हर साल सितम्बर का महीना दो वजहों से कुछ अलग किस्म का हो जाता है। इसके ख़ास होने की दोनों वजह हैं तो सरकारी लेकिन शिक्षा और भाषा से जुड़ी होने के कारण ये दोनों वजहें आम जन के करीब भी दिखाई देती हैं। उदाहरण के लिए सितम्बर का महीना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी महीने की पांच तारीख यानी 5 सितम्बर को देश के पहले उप राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था।
डॉक्टर राधाकृष्णन बाद में डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद के उत्तराधिकारी के रूप में देश के राष्ट्रपति भी बने थे। डॉक्टर राधाकृष्णन शिक्षक थे, विद्वान् थे, कई भाषाओं के जानकार थे और उन्होंने अपना जीवन शिक्षा और शिक्षण को समर्पित कर दिया था। इसलिए यह देश अपने पूर्व उप राष्ट्रपति और राष्ट्रपति के जन्म दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाता है। मामला शिक्षा और शिक्षण से जुड़ा है इसलिए सरकार के साथ स्वभाविक रूप से इसका जुड़ाव आमजन से भी हो ही जाता है। सितम्बर के इसी महीने 14 से 28 तारीख तक राजभाषा पखवाड़े का आयोजन भी होता है। राजभाषा का मतलब हिंदी से है जो देश की आजादी से पहले तो राष्ट्र भाषा थी , आजादी की लड़ाई के समय महात्मा गाँधी , सुभाष चन्द्र बोस , लोकमान्य तिलक , गोपाल कृष्ण गोखले , आचार्य विनोबा भावे काका कालेलकर जैसे असंख्य गैर हिंदी भाषी राज्यों के नेताओं ने जिसे देश की आजादी की लड़ाई का मूल शस्त्र माना था उसी भाषा को देश की आजादी के बाद सरकारी संरक्षण की जरूरत महसूस होने लगी और राष्ट्रभाषा राजभाषा बन गई।
ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि देश के आजाद होने के बाद जिन लोगों के हाथों में सत्ता आई वो हिन्दुस्तानी होते हुए भी आधे से ज्यादा अंग्रेज थे। इस वजह से राष्ट्रीय स्तर पर अंगरेजी के साथ प्रतिस्पर्धा में हिंदी आगे नहीं बढ़ सकी। ये स्थिति क्षेत्रीय भाषाओं के साथ नहीं थी क्योंकि आजादी के बाद भी राज्यों के स्तर पर क्षेत्रीय भाषाओं में काम हो रहा था ..
केंद्र सरकार के कामकाज में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए उसे राजभाषा के रूप में सरकारी प्रश्रय की जरूरत हो गई थी। इस साल से केंद्र सरकार द्वारा सितम्बर माह में आयोजित किये जाने वाले सरकारी कार्यक्रम में कुछ बदलाव किया गया है। इस बदलाव की वजह से अब सितम्बर के महीने में 5 सितम्बर को सिर्फ एक दिनी शिक्षक दिवस दिवस का आयोजन करने के स्थान पर 5 से 17 सितम्बर तक एक 13 दिवसीय शिक्षा पर्व मनाने की योजना है। इस पर्व के दौरान शिक्षक दिवस के साथ ही हर साल संविधान दिवस की तर्ज पर साल में एक दिन शिक्षा दिवस का आयोजन भी हुआ करेगा। शिक्षक दिवस पर शिक्षकों को सम्मानित करने की मौजूदा व्यवस्था के साथ ही अब शिक्षा से जुड़े अन्य विभागों को भी सम्मानित करने का एक नया सिलसिला शुरू होगा। इस तरह अब सितम्बर के महीने में राजभाषा पखवाड़े के साथ ही शिक्षा पर्व के रूप में एक अन्य पखवाड़े का आयोजन भी हुआ करेगा।
इन दो पखवाड़ों के आयोजन की वजह से 5 सितम्बर से लेकर 28 सितम्बर के बीच 24 दिन दिन सरकारी कार्यालयों के साथ ही स्कूल और कॉलेज के लिए भी अत्यंत व्यस्त दिन हो जाएंगे कहना गलत नहीं होगा कि इन आयोजनों की वजह से सितम्बर का पूरा महीना ही व्यस्त हो क्योंकि शुरू के चार दिन आयोजन की तैयारियों के लिए भी चाहिए और महीने के अंत के दो दिन थकान मिटाने के लिए भी जरूरी होंगे। केंद्र सरकार के स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग के अतिरिक्त सचिव संतोष कुमार सारंगी ने कुछ दिन पहले ही इस संबंध में जानकारी देते हुए कहा था कि हर साल की तरह इस वर्ष भी इस वर्ष 5 सितंबर को 44 शिक्षकों को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित करने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 7 सितंबर को शिक्षा सम्मेलन को संबोधित करेंगे। इस कार्यक्रम में शिक्षक, माता-पिता और छात्र शामिल होंगे। इस तरह शिक्षा पर्व के पखवाड़े के आयोजन का यह सिलसिला 17 सितम्बर तक जारी रहेगा . इसीलिए कोरोना काल में भी देश के अधिकाँश राज्यों में सितम्बर माह के दौरान स्कूल खोले रखने की व्यवस्था की गई है।
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सितम्बर के महीने में ही शिक्षा , शिक्षक और शिक्षण से जुड़ा एक मामला देश के राजनीतिक रूप से अत्यन्त संवेदनशील लेकिन महत्वपूर्ण समझे जाने वाले राज्य बिहार से सामने आया है।पुष्ट खबर के मुताबिक बिहार के राज्यपाल और इस नाते राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति ( चांसलर ) के पद पर आसीन फागु चौहान के निर्देश पर राज्य के सारण जिले के लोक नायक जय प्रकाश नारायण के नाम से स्थापित विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम से उस अध्याय को ही हटा दिया गया है जिसमें जय प्रकाश नारायण के राजनीतिक विचार और दर्शन को पढ़ने की व्यवस्था है। यह सुन कर तब अजीब लगता है कि जय प्रकाश नारायण को विश्विद्यालय के पाठ्यक्रम से हटाने का काम उस सरकार के समय में किया गया है जिसका मुखिया ( नीतीश कुमार ) खुद को जेपी का राजनीतिक उत्तराधिकारी मानने का दावा करता हो। इस विश्विद्यालय की स्थापना उस समय की गई थी, जब राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया लालू प्रसाद यादव राज्य के मुख्यमंत्री थे।
गौरतलब है किजय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में 1974 से 76 के बीच पूरे देश में की तत्कालीन इंदिरा गाँधी की सरकार के खिलाफ सम्पूर्ण क्रान्ति के नाम पर आन्दोलन किया गया था और इसी आन्दोलन की बदोलत देश में पहली बार 1977 में गैर कांग्रेस जनता पार्टी की सरकार का गठन किया गया था। जेपी के इस आंदोलन को विपक्ष के तत्कालीन प्रमुख घटक भारतीय जनसंघ के साथ ही तमाम गैर कांग्रेसी विपक्ष का समर्थन भी प्राप्त था और इसी विपक्ष ने जनता पार्टी की सरकार का गठन भी किया था जिसके मुखिया मोरारजी देसाई थे।
बिहार में जेपी की नाम वाले विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम से जेपी को ही हटा देने की इस घटना से बिहार की राजनीति में तो बबाल खडा ही हो गया है , इसका असर देश के दूसरे राज्यों की राजनीति में भी देखने को मिलेगा क्योंकि जेपी आन्दोलन केवल बिहार का नहीं बल्कि पूरे देश का आन्दोलन था। इसी आन्दोलन से यह आवाज भी उठी थी की देश की जनता को अपने नाकारा जनप्रतिनिधि को संसद और विधान मंडलों से वापस बुलाने का अधिकार ( Right to recal ) भी दिया जाए। राजननीतिक दलों के नेताओं ने राज्य सरकार के इस फैसले को बर्दाश्त के बाहर बताया है और इसकी वापसी के लिए अंतिम समय तक संघर्ष करने का आह्वान भी किया है।