अयोध्या में राम मंदिर का कार्य जोर शोर से चल रहा है और इस भव्य मंदिर में रामलला की मूर्ति के निर्माण के लिए शालिग्राम शिला नेपाल से रवाना हो चुकी है। मंगलवार को शालिग्राम शिला गोरखपुर पहुंची है और 2 फरवरी को ये शिला अयोध्या पहुंच जाएगी। नेपाल की गंडकी नदी से लाया जा रहा शालिग्राम शिला दो टुकड़ों में है। इन दोनों शालिग्राम शिलाखंडों का वजन 127 क्विंटल है।
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक़, शालिग्राम शिला में भगवान विष्णु का वास माना जाता है। इस शिला की पूजा करने से घर में शांति और समृद्धि आती है। ऐसा कहा जाता है कि शालिग्राम शिला हर तरह की बाधाओं को दूर करती है और वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा पैदा करती है।
शालिग्राम शिला का उल्लेख हिंदू धार्मिक ग्रंथों में भी किया गया है। इन ग्रंथों के अनुसार, दीपावली और दशहरा जैसे त्योहारों में शालिग्राम शिला की पूजा की जाती है। इस शिला को जिस जगह पर स्थापित किया जाता है, उस जगह को तीर्थ स्थल की मान्यता प्राप्त होती है। पुराणों में कहा गया है कि शालिग्राम शिला से आध्यात्मिक लाभ मिलता है। शालिग्राम शिला के पूजन से भक्तों को आध्यात्मिक चेतना की प्राप्ति होती है।
शालिग्राम शिला की खासियत यह है कि अधिकतर ये नेपाल के गंडकी नदी में ही मिलते हैं। वहां के लोग इसे नदी से निकालते हैं और फिर इसकी पूजा करते हैं। यहां पर सालग्राम नाम की एक जगह पर भगवान विष्णु का मंदिर है जहां उनके इस रूप का पूजन होता है।
मान्यताओं के अनुसार शालिग्राम के 33 प्रकार होते हैं। यदि शालिग्राम का आकार गोल है तो उसे भगवान का गोपाल रूप माना जाता है। मछली के आकृति के शालिग्राम मत्स्य अवतार का प्रतीक हैं। कछुए के आकार के शालिग्राम को भगवान विष्णु का कच्छप अवतार माना जाता है। कहा जाता है कि जिस घर में शालिग्राम का वास होता है वहां सदैव सुख-शांति बनी रहती है।
शालिग्राम शिला को देवशिला भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक़, माता तुलसी के श्राप के कारण श्री हरी विष्णु हृदयहीन शिला में बदल गए थे। उनके इसी रूप को शालिग्राम कहा गया।
एक दूसरी कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने छल करके राक्षस जालंधर का वध कर दिया था जिसके बाद राक्षस की पत्नी वृंदा ने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया था। इसके बाद भगवान विष्णु ने वृंदा को वरदान दिया था कि तुम्हारे सतीत्व का फल है कि तुम तुलसी का पौधा बनकर और गंडकी नदी बनकर मेरे साथ रहोगी। इसी कारण शालिग्राम सिर्फ गंडकी नदी में पाए जाते हैं।
वैज्ञानिक आधार पर शालिग्राम एक तरह का जीवाश्म पत्थर होता है। इसे जीव वैज्ञानिक एमोनोइड जीवाश्म कहते हैं। आम तौर पर शालिग्राम शिला का रंग काला होता है, लेकिन यह भूरा और लाल रंग में भी मिलता है।