कांग्रेस ने नीति आयोग द्वारा गरीबी को लेकर जारी किए गए आंकड़ों पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि नीति आयोग द्वारा गरीबी को लेकर बार-बार झूठ परोसा जा रहा है। झूठे आंकड़ों से यह सिद्ध करने का प्रयास किया जा रहा है कि मोदी सरकार ने गरीबी मिटा दी है। मोदी सरकार आंकड़ों के साथ जालसाजी कर गरीबों के साथ क्रूर और भद्दा मज़ाक कर रही है। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि यह सरकार का गरीबों के खिलाफ भी षड्यंत्र है, क्योंकि इन्हीं भ्रामक तथ्यों के आधार पर लाभार्थियों के नाम हटाए जाएंगे।
नई दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में पत्रकार वार्ता करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता और सोशल मीडिया विभाग की चेयरपर्सन सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि आर्थिक तंगी एवं बेरोजगारी से तंग आकर लोग लगातार आत्महत्या कर रहे हैं। 2022 में सात हजार से ज्यादा लोगों ने आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या कर ली। हर घंटे दो किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं। हर दिन 40 युवा हताश होकर अपनी जान देने को मजबूर हैं। वहीं मोदी सरकार बताती है कि देश में सब चकाचक है।
श्रीनेत ने कहा कि नीति आयोग द्वारा यह सिद्ध करने की कोशिश की जा रही है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने गरीबी मिटा दी है। एक और चौंकाने वाले दावे में सरकार का कहना है कि इस देश का केवल पांच प्रतिशत हिस्सा अब गरीब रह गया है, जो नीति आयोग द्वारा पिछले आठ महीनों में अलग-अलग समय में जारी दो अन्य आँकड़ों से मेल नहीं खाता। उन्होंने पूछा कि नीति आयोग ने गरीबी से जुड़े अलग-अलग आंकड़े दिए हैं, इनमें कौन सी रिपोर्ट सही है।
श्रीनेत ने कहा कि 11 साल के अंतराल के बाद जारी किया गया उपभोग व्यय भी भारत में लगातार बढ़ती आर्थिक असमानता को उजागर करता है। यह सर्वेक्षण पांच वर्षों में एक बार आयोजित किया जाता है, लेकिन सरकार ने 2017-18 में डाटा ही नहीं जारी किया, क्योंकि नोटबंदी और त्रुटिपूर्ण जीएसटी के कारण सर्वेक्षण में उपभोग में 40 सालों में सबसे निचले स्तर पर सरक गया। अब डाटा में लीपापोती का काम किया जा रहा है। अगर इस रिपोर्ट की ही मान लें तो सच बड़ा भयावह है। देश में केवल पांच प्रतिशत गरीबों की भ्रामक और हास्यास्पद सुर्ख़ी के नीचे एक भयावह सच यह है कि हिंदुस्तान के सबसे गरीब पांच प्रतिशत लोग अपने पूरे दिन की गुजर बसर सिर्फ़ और सिर्फ़ 46 रुपये रोज़ पर कर रहे हैं। इसी में रोटी, कपड़ा, दवाई, पढ़ाई सब शामिल है। उन्होंने कहा कि यह सर्वे देश के अमीरों और गरीबों के बीच बढ़ती खाई को भी साबित कर रहा है।
श्रीनेत ने कहा कि सर्वेक्षण में एक और भ्रमित करने वाली बात यह कही गई है कि एक दशक में घरेलू खर्चों में ढाई गुना वृद्धि हुई है। लेकिन दोनों सर्वेक्षणों की तुलना नहीं की जा सकती है क्योंकि 2022-23 में कार्यप्रणाली बदल दी गई और गैर-खाद्य श्रेणी में वस्तुओं की संख्या बढ़ा दी गई। जहां 2011-12 के सर्वेक्षण में 347 वस्तुओं के बारे में प्रश्न पूछे गए थे, वहीं नवीनतम सर्वेक्षण में 405 वस्तुओं के बारे में प्रश्न पूछे गए।
श्रीनेत ने कहा कि आर्थिक तंगी की पुष्टि देश में निरंतर गिरती बचत भी करती है। भारत की घरेलू बचत 50 वर्षों में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। केवल दो साल पहले (2020-21) यह जीडीपी की 11.5 प्रतिशत थी, जो अब (2022-23) में 5.1 प्रतिशत है। घरेलू बचत का आधे से भी कम हो जाना साबित करता है कि लोग महंगाई, गरीबी और आर्थिक असमानता से जूझ रहे हैं।
श्रीनेत ने कहा कि जरूरी बात यह है कि रिपोर्ट में किए गए दावे खोखले हैं। रिपोर्ट के अनुसार 2011-12 के बाद से शहरी परिवारों में औसत एमपीसीई 33.5 प्रतिशत बढ़कर 3,510 रुपये हो गई है और ग्रामीण परिवारों में 40 प्रतिशत बढ़कर 2008 रुपये हो गई है। मगर यह उछाल वास्तविक आय में बढ़त से नहीं, बल्कि कमरतोड़ महंगाई के कारण हुआ है। इसी रिपोर्ट में धीरे धीरे लुप्त हो रहे मध्यम वर्ग, निम्न-आय वर्ग के साक्ष्य भी साफ तौर पर अंकित हैं। रिपोर्ट में यह स्पष्ट है कि 2012-13 और 2022-23 के बीच, महंगाई और शिथिल आय ने अधिकांश भारतीयों का जीवन दूभर कर दिया है।
श्रीनेत ने कहा कि मोदी सरकार के अनुसार अगर देश में सिर्फ सात करोड़ लोग ही गरीब हैं तो देश के 81 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन क्यों देना पड़ रहा है। देश के 35 करोड़ लोगों के पास आवाजाही का कोई साधन और 45 करोड़ लोगों के पास टीवी क्यों नहीं हैं। रोजमर्रा की चीजों में भी गिरावट आई है, जो साबित करता है कि लोग खर्च नहीं कर पा रहे हैं।
मोदी सरकार से सवाल पूछते हुए श्रीनेत ने कहा कि इस तरह के भ्रामक सर्वे लाकर देश की आर्थिक विश्वसनीयता को ध्वस्त क्यों किया जा रहा है। सरकार अगर पांच प्रतिशत गरीबी की बात करती है तो उन गरीबों के लिए क्या कर ही है। अगर सब कुछ ठीक है तो लोगों की आमदनी क्यों नहीं बढ़ रही है।