सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद अयोध्या के सदियों पुराने विवाद का हल होता दिखाई दिया था। अगस्त 2019 में आये सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का न केवल मंदिर और मस्जिद समर्थक समेत दोनों पक्षों ने स्वागत किया था बल्कि देश की सभी जातियों और धर्मों के अनुयायियों और सभी क्षेत्रों के लोगों ने इसे मर्यादा पुरुषोत्तम के प्रति देश के उचित सम्मान के प्रतीक में स्वीकार भी किया था। अयोध्या में राम का भव्य मंदिर बने , मंदिर के आसपास स्कूल , पुस्तकालय , चिकित्सालय जैसी सार्वजनिक सुविधाएं भी विकसित हों यही पूरे देश की हार्दिक अभिलाषा और इच्छा भी है। देश इस काम को आगे बढ़ाने के लिए भी तत्पर दिखाई देता है इसीलिए जनता के चंदे से अरबों रुपये इस काम के लिए जमा भी कर दिए गए हैं।
राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट इस अकूत संपदा का संचालन करने के साथ ही मंदिर निर्माण के प्रबंधन में भी लगा है। देश के जनता बहुत बेसब्री के साथ उस दिन का इन्तजार कर रही जब एक प्रेरणा स्थल के रूप में राम का भव्य मंदिर अयोध्या के उस कथित विवादास्पद स्थल में बन कर तैयार हो जाएगा जहां करीब 30 साल पहले 6 दिसम्बर 1992 को एक विवादास्पद धार्मिक ढाँचे को कुछ उपद्रवियों ने जमींदोज कर दिया था। लगता है कुछ लोगों को यह सब अच्छा नहीं लगता कि देश में शांति हो और धार्मिक मामलों में इस तरह की सदाशयता और आपसी सद्भाव का संचार हो कि सभी धर्मों के आपस में मिल जुल कर एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए एक दूसरे को आगे बढ़ने में सहयोग करते रहें। इसी मानसिकता के लोग कुछ न कुछ उत्पात मचाये ही रखना चाहते हैं। लगता है ऐसा ही कुछ मंदिर परिसर के आसपास राम जन्म भूमि मंदिर के पास 2 करोड़ बनाम 18 करोड़ के कथित ताजा जमीन घोटाले के मामले में भी हुआ है।
इस पूरे मामले में दो तरह की बातें कही जा रही हैं एक बात यह कि जमीन खरीद मामले में जबरदस्त घोटाला हुआ है और 10 मिनट में ही करोड़ों रुपये का हेर – फेर हो गया और दो करोड़ की जमीन राम जन्म भूमि ट्रस्ट ने 18 करोड़ में खरीद ली। ऐसा है तो यह सरासर गलत है क्योंकि मंदिर ट्रस्ट को जनता की संपत्ति को इस तरह लुटाने का कोई अधिकार नहीं है। लिहाजा सरकार और ट्रस्ट को ऐसे लोगों के खिलाफ कठोर से कठोर कारवाई करनी चाहिए जो जनता के पैसे का इस तरह अपने निजी स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके पलट दूसरी कहानी यह है कि जमीन की खरीद फरोख्त का यह मामला महज दस मिनट , दस दिन या दस महीने का नहीं हैं। जमीन की यह खरीद फरोख्त तो एक दशक से भी अधिक समय से चल रही है। फर्क सिर्फ इतना है कि समय – समय पर जमीन के इस टुकड़े को बेचने और खरीदने वाले किसी न किसी रूप में बदलते रहे हैं।
अंत में जब इस जमीन के खरीदार के रूप में अयोध्या राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट अवतरित हुआ तो जमीन के दाम 18 करोड़ तक पहुँच गए थे जिसका उसने भुगतान भी कर दिया। इस पूरे प्रकरण में तमाम बातें तो समझ में आती हैं लेकिन एक बात समझ में नहीं आती कि अयोध्या में मंदिर निर्माण को लेकर जिस भवन और जमीन को लेकर स्वामित्व का विवाद था ,वो तो सुप्रीम कोर्ट ने हल कर दिया था फिर मंदिर ट्रस्ट को अतिरिक्त भूमि की जरूरत किस काम के लिए महसूस हुई . और अगर जरूरत महसूस हुई भी तो क्या ट्रस्ट की कार्यकारिणी की बैठक में इसका विधिवत फैसला लेकर यह काम किया गया था . ऐसा है तो फिर इसका उल्लेख जमीन खरीद से जुड़े नए विवाद में कहीं हुआ क्यों नहीं है ?
ट्रस्ट की तरफ से इन्हीं दो बातों का कोई स्पष्टीकरण न मिलने से शक पैदा होता है कि इस जमीन खरीद में कहीं कोई घोटाला तो नहीं हुआ है ? संक्षेप में इस पूरी कहानी को इस तरह समझा जा सकता है। साल 2011 में जमीन का यह टुकड़ा किसी सुल्तान नामक व्यक्ति ने 2 करोड़ रुपये के समझौते ( अग्रीमेंट ) पर ली थी . जब यह जमीन मंदिर ट्रस्ट को बेचने की बात आयी उससे पहले जमीन की पुरानी कीमत का भुगतान कर जमीन का बैनामा अपने नाम कराया और फिर 18 करोड़ में यह जमीन मंदिर ट्रस्ट को बेच दी। इसलिए यह कहना सही नहीं होगा कि मिनटों में ही दो करोड़ की जमीन 18 करोड़ की हो गई। मंदिर निर्माण और ट्रस्ट को दी गई जमीन के बारे में प्राप्त सूचना के मुताबिक केंद्र सरकार ने इस काम के लिए 70 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर उसका स्वामित्व मंदिर ट्रस्ट को सौंपा था। मंदिर का निर्माण अभी शुरू ही हुआ है ऐसे में अचानक अतिरिक्त भूमि की जरूरत इस काम के लिए क्यों पड़ गई इसका ट्रस्ट के दस्तावेजों में कहीं कोई उल्लेख क्यों नहीं है ?
अब कहा जा रहा है कि ट्रस्ट ने मंदिर के विस्तार का प्लान बनाया। तय किया कि मंदिर परिसर का विस्तार 108 एकड़ में होगा। इसके लिए ट्रस्ट ने मंदिर के आस-पास 70 एकड़ और अतिरिक्त जमीन की खरीद शुरू की थी उसी में जमीन का एक टुकड़ा यह भी है। अयोध्या के जिस बाग बिजैसी की जमीन खरीद को लेकर ताजा विवाद खड़ा हुआ है वह जमीन 2010 से पहले प्रॉपर्टी डीलर फिरोज खान के नाम थी। इसमें से 180 बिस्वा जमीन फिरोज ने 2010 में ही बबलू पाठक को बेच दी थी। बबलू पाठक ने 4 मार्च 2011 को इसमें से 100 बिस्वा जमीन का एग्रीमेंट एक करोड़ रुपए में इरफान खान उर्फ नन्हें मियां से कर लिया था।
तब एडवांस के तौर पर नन्हें ने बबलू को 10 लाख रुपए दिए थे। नन्हें के बेटे सुल्तान अंसारी और बबलू पाठक के बीच अच्छी दोस्ती है। चूंकि एक एग्रीमेंट की वैधता तीन साल के लिए होती है, इसलिए बबलू ने 2015 में फिर से वही जमीन नन्हें के बेटे सुल्तान अंसारी के नाम कर दी। इस तरह से 2011 से लेकर 2020 तक सुल्तान हर तीन साल में अपने परिवार के अलग-अलग सदस्यों के नाम उसका एग्रीमेंट कराता रहा। आखिरी बार 2019 में इस जमीन का एग्रीमेंट में हुआ था।
तब इसकी कीमत 2 करोड़ रुपए थी। एग्रीमेंट में 2 करोड़ रुपए के हिसाब से इस जमीन को सुल्तान के नाम देने का तय हुआ। जमीन को लेकर बबलू और सुल्तान के बीच अच्छी अंडरस्टैंडिंग रही। बबलू ने कभी भी जमीन का बकाया पैसा लेने के लिए दबाव नहीं डाला। जब राम मंदिर ट्रस्ट को जमीन की जरूरत पड़ी तो ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बबलू और सुल्तान दोनों से संपर्क किया। मार्च 2021 में चंपत राय ने बबलू से 80 बिस्वा जमीन 8 करोड़ रुपए में खरीद ली। बाकी 100 बिस्वा जमीन सुल्तान से 18.5 करोड़ रुपए में खरीदी। ट्रस्ट के नाम जमीन करने से पहले सुल्तान ने बबलू पाठक को 100 बिस्वा जमीन की बची हुई कीमत यानी 1.90 करोड़ रुपए देकर बैनामा करा लिया। चूंकि जमीन की कीमत को लेकर दोनों के बीच पहले ही एग्रीमेंट हो चुका था इसलिए उसके लिए सुल्तान को दो करोड़ रुपए ही देने पड़े। बैनामा कराने के बाद सुल्तान ने जो जमीन 2 करोड़ रुपए में खरीदी थी उसे ट्रस्ट को 18.5 करोड़ रुपए में बेच दी। आज की डेट में इस जमीन का सरकारी रेट करीब 6 करोड़ है, जबकि मार्केट रेट 20 करोड़ है।