सात के अंक का हम भारतीयों के लिए बड़ा महत्त्व होता है। सात का अंक सुखद और भाग्यशाली माना जाता है। वैसे तो दुनिया के सभी देशों में सात के अंक को ख़ास माना जाता है लेकिन भारतीय दर्शन और चिंतन परंपरा में इसका महत्त्व कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण हो गया है। इसकी वजह से ही शादी में सात फेरे लेने की प्रथा है। यज्ञोपवीत धारण करने वाले भी सात डोरे वाली जनेऊ पहनना ज्यादा उचित मानते हैं। हमारे यहाँ संगीत के सात सुर .सा , रे , गा , मा , पा , धा और नी के साथ ही सप्ताह के सात दिन, सात तारों का सप्त ऋषि मंडल और इन्द्रधनुष के सात रंगों को धार्मिक सन्दर्भ में यथोचित सम्मान दिया जाता है।
आज भी सात तारीख है यानी साल के नौवें सितम्बर महीने का सातवां दिन। भारतीय इतिहास के सन्दर्भ में 5 सितम्बर के बाद अब 7 सितम्बर भी एक महत्वपूर्ण तारीख हो गई है। 5 सितम्बर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था और यह देश उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाता है। अब शिक्षक दिवस के इस सालाना आयोजन को विस्तार दिया गया है। एक पखवाड़े तक चलने वाले इस आयोजन को शिक्षक पर्व नाम दिया गया है। शिक्षक पर्व का पहला आयोजन शिक्षक दिवस था जो 5 सितम्बर को मनाया गया था और इस मौके पर देश के 44 शिक्षकों को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। आज 7 सितम्बर को शिक्षक पर्व की इसी श्रंखला की दूसरी कड़ी के रूप में राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलनका आयोजन किया जाना है। इस आयोजन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संबोधित करेंगे। 5 से 17 सितम्बर तक मनाये जाने वाले शिक्षक पार्व आयोजन के इस दूसरे कार्यक्रम में शिक्षकों के साथ ही छात्र और उनके अभिभावक भी हिस्सा लेंगे।
देश के सभी स्कूलों में आयोजित होने वाले ऐसे कार्यक्रमों को सफल बनाने की योजना के तहत ही करीब डेढ़ साल से बंद स्कूलों को नए सिरे से खोलने और वहाँ कोरोना से बचाव के लिए टीकाकरण , स्वच्छता अभियान और सेनिटाईजेशन के तमाम काम तेज गति से संपन्न भी कराए गए हैं ..गौरतलब है कि सितंबर का महीना शिक्षक दिवस आयोजन के साथ ही इसलिए भी खास माना जाता है क्योंकि इसी महीने 14 से 28 सितम्बर के बीच हिंदी पखवाड़े का आयोजन भी किया जाता है जिसमें सरकारी कार्यालयों के कामकाज में राजभाषा के नाम पर हिंदी के विकास को केंद्र में रख कर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस पखवाड़े का आयोजन तो पिछले पांच से अधिक दशक से किया जा रहा है लेकिन सरकारी कार्यालयों में हिंदी का विकास देश की आजादे के 70 साल बाद भी बहुत मंद गति से ही हुआ है। यही वजह है कि देश की राजधानी दिल्ली की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के कार्यालयों में राजभाषा अधिनियम 2002 का धड़ल्ले से उल्लंघन हो रहा है और इस तरह हिंदी की उपेक्षा का सिलसिला भी लगातार जारी है। हाल ही में इस बाबत डाटा मेल डॉट कॉम के जरिए प्रवीण कुमार जैन नामक एक एमकॉम , ऍफ़सीएम ,एलएलबी डिग्री धारी सज्जन ने अपनी तरफ से जारी की गई एक लोक शिकायत में कहा है कि दिल्ली प्रदेश में काले अंग्रेजों की सरकार ने हिंदी का बंटाधार कर रखा है।
हिंदी प्रेमी प्रवीण कुमार जैन की इस लोक शिकायत के आधार पर ही मुंबई के एक हिंदी प्रेमी सेच्छिक संगठन वैश्विक हिंदी संगठन ने इस शिकायत को एक लेख के रूप में अपनी वेबसाइट और साहित्यिक पत्रिका झिलमिल में प्रमुखता से स्थान भी दिया है। इसी संदर्भ में इन दोनों प्रकाशनों ने उत्तर प्रदेश सरकार के कामकाज के साथ तुलना करते हुए एक और खुलासा भी किया है।
इस खुलासे के जरिये यह बताया गया है कि एक तरफ तो दिल्ली की आप सरकार हिंदी की उपेक्षा कर रही है दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश की योगी सरकार राज्य के गोरखपुर स्थित दीन दयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय के माध्यम से उन लोगो को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए निशुल्क प्रशिक्षण देने को तैयार है जो संस्कृत के माध्यम से इन परीक्षाओं में बैठने के इच्छुक हैं। लोक शिकायत के मुताबिक़ दिल्ली सरकार के सभी कार्यालयों में राजभाषा अधिनियम 2002 का उल्लंघन लगातार जारी है और राज्य सरकार के कार्यालयों में जनता पर अंगरेजी थोपने का काम जारी है। दिल्ली सरकार में हिंदी के कामकाज की उपेक्षा को लेकर की गई इस 14 सूत्रीय लोक शिकायत के अनुसार-
दिल्ली सरकार की वेबसाइट और ऑनलाइन सेवाएं हिंदी में उपलब्ध नहीं हैं ,आम जनता के हिंदी में लिखे आवेदनों , पत्रों और शिकायतों के जवाब नहीं दिए जाते ,सारी स्टेशनरी – फॉर्म और आवेदन पत्र -लिफ़ाफ़े – मुहर – साइन बोर्ड और लैटरहेड सब कुछ केवल अंगरेजी में, राज्य सरकार सूचना के अधिकार से सम्बंधित आवेदनों के जवाब भी अंगरेजी में ही देती है ,परिवहन से सम्बंधित ज्यादातर जानकारी भी अंगरेजी में ही उपलब्ध कराई जाती है, अंग्रेजी थोपने के खिलाफ भेजी जाने वाली शिकायतें दिल्ली सरकार के ही एक से अधिक कार्यालयों का चक्कर काटती रहती हैं वांछित व्यक्तियों तक उनका जवाब समय से नहीं पहुंच ही नहीं पाता ,जनता को सरकार की नीतिगत और योजनागत हर जानकारी उस अंगरेजी भाषा में दी जाती है जिसे वो पढ़ – लिख और बोल भी नहीं पाती , आरोप है की दिल्ली सरकार ने कोरोना से बचाव , उपचार और रोकथाम संबंधी तमाम जानकारियाँ भी जनता को हिंदी में उपलब्ध कराना उचित नहीं समझा। इसकी वजह से ऐसी तमाम जानकारियां केवल अंगरेजी भाषा में ही उपलब्ध हो सकीं, इसे किसी भी तरह सही नहीं ठहराया जा सकता। राज्य सरकार की इन हरकतों को देख कर ऐसा लगता है की सरकार भाषा के आधार अंगरेजी न जानने वाली जनता के साथ भेदभाव करती है, आरोप यह भी है की दिल्ली की हिंदी अकादमी ने पिछले एक दशक में हिंदी भाषा की तरक्की के लिए कोई बड़ा काम नहीं किया। इस लिहाज से यह कहा जा सकता है की सरकारी स्तर पर दिल्ली में हिंदी की दुर्दशा ही हो रही है।