मोदी के संसदीय क्षेत्र में कानून व्यवस्था की उड़ रही खुलेआम धज्जियां ! कानून के हाथ लंबे होते है ऐसा सुना जाता है लेकिन यहाँ हाथ लंबे होने की बात छोड़िए हाथ अपराध के कॉलर तक पहुंच ही नहीं पाते, वाराणसी पुलिस के दरियादिली के क़िस्से तो जग जाहिर है। कैसे सांसद अतुल राय केस में पीड़िता के खिलाफ योगी के अधिकारियों ने उल्टा काउंटर FIR पीड़ित पर कर दिया जिसके बाद पीड़िता इंसाफ की गुहार लगाते- लगाते अपनी जिंदगी से जंग हार गई। ये है बनारस की धो पोछकर और निरमा में चमका कर बिठाई गई पुलिस जिसके मुखिया है सतीश गणेश। गणेश का बगल बच्चा कैंट थाना कुख्यात हैं लीपापोती और दलाली में।
सतीश गणेश को शायद अभी तक राजस्व विभाग में IRS की हैसियत से काम करने की आदत है, इसलिए अभी तक वो कानून व्यवस्था और प्रणाली में ठीक से घुलमिल नहीं पाये हैं। इसी कमजोरी का फायदा उठा कर उनका विभाग और उनकी कुर्सी को उनका PRO अपनी मर्जी से जोत रहा है। जब कोई व्यक्ति अपने क्षेत्र के आला अधिकारी से मिल नहीं सकता तो बेहतर है कि शहर कोतवाल को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने क्षेत्र की जिम्मेदारी सौंप दे। बाबा काल भैरव तो प्रख्यात है शहर की सुरक्षा और निगरानी में।
15 जनवरी 2020 को उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने कमिश्नरेट प्रणाली को मंजूरी दी तो जनता को सब्ज़बाग दिखाये गये कि अब महानगरों की तर्ज पर उत्तर प्रदेश पुलिस काम करेंगी, मजिस्ट्रेट पॉवर मिली जिले के अधिकारियों को लेकिन हुआ उल्टा जब एक पुलिस अधीक्षक होता था शहर में तो काम ज्यादा तेज और आसानी से होता था। जिले की कमान संभाल रहे अधिकारी को फरियादी अपनी फरियाद मिलकर सौंप सकते थें। लेकिन अब 24 IPS होने के बाद भी आप अपनी चप्पल रगड़ कर तोड़ दे आप जिले के कमिश्नर से नहीं मिल सकते। तक्षकपोस्ट की टीम को अलग-अलग लोगों से मुलाकात के बाद बात करके जो जानकारी मिली उसे पढ़िए, बताने वाले अपराध से पीड़ित है। बात करने पर पता चला कि संगीन अपराधों में जिसमें हत्या तक शामिल है जैसे मामलों में पीड़ित परिवार से मिलने की बजाय सतीश गणेश और उनके PRO हत्याकांड में जुड़ें व्यक्तियों को संरक्षण देने का काम कर रहे हैं। और पीड़ितों से मिलने की जगह अपराधी को मिलकर भरपूर खातिरदारी की जाती है। इसके सबूत समय आने पर रखें जाएंगे।
शहर के ऐसे ही एक बहुचर्चित विभूतिभूषण सिंह हत्याकांड मामलें को लेकर जब हमनें तक्षकपोस्ट की तरफ से सतीश गणेश से मुलाकात करने की कोशिश की तो PRO महोदय का कहना कि DCP से मिल लीजिये ! सवाल ये है क्या अब PRO तय करेगा की कमिश्नर किससे मिलेगा या नहीं ? इस मामलें में पुलिस की लीपापोती घटना के पहले से बाद तक शामिल है। चौकी इंचार्ज और विवेचना अधिकारी अपने वर्दी को गिरवी रख के हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी लीपापोती करके में लगे है। वादी दर-दर भटक रहा है इंसाफ के लिए अपने भाई को इंसाफ दिलवाने के लिए पर पहले से इस घटना में अपराधी से मिली पुलिस और ACP रैंक का अधिकारी हत्याकांड के आरोप में आरोपी के सम्बन्धियों को लेकर दलाली करता देखा जाता है। इसपर कौन कारवाई करें।
जिले की कमान क्यों ऐसे गैर संवेदनशील व्यक्ति के हाथ में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने सौंप रखी है जिसे अपनी जनता से मिलने की फुरसत नहीं आधिकारिक रूप से कमिश्नर कहा बैठते है किसी को नहीं मालूम। उनके घर की गेट आप नहीं लांघ सकते क्योंकि मोर्चा PRO ने संभाल रखा है अजय मिश्रा लोकल वासियों के बीच सतीश गणेश और अपराधियों के बीच सेटिंग की कड़ी है। ऐसा दबी जुबान से तक्षकपोस्ट की टीम को लोगों ने बताया (whistleblower act 2014) के तहत गोपनीय रखते हुये इस बात को लिखा जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी की संसदीय क्षेत्र में कानून व्यवस्था अंधेर नगरी चौपट राजा की कहावत पर सटीक बैठती है। बनारस के कप्तान को महामंडलेश्वर बनने से फुरसत नहीं।
सतीश गणेश के पास एक सूत्री काम है खुद को प्रोमोट करना और विभिन्न मौकों पर तस्वीरें खींच कर जनता को ट्विटर पर बताना। कभी चप्पल में सैर तो कभी काल भैरव के मंदिर में दर्शन पूजन के अलावा पेज 3 की पार्टी में शिरकत। गैर जरूरी अपराध के मामलों को रिट्वीट करना जैसे अतिमहत्वपूर्ण काम जब कमिश्नरेट करने लगे तो कैसे माना जाये कि दलाली नहीं हो रही हैं।
आम आदमी की पहुंच से दूर अधिकारी केवल अपने चप्पल और टीशर्ट में घूमने को प्रमोट करने के लिए है। जब से वाराणसी और उत्तर प्रदेश पुलिस को दिल्ली और मुम्बई के तर्ज पर चलाने की कोशिश शुरू हुई है तब से अफसरशाही और संवेदनशील मामलों में भ्रष्टाचार और दलाली अपने उच्चत्तम सोपान पर है। आखिर पुलिस अधिकारी को PRO की जरूरत क्यों हैं, जनता की पहुंच से दूर बैठकर कैसे काम होगा ऐसे तमाम सबूत और मौके हमारे पास है जब पुलिस अधिकारियों ने अपनी ड्यूटी छोड़कर जनता को डराने और धमकाने का काम किया है। महानगरों के पुलिस के PRO भी बेहद संवेदनशील और ईमानदार होते है इसका तक्षकपोस्ट को बखूबी दिल्ली पुलिस को रिपोर्ट करने का अनुभव है।
ये वहीं जिंदा शहर बनारस है जहाँ किसी जमाने में नवनीत सिकेरा जैसे जाबांज अधिकारी बैठते थें, जो जनता के लिए किसी मसीहा से कम नहीं थें। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के हिसाब से पुलिस रिफॉर्म कब होगा। जब तक ऐसा नहीं होगा कानून और इसके आड़ में जनता का शोषण होता रहेगा। असल जिंदगी में अपराध करने वाले खुलेआम घूमते रहेंगे और जनता अपनी हिम्मत पैसा और समय लगा कर इंसाफ का इन्तेजार करती रहेगी।
ये आदमी किसी से मिलता ही नहीं…मैने ५२ लेटर लिखा. समय मांगा, गया लेकिन आज तक चेहरा नही देखा….ये अजय मिश्रा कौन है?