उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। निकाय चुनाव में पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने को लेकर योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। यूपी सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले के खिलाफ स्पेशल लीव पिटिशन (एसएलपी) दायर की है। हाई कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण को रद्द कर चुनाव कराने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने जनवरी में ही चुनाव प्रक्रिया पूरी करने के लिए भी कहा था। यूपी सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक की मांग की है। 2 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट खुलने पर तत्काल सुनवाई के लिए अनुरोध किया जाएगा।
OBC reservation in urban polls: Yogi govt files SLP in Supreme Court
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— ANI Digital (@ani_digital) December 29, 2022
इससे पहले 27 दिसंबर को सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि प्रदेश सरकार स्थानीय निकाय चुनाव में आयोग गठित कर ट्रिपल टेस्ट के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग के नागरिकों को आरक्षण की सुविधा उपलब्ध कराएगी। इसके बाद ही नगरीय निकाय सामान्य निर्वाचन को सम्पन्न कराया जाएगा।
बीजेपी अपने फैसले पर बरकरार, 5 सदस्यीय पिछड़ा वर्ग आयोग का किया गठन-
निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण देने के लिए योगी सरकार ने 5 सदस्यीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया है। ये आयोग मानकों के आधार पर पिछड़े वर्गों की आबादी को लेकर सर्वे कर शासन को रिपोर्ट सौंपेगा। रिटायर्ड जस्टिस राम अवतार सिंह को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। सदस्यों में चोब सिंह वर्मा, महेंद्र कुमार, संतोष विश्वकर्मा और ब्रजेश सोनी शामिल हैं। ये आयोग राज्यपाल की सहमति से 6 महीने के लिए गठित है, जो जल्द से जल्द सर्वे कर रिपोर्ट शासन को सौंपेगा।
नगर निकाय चुनाव को लेकर क्यों फंसा हुआ है पेंच?
इसी साल नवंबर के महीने उत्तर प्रदेश सरकार ने नगर निकाय चुनाव की सीटों की आरक्षण सूची जारी कर दी थी। इसके खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई थीं जिनमे कहा गया कि सरकार ने ओबीसी आरक्षण जारी करने के लिए ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला नहीं अपनाया। इस फॉर्मूले को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बनाया गया है। हाईकोर्ट में निकाय चुनाव में आरक्षण पर 65 आपत्तियां दायर की गईं थी। याचिकाकर्ताओं द्वारा ओबीसी आरक्षण से लेकर जनरल आरक्षण पर आपत्तियां दर्ज कराई गई थी। सरकार के वकील की तरफ से 2017 के फार्मूले पर आरक्षण लागू किए जाने का दावा किया गया, जिस पर हाईकोर्ट ने सख्त सवाल करते हुए पूछा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में ओबीसी आरक्षण को लेकर नई गाइडलाइन जारी की गई है तो उसका पालन क्यों नहीं किया गया? मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने 27 दिसंबर को प्रदेश में निकाय चुनाव जल्द कराने का आदेश दिया और राज्य सरकार के ओबीसी आरक्षण नोटिफिकेशन को भी रद्द कर दिया था।
क्या होता है ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला?
ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला के मुताबिक़, राज्य को एक कमीशन बनाना होगा, जो अन्य पिछड़ा वर्ग की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट देगा और उसी आधार पर आरक्षण लागू होगा। आरक्षण देने के लिए ट्रिपल टेस्ट यानी 3 स्तर पर मानक रखे जाएंगे जिसे ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला कहा गया है। इस टेस्ट में देखना होगा कि राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग की आर्थिक-शैक्षणिक स्थिति है? उनको आरक्षण देने की जरूरत है या नहीं? उनको आरक्षण दिया जा सकता है या नहीं? साथ ही कुल आरक्षण 50 फीसदी से अधिक ना हो, इसका भी ध्यान रखना था।
बता दें कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्देश में कहा कि अगर अन्य पिछड़ा वर्ग को ट्रिपल टेस्ट के तहत आरक्षण नहीं दिया तो अन्य पिछड़ा वर्ग की सीटों को अनारक्षित माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले को आधार मानते हुए हाई कोर्ट ने यूपी सरकार द्वारा जारी ओबीसी आरक्षण को रद्द कर दिया था।
यूपी में गैर-यादव ओबीसी जातियां कितनी हैं?
• कुर्मी-पटेल – 7 फीसदी
• कुशवाहा-मौर्या-शाक्य-सैनी – 6 फीसदी
• लोध – 4 फीसदी
• गड़रिया-पाल – 3 फीसदी
• निषाद-मल्लाह-बिंद-कश्यप-केवट – 4 फीसदी
• तेली-शाहू-जायसवाल – 4 फीसदी
• जाट – 3 फीसदी
• कुम्हार/प्रजापति-चौहान – 3 फीसदी
• कहार-नाई- चौरसिया – 3 फीसदी
• राजभर- 2 फीसदी
• गुर्जर – 2 फीसदी