गुजरात के मुख्यमंत्री पद से विजय रूपाणी ने इस्तीफा दे दिया। राज्यपाल देवव्रत आचार्य ने संवैधानिक प्रावधानों के तहत उस पर जो भी कार्रवाई करनी थी, वो भी पूरी कर ली है। इस घटना को भी अब एक सप्ताह होने वाला हैं उनके स्थान पर पटेल समुदाय के प्रतिनिधि के नाते भूपेन्द्र पटेल ने राज्य के नए मुख्यमंत्री की शपथ भी ले ली है। बाहर से सब कुछ सामान्य सा दिखाई दे रहा है लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी में अन्दर ही अन्दर उथल – पुथल सी मची है …..
गौरतलब है कि विजय रूपाणी ने विगत शनिवार 11 दिसंबर को गुजरात के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था। उनका यह इस्तीफा केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के गुजरात दौरे के एक दिन बाद हुआ है और इसे महज एक संयोग नहीं माना जा जा सकता है कि जिस दिन विजय रूपाणी ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया उस दिन गुजरात मामलों के पार्टी प्रभारी भूपेंद्र यादव न केवल गुजरात के दौरे पर थे बल्कि जिस वक़्त विजय रूपाणी मुख्मंत्री पद से दिया अपना इस्तीफ़ा राज्यपाल को सौंपने गए थे। उस समय यादव भी राजनिवास में उनके साथ ही थे।
मतलब साफ़ है कि रूपाणी का इस्तीफा हवा – हवाई नहीं है बल्कि एक सुविचारित योजना का हिस्सा है इसी योजना में अमित शाह का एक दिन अचानक गुजरात दौरा और अगले दिन पार्टी प्रभारी का गुजरात जाना और वहाँ पार्टी के कई असरदार लोगों के साथ मुलाक़ात करने के बाद इस्तीफे के समय राजभवन में उनका राजभवन में मौजूद रहना जैसी तमाम गतिविधियाँ शामिल हैं।
एक मुख्यमंत्री का इस्तीफ़ा यूं तो कोई ख़ास बात नहीं है लेकिन जब बिना किसी भूमिका के ऐसे इस्तीफे होते हैं तब लगने लगता है कि इस तरह का इस्तीफा कुछ ख़ास हो गया है। यही बात इस इस्तीफे के सम्बन्ध में भी लागू होती है। सवाल किये जाने लगे हैं कि यह इस्तीफ़ा क्यों हुआ और इस सवाल के जवाब में तरह – तरह के तर्क भी दिए जा रहे हैं और बहुमत की राय पर यह निष्कर्ष भी निकाला जा रहा है कि एक साल के भीतर चुनाव का सामना करने जा रहे भाजपा शासित उन राज्यों में जहां पार्टी को ऐसा लगता है किसत्ता विरोधी मतों की वजह से नुकसान हो सकता है , वहाँ मुख्यमंत्री बदल कर संभावित नुक्सान को कम जरूर किया जा सकता है।
इस दृष्टि से गौर करें तो कर्नाटक में तो भाजपा ने विधानसभा चुनाव से काफी पहले ही भाजपा ने नेतृत्व परिवर्तन कर दिया। कर्नाटक में विधानसभा का पिछला चुनाव 2018 में हुआ था , इस हिसाब से अगला चुनाव 2023 में होना चाहिए लेकिन भाजपा ने अभी से ही चुनाव की तैयारियों के संदर्भ वहाँ वाई एस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटा कर नया मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया। ऐसा इसलिए क्योंकि भाजपा को यह लगने लगा था कि सत्ता विरोधी जन नाराजगी के चलते पार्टी को चुनाव में कहीं नुकसान न हो। इसी कड़ी में भाजपा ने उत्तराखंड में भी आपना मुख्यमंत्री बदल दिया , वहाँ भी 2017 में चुनाव होना है . 2022 में ही गुजरात, गोवा , मणिपुर ,पंजाब , हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं।
भाजपा आला कमान ने उत्तर प्रदेश में भी नेतृत्व परिवर्तन की कोशिश तो की थी लेकिन इस राज्य में योगी आदित्यनाथ के प्रभाव से ये कोशिशें सफल नहीं हो सकी , हिमाचल , गोवा और मणिपुर के मुख्यमंत्रियों की तरफ से पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को किसी तरह का खतरा नजर नहीं आता इसलिए इन राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन की जरूरत नहीं समझी जा रही हैं। पार्टी आला कमान को खतरा तो गुजरात में रूपाणी के नेतृत्व से भी नहीं था लेकिन इस राज्य में केन्द्रीय गृह मंत्री को अपनी पसंद का व्यक्ति इस पद पर चाहिए इसलिए वहाँ नेतृत्व परिवर्तन की जरूरत महसूस हुई। राजनीति में ऐसा क्यों होता है कि जो पार्टी केन्द्रीय सत्ता में जरूरत से ज्यादा बहुमत हासिल करने के साथ ही राज्यों की राजनीति में भी संख्या बल के आधार पर आगे हो जाती है , उसके केन्द्रीय नेतृत्व में एक तरह का तानाशाहीपूर्ण रवैया पैदा हो जाता है और फिर नेतृत्व लोकतंत्र की परम्पराओं को भूल कर अपने हिसाब से फैसले लेने लगता है। इसी तरह की प्रवृत्ति देश की राजनीति में उस समय भी देखने को मिली थी जब कांग्रेस पार्टी और सरकार दोनों ही जगह स्वर्गीय इंदिरा गांधी का ही बोलबाला था। ऐसा ही कुछ आजकल भी दिखाई देने लगा है।
प्रसंगवश एक बात और समझने वाली है कि विपक्ष में रहते हुए जो पार्टी कभी अतीत में उस समय सत्ता पर काबिज पार्टी( कांग्रेस ) पर मुख्यमंत्री बदल – बदल कर राजनीतिक अस्थिरता फैलाने का आरोप लगाया करती थी , वो आज खुद सत्ता में काबिज होने पर वही सब कुछ कर रही है जिसकी तब वह निंदा और आलोचना किया करती थी।
केंद्र देश के आधे से ज्यादा राज्यों में सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखंड के सन्दर्भ में बार – बार मुख्यमंत्री बनाने का ऐसा रिकॉर्ड बनाया कि देश के इस छोटे से राज्य में उसने पिछले चार साल में तीन मुख्यमंत्री बदल दिए। गुजरात में भी पिछले सात साल में चार मुख्यमंत्री बनाने का रिकॉर्ड इस पार्टी ने बना लिया है। कोशिश तो मध्य प्रदेश में भी मुख्यमंत्री बदलने की हो रही है लेकिन कभी योग्य व्यक्ति के अभाव तो कभी उचित वक़्त के अभाव में इस काम को अन्जाम नहीं दिया जा सका लेकिन कोशिशें कम नहीं हुईं।
यह सिलसिला अभी थमा भी नहीं है। गुजरात के निवर्तमान मुख्यमंत्री विजय रूपाणी.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आभारी हैं कि इतने साल वो श्री मोदी की कृपा की वजह से गुजरात जैसे राज्य के मुख्यमंत्री बने रहे। विजय रूपाणी ने यह बात इस्तीफ़ा देने के बाद पत्रकारों से चर्चा करते करते हुए कही थी। याद होगा ऐसा ही माहौल देश में तब भी बन गया था जब इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री और तत्कालीन सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के मुखिया हुआ करती थी। उसी दौर में कांग्रेस के ही एक बड़े नेता ने इंदिरा गाँधी को भारत का पर्याय ही बना दिया था और इंदिरा गाँधी की चापलूसी में , “इंदिरा इज इण्डिया ” का नारा ही दे दिया था। कुछ इसी तरह का नजारा मौजूदा दौर में भी दिखाई देने लगा है .. अब देश के मौजूदा प्रधानमंत्री इंदिरा का स्थानापन्न बन गए हैं।
गौरतलब है की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के गृह प्रदेश गुजरात में साल 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद चौथा नेतृत्व परिवर्तन हुआ है। नरेंद्र मोदी के बाद आनंदीबेन और उसके बाद विजय रूपाणी मुख्यमंत्री बने थे।