलाया। इंटरव्यू के बाद जब मैंने अपने घर पहुँच कर जापान की तोशिबा कंपनी का बनाया टेप रेकॉर्डर खोला तो पता चला कि इंटरव्यू के दौरान टेप चला ही नहीं और कोई बात रिकॉर्ड ही नहीं हुई। लगा कि मेरी तो जान निकल जाएगी। इतनी मुश्किल से इंटरव्यू का समय मिला और सब कुछ अच्छा रहा सिवा इंटरव्यू के जो मेरी भूल से रिकॉर्ड ही नहीं हो सका। मैंने अडवाणी जी को फोन कर यह हादसा बता दिया। उन्होंने कहा कोई बात नहीं, कल फिर लंच पर घर आ जाओ। मैं जब उनके घर पहुंचा तो वो मेरे परेशान चेहरे को देख मुस्कुरा दिए और फिर बोले -किसी भी पत्रकार को अपने दिमाग पर ज्यादा भरोसा करना चाहिए।
बहरहाल इस लेखमाला में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की एक बारीक बात का जिक्र करना प्रासंगिक होगा। वह कांग्रेस की अगुवाई वाले यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस यानि यूपीए की अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने 2004 के लोक सभा चुनाव के बाद केंद्र में कांग्रेस के डॉ मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व में सांझा सरकार बन जाने के बाद महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव की तैयारी के लिए मुंबई के बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (बीकेसी) मैदान में हुई रैली में कुछ दार्शनिक लहजे में कहा था “ एक जरूरी काम ख़तम होता नहीं है कि दूसरा जरूरी काम शुरू करना पड़ जाता है.” श्रीमती गांधी की ये बात उनके पुत्र राहुल गांधी और पुत्री प्रियांका गांधी वढेरा समेत पार्टी के उन सब नेताओं पर लागू होती है जो राजस्थान के उदयपुर में कांग्रेस के संकल्प शिविर में भाग लेने गये थे।