नई दिल्ली।। INSIDE STORY
किसान आंदोलन का आज 20वां दिन है , धीरे धीरे दिल्ली में सर्दी बढ़ रही है और इस आंदोलन की गर्मी । ना किसान पीछे हटने को राजी है और ना सरकार झुकने को तैयार इस आंदोलन में अभी तक 20 किसान अपनी जान गवां चुके है पर सरकार की सेहत पर कोई आंच नहीं आई। सरकार के केंद्रीय मंत्री सार्वजनिक मंच से खुले आम इस आंदोलन को देशद्रोह बताने पर आमादा है।
दिल्ली की सीमा पर नए कृषि कानूनों के खिलाफ जमे किसानों की तरफ से घेराबंदी बढ़ गई है। देश के हर कोने से लोग इस आंदोलन को अपना योगदान देने के लिए चले आ रहे है। कानूनों के समर्थन में इस आंदोलन को कमजोर करने के लिए सरकार की तरफ से भी कोशिश तेज़ हो गई है क्योंकि ये दोनों पक्षों के लिए साख का सवाल बन गया है।
इस बात को बल इस बात से मिलता है , देश मे तमाम घटनाओं में बार -बार कहने के बाद भी अन्ना हज़ारे ने कभी मुँह नहीं खोला अब अचानक नींद से जागकर वो अनशन की घोषणा करते दिखाई दे रहे हैं। दूसरी तरफ जंगल और पानी की बात करने वाले संगठन भी किसान आंदोलन के हिमायती बनके आगे आते दिख रहे है , ऐसी सक्रियता गंगा आंदोलन के समय भी दिखी थी पर हुआ उनकी जान चली गई पर हुआ कुछ नहीं ऐसे कुछ संगठन सरकारों के हिमायती और सरकार के लिए काम करते है उनकी फंडिंग सरकारी खर्चो पर होती है।
दूसरी तरफ आंदोलन के लंबा खिंचने से इसे देश विरोधी ताकतों व राजनीतिक छाप से बचाना भी किसान संगठनों के सामने बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। क्योंकि किसान किसी भी मुद्दे पर कमजोर नहीं पड़ना चाहते भाकियू हरियाणा के अध्यक्ष गुरनाम चढूनी, नेता कर्म सिंह मथाना, प्रेस प्रवक्ता राकेश बैंस का कहना है कि आंदोलन को टुकड़े-टुकड़े करने की कोई साजिश सफल नहीं होगी। किसान ने आंदोलन अपनी जमीन बचाने के लिए छेड़ा है। इसे सिरे चढ़ाए बिना किसान अब घर नहीं लौटेगा। उन्होंने आंदोलन में शामिल सभी किसानों, नौजवानों से किसी के बहकावे में न आने व शांति बनाए रखने की अपील की है।
एसवाईएल का मुद्दा उठाकर पंजाब को घेरने की रणनीति है हरियाणा में बड़ी संख्या में किसान रोजाना नए कानूनों के समर्थन में आ रहे हैं। सोमवार को हरियाणा युवा किसान संघर्ष समिति दिल्ली पहुंची और केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर से मुलाकात कर अपनी मांगें रखी। केंद्र सरकार अपनी साख बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है क्योंकि अब ये मुद्दा अंतराष्ट्रीय बन चुका है पूरी दुनिया की मीडिया की नजरें भारत पर टिकी है।
कोरोना का बहाना बना कर सरकार शीतकालीन सत्र बुलाने से अपनी गर्दन बचा रही है क्योंकि उसको पता है देश भर के किसान नाराज है , जाहिर है किसान नेता भी सरकार में है वो भी कब तक अपनी कौम से गद्दारी करके राजनीति करेंगे आखिर में उनको अपनी जनता का साथ देना ही पड़ेगा।