सत्ता की राजनीति र्में शीर्ष तक पहुचने के क्रम में राजनीतिक दल साम , दाम , दंड और भेद में किसी भी तरह के उपाय का इस्तेमाल करने से पीछे नहीं रहते। कहना गलत नहीं होगा कि हर राजनीतिक दल अपनी हैसियत, अवसर, साधन और उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग कर येन – केन प्रकारेण देश की, राज्यों की जिलों की और यहाँ तक कि,
स्थानीय निकायों की सत्ता में काबिज होना चाहता है। सत्ता कोई भी हो छोटी नहीं होती, सत्तासुख ही राजनीति का असली सुख माना जाता है और इसके लिए मरने – मारने से लेकर विचारों और व्यवहार के साथ ही नीतिगत मुद्दों के साथ समझौता करने से भी किसी को संकोच नहीं होता। धार्मिक और जातीय समीकरणों के ध्रुवीकरण भी भारतीय राजनीति के सन्दर्भ में इसीलिए महत्वपूर्ण हो गए हैं, बात धार्मिक या यूं कहें की हो तो तुष्टिकरण का शब्द सर्व विदित है।
एक जमाने तक देश की सबसे पुरानी कही जाने वाली कांग्रेस पार्टी को अल्पसंख्यक विशेषकर मुस्लिम तुष्टिकरण का पर्याय माना जाता था। कांग्रेस के साथ ही देश की अन्य मध्यमार्गी और वामपंथी सोच वाली पार्टियां भी बहुसंख्यक हिन्दू मतदाताओं के साथ ही अल्पसंख्यक मुस्लिम वोटों का अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करने की चाहत में किसी पीछे नहीं रहीं। देश की आजादी के बाद चार – पांच दशक बाद तक की राजनीति में तुष्टिकरण की इस प्रवृत्ति का एक असर इस रूप में दिखाई दिया किइसके विरोध में हिन्दू अल्पसंख्यक वोट बैंक को रिझाने का सिलसिला भी जोरदार तरीके से चला।
पहले हिन्दू महासभा फिर भारतीय जनसंघ और उसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने हिन्दू वोट बैंक की राजनीति को जबरदस्त तरीके से उछाल दिया। इसकी परिणिति के रूप में ही अयोध्या में राममंदिर के बहाने हिंदुत्व के मुद्दे को राजनीतिक एजेंडे में सबसे ऊपर रखने का सिलसिला शुरू हुआ। इसी सिलसिले की सफलता ने सात – आठ साल पहले ही भाजपा को अपने पूर्ण बहुमत के बल पर केंद्र की सत्ता में आसीन होने का मौका मिला था।
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले तक भाजपा को मध्य प्रदेश , हिमाचल , राजस्थान , छत्तीसगढ़ , दिल्ली , उत्तराखंड, और गोवा जैसे देश के कुछ ऐसे राज्यों में भाजपा को कांग्रेस के साथ बारी – बारी से सरकार बनाने के मौका मिलता था। एक बार केंद्र में अपने बल पर भाजपा की सरकार बनने के बाद भजपा को देश के मणिपुर , मिजोरम, नागालैंड , असम ,त्रिपुरा, हरियाणा और कर्णाटक समेत ऐसे कई राज्यों में भी सरकार बनाने का मौका मिल गया जहां सरकार बनाने की बात भाजपा आम तौर पर सोच भी नहीं पाती थी। कह सकते हैं कि अगर देश की गैर हिन्दुत्ववादी पार्टियों ने आजादी के बाद के चार – पांच दशक में अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की नीति पर इतने बेहूदेपन से अमल नहीं किया होता तो शायद देश की कथित हिन्दुत्ववादी पार्टियों को राजनीति में इतना अधिक उभार नहीं मिल पाता जितना आज दिखाई दे रहा है। दुर्भाग्य से धार्मिक भावनाओं को राजनीतिक उद्देश्य से उकेरे जाने का यह सिलसिला अभी भी थमा नहीं है। झारखंड विधानसभा में नमाज पढ़ने के लिए अलग से एक कक्ष उपलब्ध कराना इसी तुष्टिकरण की नीति का ही एक नया मामला है। इसके प्रतिक्रिया में उत्तरप्रदेश समेत उत्तर भारत के अन्य राज्यों में अब हिन्दू समुदाय के नेताओं ने विधान भवन परिसरों में पूजा करने के लिए कमरे उपलब्ध कराने की मांग करनी शुरू कर दी है।
राजनीति.में धार्मिक मसलों पर चिंतन करने के दौरान हमको एक बात का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि अपने देश के संविधान की मान्यता के अनुरूप हम एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हैं। सर्वधर्म समभाव की भावना के तहत हमारे देश का संविधान इस देश के सभी धर्मों के लोगों अपने धर्म की मान्यता के अनुरूप पूजा करने की पूरी इजाजत देता है और इसी संविधान के तहत सभी धर्मों के लोगों से एक दूसरे के धर्मों का सम्मान करने की अपेक्षा भी करता है। इन संवैधानिक मान्यताओं के चलते किसी एक धर्म को पूजा करने के लिए किसी तरह की विशेष सुविधा से भी बचा जाना चाहिए। झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष ने पिछले दिनों मुस्लिम समुदाय के लोगों के नमाज पढ़ने लिए विधानभवन परिसर अलग से कमरा उपलब्ध कराने की घोषणा कर कहीं न कहीं संविधान के प्रावधानों को समझने में गलती की है। समय रहते इस गलती को सुधारा जाना चाहिए अन्यथा देश के हर विधान भवन परिसर में मिनी धर्मालय खोलने की जरूरत भी पड़सकती है . इन मिनी धर्मालयों में एक मिनी मस्जिद भी होगी , मंदिर , गुरुद्वारा, गिरजाघर , बौद्ध और जैन उपासनास्थल के साथ ही तमाम किस्म के अलग – अलग उपासना स्थलों की भी स्थापना करनी पड़ सकती है।
झारखंड के विधानसभा अध्यक्ष को ऐसा निर्णय क्यों लेना पड़ा जबकि उपासना को लेकर इस्लाम धर्म इतना उदार है कि नमाजियों को नमाज पढ़ने के लिए कभी भी किसी तरह के ख़ास स्थान की जरूरत नहीं पड़ती। एक सच्चा नमाजी नमाज के वक़्त कही भी एक साफ़ – सुथरी जगह देख कर अपने अपने पास राखे एक बिछोने को बिछा कर छत , खेत , आँगन , कमरा , बरामदा कहीं भी खुदा की इबादत कर लेता है . कई बार तो रेल में सफ़र करने के दौरान भी लोगों को नमाज पढ़ते हुए देखा जा सकता है।