सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बाजार नियामक सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) को अडानी-हिंडनबर्ग मामले में अपनी जांच पूरी करने और दो महीने के भीतर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। यह देखते हुए कि सेबी पहले से ही हिंडनबर्ग रिपोर्ट और उसमें अडानी समूह के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच कर रहा है, सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि मामले के अन्य विभिन्न पहलुओं की नियामक संस्था द्वारा जांच की जानी चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की एक पीठ ने चार याचिकाओं के एक बैच पर अपना आदेश सुनाया, जिसमें अदालत के हस्तक्षेप और मुद्दे के विभिन्न पहलुओं की जांच की मांग की गई थी।
खंडपीठ ने कहा, “सेबी को जांच करनी चाहिए कि क्या स्टॉक प्राइसिंग का उल्लंघन और हेरफेर किया गया है?”
शीर्ष अदालत ने शेयर बाजार के नियामक तंत्र के मौजूदा ढांचे की समीक्षा के लिए एक विशेषज्ञ समिति का भी गठन किया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हिंडनबर्ग रिपोर्ट मामले में बनाई गई कमेटी की अध्यक्षता रिटायर जस्टिस एएम सप्रे करेंगे। जांच के लिए गठित 6 सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी में रिटायर जस्टिस एएम सप्रे के अलावा ओपी भट्ट, जस्टिस केपी देवदत्त, केवी कामत, एन नीलकेणी, सोमेशेखर सुंदरेशन शामिल हैं।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में कई याचिकाएं दाखिल की गई थी। याचिकाकर्ताओं ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में अडानी ग्रुप पर लगाए गए आरोपों की जांच की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अब जांच के लिए 6 सदस्यों की एक कमेटी का गठन कर दिया है।
शीर्ष अदालत ने 10 फरवरी को कहा था कि अडानी समूह के स्टॉक रूट की पृष्ठभूमि में भारतीय निवेशकों के हितों को बाजार की अस्थिरता के खिलाफ संरक्षित करने की आवश्यकता है और केंद्र से नियामक तंत्र को मजबूत करने को लेकर एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में विशेषज्ञों के एक पैनल के गठन पर विचार करने के लिए कहा था।
इससे पहले 17 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखते हुए प्रस्तावित विशेषज्ञ पैनल पर केंद्र के सुझाव को सीलबंद लिफाफे में स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। CJI डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा तथा न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा था कि वह निवेशकों के संरक्षण के लिए पूरी पारदर्शिता चाहती है। दरअसल, सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता की ओर से केंद्र सरकार के सुझावों वाला सीलबंद लिफाफा बेंच को सौंपा गया था।
बता दें कि 24 जनवरी को जारी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में गौतम अडानी के नेतृत्व वाले समूह द्वारा “धोखाधड़ी” और “स्टॉक हेरफेर” का दावा किया गया था। हालांकि समूह ने रिपोर्ट को खारिज कर दिया, लेकिन इसकी वजह से अडानी समूह के शेयरों की भारी गिरावट शुरू हो गई जिससे समूह के प्रमुख फर्म को $120 बिलियन से अधिक का नुकसान हुआ, और ₹20,000 करोड़ के शेयर बिक्री को रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा।