लखनऊ: एक तरफ सरकार शिक्षा को लेकर बड़ी घोषणाएं और बातें कर रही है तो दूसरी तरफ सरकारी ढुलमुल रवैये और विश्विद्यालयों की लचर नीति के कारण प्रदेश भर के निजी महाविद्यालयों की स्थिति ना घर के ना घाट के वाली हो गई है। क्योंकि तमाम जगहों पर इस बार नई शिक्षा नीति के तहत कई कोर्स चलने है जिनकी अनुमति के लिए महाविद्यालयों ने समय और नियमों के हिसाब से अनुमति मांगी, विश्विद्यालयों की कार्यपरिषद की बैठक में NOC भी प्रदान किये गए योग्यता रखने वाले महाविद्यालयों को लेकिन खेल यहीं से शुरू होता है। क्योंकि सूत्रों की माने तो मई के पहले हफ्ते में हुई मीटिंग का ब्यौरा और फ़ाइल सार्वजनिक की गई जब तक शासन की तरफ से पोर्टल बंद नहीं कर दिया गया। इसके पीछे मंशा जानबूझ शिक्षा माफियाओं के इशारे पर नये कोर्स को लटकाने की नीयत विश्वविद्यालयों के भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे शिक्षा के गलियारों में अपनी पैठ रखने वाले संबद्धता विभाग की गंदी राजनीति है।
ये कहीं ना कही प्रदेश के शिक्षा माफियाओं के इशारे पर किया गया। बात साफ है सरकार के नाक के नीचे ये मनमानी हुई, विश्विद्यालय और सरकार की उच्च शिक्षा अधिकारी मोनिका गर्ग को जब इस बाबत तक्षकपोस्ट की तरफ से पूछा गया तो उनके दफ्तर से जबाव मिला शिक्षा मंत्री बताएंगे । शिक्षा मंत्री के यहाँ फोन करने पर कहा गया कि उच्च शिक्षा अधिकारी ने फ़ाइल ही नही भेजी है, पोर्टल खोलने और डेट बढ़ाने की अनुमति के लिए।इस पोर्टल की जरूरत नए कोर्स चलाने के लिए फॉर्म भरने के लिए अहम है। हर साल 30 जून तक ये पोर्टल खुला रहता था। इस बार 14 मई को ही क्यों पोर्टल बंद कर दिया गया। क्या ये सचिव को बताना नहीं चाहिए जब प्रदेश के विश्विद्यालयों की कार्यपरिसद की बैठक होने वाली थी। लंबित फाइल धूल फांक रही थी नये कोर्स को नई शिक्षा नीति के तहत पास होकर लागू किया जाना था इस सत्र से फिर क्यों सरकार को पोर्टल बंद करके की जल्दी थीं।
विश्विद्यालयों को जब पोर्टल बंद होने की जानकारी थी तो ऐसे में क्यों कार्यपरिषद की बैठक देर से रखी गई क्या उन्हें नही पता था कि इसके क्या परिणाम होंगे उन महाविद्यालय के ऊपर जो कोरोना के बाद बड़ी मुश्किल दोबारा से सामान्य रूप से शिक्षा को पटरी पर लाने के लिए प्रयासरत है। उच्च शिक्षा मंत्री व्हाट्सएप के जरिये निवारण कर रहे है शिकायतों की ऐसे में इस तरह की शिकायतों का निपटारा कैसे हो।