अप्रैल के तीसरे सप्ताह से पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में जी 20 सम्मेलन के चार दौरे की वार्ता शुरू होने जा रही है, जिसमें विदेशी मेहमान बनारस दौरे पर आएंगे। ऐसे में भारत सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार के आज्ञा अनुसार जिला प्रशासन के समस्त विभाग बनारस शहर को सुंदर बनाने में लगे हुए हैं। बनारस का यह सौंदर्यीकरण कहां तक और किस हद तक जायज है?
इसके साथ ही इस सुंदरीकरण के अभियान में कितने लोगों का रोजी रोजगार जा रहा है? इस पर प्रशासनिक अम्लों के अधिकारियों का ध्यान ही नहीं जा रहा है। अधिकारीयों को तो बस अपने मातहतों के सामने बनारस को बनारस नहीं आर्टिफिशियल बनारस बनाना है, जिसके लिए जनता के पैसों से वसूले गए भारी भरकम टैक्स से हुई आमदनी को औने पौने दामों के साथ लुटाया जा रहा है। इसी मुद्दे को ध्यान में रखते हुए तक्षक पोस्ट की टीम ने शहर के सौंदर्यीकरण की आड़ में भुखमरी एवं बेरोजगारी की कगार पर पहुंच चुके दुकानदारों से बातचीत की और उनकी पीड़ा को उठाने का प्रयास किया।
रेहड़ी पटरी दुकानदारों के सामने खड़ा हो गया है भयंकर संकट-
बनारस में अपने जीविकोपार्जन करने के लिए लोगों के द्वारा सड़कों के किनारे ठेला और गुमटी लगाकर अपना व्यवसाय किया जाता है. जिसमें वह खाने पीने की चीजों से लेकर के खिलौनों, मोबाइल, एसेसरीज ,पान मसाला इत्यादि का व्यवसाय करते हैं और उससे मिली हुई आमदनी से अपने परिवार का जीव को पार्जन करते हैं। ऐसे में बहुत ज्यादा मात्रा में धरना प्रदर्शन आंदोलन करने के बाद जिला प्रशासन और नगर निगम प्रशासन की तरफ से शहर के अंदर कई लोकेशन पर वेंडिंग जोन बनवाए गए और उन वेंडिंग जोन में मात्र 1700 दुकानदारों को अपनी दुकानों को लगाने की परमिशन दी गई। इतनी कम संख्या के बाद भी शहर के अंदर जीविकोपार्जन करने के लिए प्रत्येक सड़क पर सैकड़ों दुकानदार अपनी दुकानें लगाते हैं जिनकी अमूमन संख्या मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 17000 से ज्यादा है। अब सौंदर्यीकरण की आड़ में इन दुकानदारों को हटाया जा रहा है। इनके ठेले और गुमटियो को जप्त किया जा रहा है। इनके सामानों को जब्त किया जा रहा है। इनका चालान काटा जा रहा है तथा इन को प्रताड़ित किया जा रहा है, जिसके कारण इनके सामने अपने रोजगार को लेकर संकट खड़ा हो गया है और इनकी सुनवाई करने के लिए कोई भी अधिकारी तैयार नहीं हो रहा है।
आम आदमी के सामने भी हो गया है संकट-
बनारस में 70% जनता मध्यम वर्गीय एवं गरीब श्रेणी के अंतर्गत आती है जिनकी पेयिंग कैपसिटी बहुत ज्यादा नहीं है और ना ही वे बर्गर मैकडॉनल्ड एवं शहर के टॉप टेन या अच्छे रेस्टोरेंट्स में जाकर के भोजन कर सकते हैं। ऐसे में इन दुकानदारों के द्वारा ही जो खाद्य पदार्थ बना कर के बेचे जाते थे उन्हीं के दम पर मैक्सिमम जनता अपना पेट पालती है। जब यह दुकाने ही हटाई जा रही है, दुकानों का अस्तित्व ही खत्म किया जा रहा है तो ऐसे में आम नागरिकों के सामने ही भोजन का संकट उत्पन्न होने जा रहा है। आखिर उनकी आमदनी ज्यादा नहीं तो वह कैसे और कहां पर अपनी भूख को शांत करने के लिए जाएं? इतना ही नहीं इन रेहड़ी पटरी दुकानदारों के द्वारा अमीर एवं रईस लोगों को उनकी आवश्यकता की चीजें भी समय-समय पर उपलब्ध कराई जाती रही है।
सामने खड़ा हो गया है भयंकर संकट-
अब तक अतिक्रमण के नाम पर शहर से हजारों की संख्या में नगर निगम प्रशासन के द्वारा ठेला और गुमटी को कब्जे में कर लिया गया है। इसके साथ ही जिनके ठेले और गुमटी को कब्जे में नहीं किया गया है उनको इतना ज्यादा चालान काट दिया गया है कि वह चालान भरने के लिए ही परेशान हो गए हैं। उनको दुकाने ना लगाने के लिए विवश किया जा रहा है और यह घटनाक्रम करीब 15-20 दिनों से जारी है। ऐसे में 15-20 दिनों से लगातार दुकाने नहीं खुलने के कारण दुकाने नहीं लगने के कारण उनकी आमदनी बिल्कुल ठप हो गई है। आमदनी ठप होने के कारण उनकी दैनिक दिनचर्या पूरी तरीके से प्रभावित हो गई है। बच्चों की पढ़ाई मेडिकल के खर्चे कोचिंग की फीस मोबाइल रिचार्ज खाने पीने के सामान फास्ट फूड के आइटम इत्यादि चीजों के लिए उनको संकट का सामना करना पड़ रहा है और वह अपनी जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं।
ऐसे में जब तक्षक पोस्ट की टीम शहर में निकली तो सिगरा मे बाटी चोखा की दुकान लगाने वाले फेमस बाटी चोखा के नाम से मशहूर दुकानदार रवि प्रकाश से बातचीत की रवि प्रकाश का कहना है पिछले 15 दिनों से वह दुकान नहीं खोल पा रहे हैं जिसके कारण उनकी आमदनी पूरी तरीके से ठप हो गई है। घर का खर्च चलाना भी अब मुश्किल हो गया है। बच्चों के स्कूल की फीस अगले महीने की कहां से जमा करें इसके लिए अब उनके सामने संकट पैदा हो गया है। उनका कहना है कि अगर हम लोगों को वेंडिंग जोन में ही दुकान लगाने की इजाजत दे देते तो हम वहां पर लगा कर के अपना जीवन को पार कर लेते लेकिन वेंडिंग जोन भी तो नहीं दे रहे हैं। आगे चलकर के हमारी टीम ने लंका बीएचयू के सामने मोमोज का ठेला लगाने वाले प्रवीण से बात की। प्रवीण का कहना था कि वह यही फुटपाथ पर पिछले चार-पांच सालों से मोमोज का ठेला लगाते थे और प्रतिदिन उनकी 2000 से 3000 की आमदनी हो जाती थी। उसी आमदनी के दम पर वह अपने 12 लोगों के संयुक्त परिवार का निर्वहन करते थे। उनके समस्त प्रकार के खर्चों का वहन करते थे। ऐसे में 20 दिनों से वहां से ठेला हटा दिया गया है। मोमोज का काउंटर लगा नहीं पा रहे हैं जिसके कारण उनकी आमदनी पूरी तरीके से ठप हो चुकी है। शिकायत करे तो किससे करें। क्योंकि कोई ध्यान देने वाला भी तो नहीं है।
आगे चलते हुए हमारी टीम ने मडुआडीह में राजमा चावल और कढ़ी चावल की दुकान करने वाले अतुल से मिली। अतुल मूलतः झारखंड के जमशेदपुर के रहने वाले हैं और पिछले 15 सालों से मडुआडीह में ही राजमा चावल कढ़ी चावल की दुकान लगा कर के अपने घर परिवार का खर्च चलाते हैं। अतिक्रमण और जी-20 के नाम पर सुंदरीकरण का ऐसा प्रहार उनके ऊपर हुआ कि उनकी दुकानों को ध्वस्त कर दिया गया। उनकी गुनती को प्रवर्तन दल ने जप्त कर लिया। अब वह गुनती अपनी नहीं लगा पा रहे हैं तो कैसे आमदनी करें। यही नहीं आगे चलते हुए शहर के एंट्री पॉइंट कहे जाने वाले पांडेपुर चौराहे से काली माता मंदिर रोड पर जाने वाले फ्लाईओवर के नीचे ही नमकीन कुरकुरे चिप्स इत्यादि आइटम का ठेला लगाने वाले गगन का कहना है कि रोजाना वह शाम को यहां पर ठेला लगाते थे तीन-चार घंटे आमदनी करते थे। उसी के दम पर अपने परिवार को चलाते थे लेकिन अब तो पुलिस ने ठेला भी लगाना उनका बंद करवा दिया है। कहा जा रहा है कि जी20 को लेकर की तैयारियां चल रही हैं, ऐसे में इन रेहड़ी पटरी ठेला वालों की वजह से शहर की सूरत खराब हो जाती है। इसलिए इनको हटाया जा रहा है तो आप ठेला नहीं लगा सकते।
वही इस बारे मे शहर के ठेला पटरी व्यवसाय समिति के सचिव अभिषेक निगम का कहना है कि प्रशासन की तरफ हम व्यापारियो का शोषण किया जा रहा है और बार बार हम लोगो पर कार्रवाई की जा रही है जो कि दमनकारी और प्रतिशोध किया जाने वाला फैसला है।
सौंदर्यीकरण के नाम पर रेहड़ी पटरी वाले ही क्यों निशाने पर –
शहर को सुंदर बनाना एक अच्छा काम है और हर व्यक्ति हर इंसान चाहता है उसका शहर उसका जिला उसका समाज दिखने में खूबसूरत हो सुंदर हो साक्षर हो। तो ऐसे नहीं शहर के सौंदर्यीकरण को लेकर के जी-20 की तैयारियों में सबसे पहले यह रेहड़ी पटरी वाले ही क्यों निशान पर आते हैं? आखिर जो रेडी पटरी वाले अपनी दुकानों के माध्यम से अपने परिवार का तो भोजन लाते ही है इसके साथ ही बनारस शहर में मौजूद हजारों हजार की संख्या में आने वाले पर्यटकों तीर्थ यात्रियों एवं पूर्वांचल के विभिन्न जिलों से आने वाले लोगों के साथ ही आस-पड़ोस के राज्य जैसे बिहार-झारखंड मध्य प्रदेश से जो लोग आते हैं उन का भरण पोषण करते हैं उनकी पसंद की चीजें खिलाते हैं, तो उनको ही सबसे पहले निशाने पर क्यों लिया जाता है? आखिर क्यों नहीं इनको वेंडिंग जोन की व्यवस्था कर दी जाती? इस बारे में जब नगर निगम के प्रवर्तन दल प्रभारी कर्नल राघवेंद्र मौर्या से बातचीत की गई तो उनका कहना था रेहड़ी वाले जितने भी दुकानदार होते हैं उनको नगर निगम के तरफ से कोई परमिशन नहीं दी जाती है। वह अपने मनमाने तरीके से लगाते हैं। हमें तो शहर को सुंदर बनाना है। सड़क को अतिक्रमण मुक्त करना है तो हमारी सड़कों पर जो भी रेहडी पटरी वाले आएंगे हम एक्शन लेंगे और कार्यवाही करेंगे। आगे इसी मसले पर अपर नगर आयुक्त सुमित कुमार से बातचीत की गई तो उनका कहना था रेहड़ी पटरी वालों के लिए वेंडिंग जोन की व्यवस्था की गई है। उनकी संख्या कम है लेकिन शहर की सड़कों को अतिक्रमण मुक्त करने के लिए हमें अभियान चलाना पड़ रहा है। इस दौरान हमारी नियमानुसार जो भी कार्यवाही होगी व की जाएगी। इसमें मानवीय संवेदना रखते हुए कार्यवाही नहीं की जा सकती कि हमें अपने रूलबुक के अनुसार कार्य करना होगा।
जी20 के लोगों से छिपा दिया मलिन बस्ती को –
प्रशासन के द्वारा जहां शहर को सुंदर दिखाया जाने के लिए लाख जतन लाख प्रयास किए जा रहे हैं। वहीं पर शहर की छवि को सुंदर दिखाने में कहीं यह मलिन बस्ती वाले विदेशी मेहमानों के सामने ना पड़ जाए ऐसे में उनकी बस्तियों को गंगा पुल से जी20 का स्टेच्यू लोगो और तमाम चीजें लगाते हुए ढक दिया गया है। पहले जैसे ही कोई भी व्यक्ति नदेसर से कचहरी की तरफ आगे बढ़ता था तो वरुणापुल से बाई तरफ हजारों की संख्या में मलिन बस्तियों में निवास करने वाले लोग दिख जाते थे। प्रशासन ने इन बस्ती में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर में सुधार करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। इनके रहने खाने के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई। यहां पर कोई व्यवस्था करते हुए पेयजल लाइनों से व्यवस्थित नही किया गया। अपना जीवन यापन गरीबी रेखा के नीचे करते हुए चले आ रहे हैं। ऐसे में जब समय करीब आ गया प्रशासनिक अधिकारियों ने जी 20 के बड़े-बड़े पोस्टर बैनर लगाते हुए इनकी बस्तियो को ढक दिया, जिससे इन पर किसी की नजर ना पड़े और शहर की सुंदरता बनी रहे। ऐसे में शहर को सुंदर बनाने का जिम्मा संभालने वाले अधिशासी अभियंता आलोक राम से बातचीत की गई तो उनका कहना था हमें तो बड़ा पुल पर स्टैचू बनाना था और पोस्टर और बैनर भी लगाने थे। हमारे ध्यान में यह नहीं रह गया कि यह लोग ढक गए हैं कोई बात नहीं है सामने से रास्ता खुला है पुल की तरफ से।
ढोल नगाड़े के साथ लुटा दिए 594 करोड रुपए-
जी20 अभियान को सफल बनाने के लिए बनारस शहर में खास करके चार विभागों को जिम्मेदारी दी गई है। इनमें नगर निगम जिसको सौंदर्यीकरण का जिम्मा सौंपा गया है। वीडीए जिसे प्लानिंग और एग्जीक्यूशन की जिम्मेदारी दी गई है। बिजली विभाग इस विभाग को पोल शिफ्टिंग ट्रांसफॉर्मर शिफ्टिंग पो पेंटिंग इत्यादि कामों की जिम्मेदारी दी गई है। इसके साथ ही पीडब्ल्यूडी पीडब्ल्यूडी को शहर की सड़कों को शहर की नालियों को चुस्त-दुरुस्त करने की जिम्मेदारी दी गई है। इन चारों विभागों को कार्य करने के लिए और कराने के लिए अलग-अलग बजट भी आवंटित किए गए हैं। इनमें अकेले मात्र नगर निगम को 594 करोड रुपए पीडब्ल्यूडी को 405 करोड रुपए बिजली विभाग को 9 करोड रुपए वीडीए को 22 करोड़ रुपए दिए गए हैं। आखिर यह जो रुपए दिए गए हैं जो रुपए लुटाए जा रहे हैं यह किसके हैं? इन्हीं रुपयों की मदद से अगर सरकार चाहती तो शहर की 3500000 जनता का जीवन स्तर सुधारा जा सकता था और यह जनता अपने आप में ही जीवन को सफल बनाने के लिए भरसक प्रयास करती है और आगे बढ़ चढ़कर के कदम से कदम मिलाकर के चलती। लेकिन आम आदमी की स्थिति में सुधार करने के लिए प्रशासनिक अमला कोई जिम्मेदारी और जवाबदेही नहीं ले रहा है और ना ही उनकी तरफ से कोई भी प्रयास किया जा रहा है। बस फूल गमले आर्टिफिशियल घास सड़क बनी हुई सड़कों को दोबारा से बनाने का काम इत्यादि करते हुए अंधाधुंध पैसों को खर्च किया जा रहा है। ऐसे में अब सवाल बनता है अभियान को सफल बनाने के लिए प्रशासन भरसक भरपूर मेहनत करते हुए जुड़ा हुआ है। इस अभियान में कितने परिवारों को भुखमरी का सामना करना पड़ेगा? कितने लोगों का रोजी रोजगार छिना जाएगा? कितनी दुकानें बंद की जाएगी? कितने इंक्रीमेंट वर्क किए जाएंगे? इसके साथ ही और कितना जनता का पैसा पानी की तरह सड़कों पर बहाया जाएगा और लुटाया जाएगा? आखिर जनता को विकास के नाम पर छलावा क्यों दिखाया जाएगा? मान लिया जाए अगर जी20 का अभियान बनारस में सफल है औ बनारस में किया जा रहा है तो जैसे बनारस पहले था वैसे नहीं किया जा सकता था। उसके लिए इतनी चमक-दमक बनाने की क्या जरूरत थी? उन पैसों से आम नागरिकों के विकास के भी तो काम किए जा सकते थे लेकिन मातहतों को इसकी कोई खबर नहीं है।