लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने बुधवार को 1975 में आपातकाल लागू करने के फैसले की निंदा की और इस दौरान अपनी जान गंवाने वाले नागरिकों की याद में दो मिनट का मौन रखा, जिसके बाद विपक्ष ने जोरदार विरोध प्रदर्शन और नारेबाजी की। लोकसभा अध्यक्ष चुने जाने के बाद सदन में बोलते हुए ओम बिरला ने कहा कि आपातकाल के “काले दौर” के दौरान भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचल दिया गया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंट दिया गया।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बुधवार को 1975 में आपातकाल लागू करने के फैसले की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पढ़ा और इस दौरान अपनी जान गंवाने वाले नागरिकों की याद में दो मिनट का मौन रखा, जिसके बाद विपक्ष ने जोरदार विरोध प्रदर्शन और नारेबाजी की।
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आपातकाल पर पेश किए गए प्रस्ताव पर लोकसभा अध्यक्ष ने कहा, “ये सदन 1975 में देश में आपातकाल(इमरजेंसी) लगाने के निर्णय की कड़े शब्दों में निंदा करता है। इसके साथ ही हम, उन सभी लोगों की संकल्पशक्ति की सराहना करते हैं, जिन्होंने इमरजेंसी का पुरजोर विरोध किया, अभूतपूर्व संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व निभाया।”
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा, “1975 से 1977 का वो काला कालखंड अपने आप में एक ऐसा कालखंड है, जो हमें संविधान के सिद्धांतों, संघीय ढांचे और न्यायिक स्वतंत्रता के महत्व की याद दिलाता है। ये कालखंड हमें याद दिलाता है कि कैसे उस समय इन सभी पर हमला किया गया और क्यों इनकी रक्षा आवश्यक है।”
उन्होनें कहा, “जब हम आपातकाल (इमरजेंसी) के 50वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, ये 18वीं लोकसभा, बाबा साहब आंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान को बनाए रखने, इसकी रक्षा करने और इसे संरक्षित रखने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराती है।”
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा, “1975 में आज के ही दिन तब की कैबिनेट ने इमरजेंसी का पोस्ट-फैक्टो रेटिफिकेशन किया था, इस तानाशाही और असंवैधानिक निर्णय पर मुहर लगाई थी। इसलिए अपनी संसदीय प्रणाली और अनगिनत बलिदानों के बाद मिली इस दूसरी आजादी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराने के लिए, आज ये प्रस्ताव पास किया जाना आवश्यक है। हम ये भी मानते हैं कि हमारी युवा पीढ़ी को लोकतंत्र के इस काले अध्याय के बारे में जरूर जानना चाहिए।”
उन्होनें कहा, “इमरजेंसी ने भारत के कितने ही नागरिकों का जीवन तबाह कर दिया था, कितने ही लोगों की मृत्यु हो गई थी। इमरजेंसी के उस काले कालखंड में, कांग्रेस की तानाशाह सरकार के हाथों अपनी जान गंवाने वाले भारत के ऐसे कर्तव्यनिष्ठ और देश से प्रेम करने वाले नागरिकों की स्मृति में हम दो मिनट का मौन रखते हैं।”
बिड़ला द्वारा लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए निचले सदन के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभालने के तुरंत बाद हुए आपातकाल का जिक्र करने के कारण इस साल संसद में पहली बार स्थगन हुआ।
कांग्रेस और अन्य इंडिया ब्लॉक सदस्य सांसदों ने आपातकाल के संदर्भ के खिलाफ नारे लगाए।
जून 1975 से मार्च 1977 तक लगभग दो वर्षों तक चलने वाला आपातकाल भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाया गया था और संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद द्वारा सहमति व्यक्त की गई थी। आपातकाल की स्थिति इस तर्क पर घोषित की गई थी कि देश के लिए आसन्न आंतरिक और बाहरी खतरे थे।
इस अवधि को “भारत के इतिहास का काला अध्याय” बताते हुए, ओम बिड़ला ने कहा कि इंदिरा गांधी ने – आपातकाल लगाकर – “बाबासाहेब अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान पर हमला किया था”।
उन्होनें कहा, “कांग्रेस सरकार द्वारा किए गए इन संशोधनों का लक्ष्य था कि सारी शक्तियां एक व्यक्ति के पास आ जाएं, न्यायपालिका पर नियंत्रण हो और संविधान के मूल सिद्धांत खत्म किए जा सकें। ऐसा करके नागरिकों के अधिकारों का दमन किया गया और लोकतंत्र के सिद्धांतों पर आघात किया गया।”
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने कहा, “इतना ही नहीं, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कमिटेड ब्यूरोक्रेसी और कमिटेड ज्यूडिशियरी की भी बात कही, जो कि उनकी लोकतंत्र विरोधी रवैये का एक उदाहरण है। इमरजेंसी अपने साथ ऐसी असामाजिक और तानाशाही की भावना से भरी भयंकर कुनीतियां लेकर आई, जिसने गरीबों, दलितों और वंचितों का जीवन तबाह कर दिया।”
उन्होनें कहा, “इमरजेंसी के दौरान लोगों को कांग्रेस सरकार द्वारा जबरन थोपी गई अनिवार्य नसबंदी का, शहरों में अतिक्रमण हटाने के नाम पर की गई मनमानी का और सरकार की कुनीतियों का प्रहार झेलना पड़ा। ये सदन उन सभी लोगों के प्रति संवेदना जताना चाहता है।”
इसके तुरंत बाद स्पीकर ने कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित कर दी और एनडीए नेताओं ने संसद के बाहर ‘तानाशाही मानसिकता, कांग्रेस की वास्तविकता’, ‘कुछ चीजें कभी नहीं बदलती’ जैसे संदेशों वाली तख्तियां लेकर विरोध प्रदर्शन किया। केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू और प्रह्लाद जोशी विरोध प्रदर्शन में अग्रिम पंक्ति में नजर आए।
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एनडीए नेताओं ने संसद की सीढ़ियों पर खड़े होकर नारे भी लगाए।
भाजपा सांसद कंगना रनौत ने कहा, “जो सबसे ज्यादा संविधान की दुहाइयां देते हैं उनको इस बात की भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। वो अपनी दादी और पिताजी ने नाम पर वोट बटोरते हैं तो क्या वे उनके किए कारनामों की भी जिम्मेदारी लेते हैं? आज जो संविधान की सबसे ज्यादा दुहाइयां देते हैं वे खुद का भी ट्रैक रिकॉर्ड देखें। ”
वहीं NDA के विरोध प्रदर्शन पर कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने कहा, “1975 से अब तक गंगा में बहुत पानी बह चुका है। इंदिरा गांधी ने इस (आपातकाल) पर खेद जताया था। 1977 के चुनाव में वे हार गई थीं। भाजपा को अब पीछे की तरफ देखकर कार चलाना बंद कर देना चाहिए। यह काफी आश्चर्यजनक है कि सत्ता पक्ष क्यों विरोध कर रहा है। अगर वे विरोध करना चाहते हैं, तो वे विपक्ष में आ सकते हैं और हमें मौका दे सकते हैं। हम खुशी-खुशी इसे स्वीकार करेंगे। यह नया कार्यकाल शुरू करने का तरीका नहीं है। आपातकाल का मुद्दा खत्म हो चुका है। हमें आज संस्थाओं के गला घोंटने के बारे में बात करनी चाहिए। हमें हमेशा 45-48 साल पहले हुई किसी घटना पर ध्यान देने के बजाय इन चीजों पर बात करनी चाहिए।”
निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने कहा, “मुझे समझ नहीं आता है कि BJP के पास विकास के लिए क्यों कुछ नहीं है? BJP के पास NEET के लिए क्यों कुछ नहीं है? भाजपा के पास पेपर लीक, महिलाओं, महंगाई पर कुछ क्यों नहीं है? BJP 30-40 साल पुरानी बातों को और एक ऐसी PM जिन्होंने देश को स्वाभिमान, सम्मान और अभिमान के साथ विश्व में सर्वश्रेष्ठ किया और आज के दिन जब स्पीकर का चयन हुआ और एक बेहतर संदेश दिया गया वहां रंग में भंग और पहले दिन ही आपने कह दिया कि तकरार के रास्ते ही आगे काम होगा तो आप क्या उम्मीद करेंगे। आपने पहले दिन ही सदन का राजनीतिकरण कर दिया। स्पीकर को आपने पार्टी के एजेंडे पर बाध्य कर दिया।”
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि 26 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकालीन कैबिनेट बैठक बुलाई और बाद में इसकी पुष्टि की, प्रधानमंत्री ने अकेले ही निर्णय लिया। इसलिए आज हमने सदन में प्रस्ताव पारित किया है कि संविधान को इस तरह से रौंदने, ध्वस्त करने की अनुमति फिर नहीं दी जाएगी। इसलिए, हमने एक संकल्प लिया है।”