भारत की राजनीतिक व्यवस्था में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री निर्वाचित नहीं किये जाते है। पर इन चुनाव में विभिन्न सियासी पार्टियों की तरफ से नई सरकार बनाने के उनके दावेदार अवाम के बीच पेश करने का रिवाज सा कायम हो गया है। यह रिवाज कैसे शुरू हुआ इसके बारे में सर्वमान्य मत नहीं है। निर्विवादित तथ्य है कि ब्रिटिश हुक्मरानी से भारत की आजादी के बाद देश में कांग्रेस के लंबे अरसे के लगभग एकछत्र राज में चुनावों में नई सरकार के प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री पेश करने का रिवाज नहीं था। राजनीतिक दलों के लिए ऐसा करना भारत के मौजूदा संविधान के तहत जरूरी भी नहीं है। संविधान में साफ लिखा है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल नई सरकार बनाने के लिए ऐसे व्यक्ति को आमंत्रित करेंगे जिन्हें निर्वाचित निकाय में बहुमत हासिल हो। चुनाव चर्चा के आज के अंक में हम मुख्यमंत्री पद दावेदारों के चुनावी इतिहास और भविष्य की संभावनाओं का जायजा लेंगे।
इतिहास-
भारत के गणराज्य घोषित होने के बाद उत्तर प्रदेश में अब तक 20 व्यक्ति मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इन 20 व्यक्तियों के अतरिक्त, तीन व्यक्ति बहुत कम दिनों के लिए कार्यवाहक मुख्यमंत्री रहे हैं। मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 19 मार्च 2017 से इस पद पर हैं। राज्य की चार बार मुख्यमंत्री रही सुश्री मायावती को सबसे ज्यादा दिनों तक मुख्यमंत्री रहने का गौरव है।
भारत के गणराज्य घोषित होने तक उत्तर प्रदेश में निर्दलीय मुहम्मद अहमद सईद खान 3 अप्रैल 1937 से 16 जुलाई 1937, कांग्रेस के गोविंद वल्लभ पंत 17 जुलाई 1937 से 2 नवंबर 1939 और फिर 1 अपैल 1946 से 25 जनवरी 1950 तक मुख्यमंत्री रहे थे। भारत के गणराज्य घोषित होने के बाद गोविंद वल्लभ पंत 26 जनवरी 1950 से 27 दिसम्बर 1954, कांग्रेस के सम्पूर्णानंद (वाराणसी शहर दक्षिण) 28 दिसम्बर 1954 से 9 अपैल 1957 और 10 अप्रैल 1957 से 6 दिसम्बर 1960, कांग्रेस के चंद्रभानु गुप्ता ( रानीखेत ) 7 दिसंबर 1960 से 14 मार्च 1962 और 14 मार्च 1962 से 1 अक्टूबर 1963 , कांग्रेस की सुचेता कृपलानी ( मेंधवाल ) 2 अक्टूबर 1963 से 13 मार्च 1967 चंद्रभानु गुप्ता 14 मार्च 1967 से 2 अप्रैल 1967, भारतीय क्रांति दल के चरण सिंह 3 अप्रैल 1967 से 25 फ़रवरी 1968 , चंद्रभानु गुप्ता 26 फ़रवरी 1969 से 17 फ़रवरी 1970, चरण सिंह (छपरौली) 18 फ़रवरी 1970 से 1 अक्टूबर 1970, कांग्रेस के त्रिभुवन नारायण सिंह 18 अक्टूबर 1970 से 3 अप्रैल 1971, कांग्रेस के कमलापति त्रिपाठी (छंदरौली) 4 अप्रैल 1971 से 12 जून 1973 , कांग्रेस के हेमवती नंदन बहुगुणा ( बारा ) 8 नवम्बर 1973से 29 नवम्बर 1975) कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी ( काशीपुर) 21 जनवरी 1976 से 30 अप्रैल 1977, जनता पार्टी के राम नरेश यादव 23 जून 1977 से 27 फ़रवरी 1979 , बनारसी दास ( हापुड़) 28 फ़रवरी 1979 से 17 फ़रवरी 1980 , कांग्रेस के विश्वनाथ प्रताप सिंह (तिंदवार) 9 जून 1980 से 18 जुलाई 1982, श्रीपति मिश्र 19 जुलाई 1982 से 2 अगस्त 1984, नारायणदत्त तिवारी ( काशीपुर ) 3 अगस्त 1984 से 24 सितम्बर 1985 , कांग्रेस के वीर बहादुर सिंह (पनियारा) 24 सितम्बर 1985 से 24 जून 1988 , नारायणदत्त तिवारी 25 जून 1988 से 5 दिसम्बर 1989, जनता दल के मुलायम सिंह यादव (जसवंतनगर) 5 दिसम्बर 1989 से 24 जून 1991, भाजपा के कल्याण सिंह ( अतरौली ) 24 जून 1991से 6 दिसम्बर 1992 , सपा के मुलायम सिंह यादव (जसवंतनगर ) 4 दिसम्बर 1993 से 3 जून 1995 , बसपा की मायावती 3 जून 1995 से 18 अक्टूबर 1995 और फिर 21 मार्च 1997 से 21 सितम्बर 1997, कल्याण सिंह , 21 सितम्बर 1997 से 12 नवम्बर 1999, भाजपा के रामप्रकाश गुप्त 12 नवम्बर 1999 से 28 अक्टूबर 2000 , भाजपा के राजनाथ सिंह ( हैदरगढ़) 28 अक्टूबर 2000 से 8 मार्च 2002 , मायावती 3 मई 2002 से 29 अगस्त 2003 , मुलायम सिंह यादव 29 अगस्त 2003 से 13 मई 2007, मायावती 13 मई 2007 से 7 मार्च 2012 , सपा के अखिलेश यादव ( विधान परिषद सदस्य) 15 मार्च 2012से 19 मार्च 2017 तक मुख्यमंत्री रहे। भाजपा के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 19 मार्च 2017 से इस पद पर काबिज हैं।
मायावती-
प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रहीं और बहुजन समाज पार्टी (बसपा ) की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुश्री मायावती ने विधान सभा का नया चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की है। उन्होंने ये भी साफ कह दिया कि बसपा के नंबर दो समझे जाने वाले नेता सतीश चंद्र मिश्र भी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। इसका यह मतलब नहीं है कि बहिन जी और बसपा ने नई सरकार बनाने की अपनी दावेदारी छोड़ दी है। ऐसा पहले हो चुका है बहिन जी चुनाव लड़े बिना ही बसपा की सरकार बनाकर मुख्यमंत्री बन गई।
मायावती का जन्म 15 जनवरी 1956 को नई दिल्ली के एक मध्य वर्ग परिवार में हुआ था। उनके पिता, प्रभु दास, गौतम बुद्ध नगर में डाकघर कर्मचारी थे। उनके 6 पुत्र और 2 पुत्री हुई। उन्होंने 1975 में दिल्ली विश्वविद्यालय के कालिंदी कालेज से कला में स्नातक की , 1976 में मेरठ विश्वविद्यालय से बी॰एड॰ और 1983 में दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई की। राजनीति में आने से पहले वह दिल्ली के एक स्कूल में शिक्षक थी। वह 1977 में दलित नेता कांशीराम (अब दिवंगत) के सम्पर्क में आने पर इस पार्टी की पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गईं । मायावती ने 1984 में बसपा की स्थापना होने के कुछ बरस बाद पहला चुनाव 1989 में बिजनौर लोकसभा सीट से लड़ा और सफल रही। उनकी बात ही कुछ और है। वह एक अरसे से प्रधानमंत्री पद की भी दावेदार रही है। ये दीगर बात है कांग्रेस ही नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी और 1990 के दशक के मध्य में चुनावी गठबंधन का चरण शुरू होने पर केंद्र में नई सरकार के गठन की सियासत में प्रमुख भूमिका निभानी वाली कम्यूनिस्ट पार्टियों के मोर्चा ने भी प्रधानमंत्री पद के लिए बहिन जी की दावेदारी कभी स्वीकार नहीं की। मायावती चार बार लोकसभा,तीन बार राज्य सभा , दो बार विधानसभा और दो बार विधान परिषद की सदस्य रह चुकी हैं।
प्रियांका गांधी वढेरा-
कांग्रेस ने भी यूपी विधान सभा में मुख्यमंत्री पद के लिए अपना दावेदार पेश नहीं किया है। कांग्रेस की तरफ से प्रियांका गांधी वढेरा मुख्यमंत्री पद की दावेदार मानी जाती है। उनके चुनाव लड़ने के बारे में स्थिति फिलहाल स्पष्ट नहीं है। उत्तर प्रदेश चुनाव के पार्टी टिकट घोषित करते समय सवाल पूछने पर कि वह खुद चुनाव लड़ेंगी या नहीं तो उन्होंने सीधा जवाब नहीं दिया। लेकिन वह कई बार कह चुकी हैं उनकी पार्टी चाहेगी तो वह किसी भी जिम्मेदारी के लिए हमेशा आगे खड़ी रहेंगी।
12 जनवरी 1972 को दिल्ली में पैदा हुई प्रियंका अभी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की राष्ट्रीय महासचिव हैं। वह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और कांग्रेस अध्यक्ष एवं संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) प्रमुख सोनिया गाँधी की दूसरी संतान है। उनकी दादी इंदिरा गाँधी और नाना जवाहर लाल नेहरू भी भारत के प्रधानमंत्री रहे। उनके दादा फिरोज़ गाँधी, उत्तर प्रदेश से ही सांसद थे। उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा नई दिल्ली के माडर्न स्कूल और कॉन्वेंट ऑफ़ जीसस एण्ड मैरी से प्राप्त की। दिल्ली विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान में स्नातक हैं प्रियंका शौकिया रेडियो संचालक है। उन्होंने यूपी में अपनी माँ और छोटे भाई राहुल गांधी के निर्वाचन क्षेत्रों रायबरेली और अमेठी में नियमित चुनावी दौरा किया।
उनका विवाह रॉबर्ट वाड्रा से हुआ। दोनों के रेहान और मिराया नाम के दो बड़े बच्चे हैं।
अखिलेश सिंह यादव-
समाजवादी पार्टी ने भी मुख्यमंत्री पद के लिए अपना दावेदार औपचारिक रूप से पेश नहीं किया है। लेकिन लगभग तय सी बात है कि सपा के नई सरकार बनाने की स्थिति में आने पर उसके नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव ही मुख्यमंत्री बनेंगे। इस बार का विधानसभा चुनाव लड़ने के बारे में अखिलेश यादव का स्पष्ट जवाब नहीं मिला है। वह कुशल राजनीतिज्ञ हो चुके है। इसलिए अपने पत्ते खोलने के बजाय सिर्फ यह कहते रहे हैं उनकी पार्टी तय करेगी कि वो चुनाव लड़ेंगे या नहीं. इटावा जिले के सैफई गाँव में 1 जुलाई 1973 को पैदा हुए अखिलेश यादव , समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव और उनकी पहली पत्नी मालती देवी के पुत्र हैं। उन्हें प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री रहने का गौरव प्राप्त है। वह लगातार तीन बार सांसद भी रह चुके हैं। उन्होंने 2012 के विधान सभा चुनाव में सपा का नेतृत्व किया था। तब सपा ने विधान सभा की 224 सीटें जीती थी। उन्होंने 15 मार्च 2012 को प्रदेश के मुख्यमंत्री की शपथ ली थी। उनका विवाह डिम्पल यादव से 24 नवंबर 1999 को हुआ था जो सांसद रह चुकी हैं। पर वह 2019 में लोक सभा चुनाव हार गई थी। दोनों के तीन बच्चे हैं। अखिलेश ने राजस्थान मिलिट्री स्कूल , धौलपुर से प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने मई 2009 में लोकसभा की फिरोजाबाद सीट पर उपचुनाव में निकटतम प्रतिद्वंद्वी एवं बसपा प्रत्याशी एसपीएस बघेल को हराया था। बाद के आम चुनाव में वह फिरोजाबाद और कन्नौज की दो सीटों से जीते। उन्होंने कन्नौज सीट पास रखी।
योगी आदित्यनाथ-
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे।
भाजपा ने प्रदेश के 22वें एवं मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर शहर से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। पाँच बार गोरखपुर लोकसभा सीट जीत चुके है। योगी जी गोरखपुर के गोरखनाथ मठ के महन्त (मुख्य पुजारी) और हिन्दू युवा वाहिनी के संस्थापक भी है। वह 12 सितंबर 2014 को अपने धर्मपिता महंत अवैद्यनाथ के निधन के बाद महंत बने थे। योगी जी का जन्म 5 जून 1972 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिला के पनचूर गाँव में हुआ था। उनके पिता आनंद सिंह बिष्ट फॉरेस्ट रेंजर थे। चार भाईयों और तीन बहनों में वह दूसरे नंबर पर है। वह हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से गणित में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपना घर-बार छोड़ अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन में शामिल हो गए। उसी दौरान वह महंत अवैद्यनाथ के शिष्य हो गए। नाथ संप्रदाय के सन्यासी की दीक्षा लेने के बाद उनका नाम अजय सिंह बिष्ट से बदलकर योगी आदित्यनाथ कर दिया गया। वह अपने पैतृक गाँव जाते रहे हैं जहां उन्होंने 1998 में स्कूल खोला था।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने योगी जी को 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद का दावेदायर माना है। इंडिया टुडे ने अगस्त 2020 के अपने सर्वे में योगी जी को सर्वक्षरेसठ मुख्यमंत्री माना था।
क्रिस्टोफे जेफ़रलौट ने अपनी एक किताब में लिखा है कि योगी जी उसी हिन्दुत्व सियासत के वाहक हैं जिसके तहत महंत दिग्विजयनाथ की अगुवाई में 22 दिसंबर 1949 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद पर कब्जा कर वहाँ भगवान राम के बाल्य रूप की प्रतिमा स्थापित कर दी थी। योगी जी और महंत अवैद्यनाथ उसी हिन्दू महासभा के साथ थे जिसमें विनायक सावरकर भी रहे थे। दोनों ही हिन्दू महासभा के प्रतिनिधि के रूप में लोकसभा सदस्य भी रहे। 1980 के दशक में भाजपा के राम मंदिर आंदोलन में खुलकर शामिल हो जाने के बाद महंत अवैद्यनाथ 1991 के आम चुनाव में भाजपा के साथ हो लिए। योगी आदित्यनाथ 12वीं लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुने गए। तब वह 26 बरस के सबसे युवा सांसद थे। वह 1998,1999 ,2004 , 2009 और 2014 में लगातार पाँच बार लोकसभा के लिए चुने गए।
भाजपा से योगी आदित्यनाथ के संबंध-
भाजपा से योगी आदित्यनाथ के संबंध हमेशा बहुत अच्छे नहीं रहे है। 2002 में उन्होंने हिन्दू महासभा की तरफ से गोरखपुर सीट पर राधा मोहन दास अग्रवाल को खड़ा कर दिया जिनसे तत्कालीन भाजपा सरकार में केबिनेट मंत्री शिव प्रताप शुक्ला परास्त हो गए। मार्च 2010 में योगी जी ने लोक सभा में महिला आरक्षण विधेयक का अपनी ही पार्टी के ह्विप का उल्लंघन किया था। मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी जी ने गृह और राजस्व समेत 26 विभाग अपने पास रखे। उनकी सरकार बनने पर 2017 में ‘ राजनीति से प्रेरित ‘ करीब 20 हजार पुलिस मामले वापस ले लिए जिनमें कई खुद उनके खिलाफ थे।
बहरहाल , देखना है कि हिंदुस्तान में आबादी के हिसाब से इस सबसे बड़े राज्य के नए चुनाव के बाद नया मुख्यमंत्री बनने का मौका किसे मिलता है।