आपने शायद ही कभी सुना हो कि किसी जज साहब ने अदालत में माफी मांगी है। देश की न्यायपालिका के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी जज ने देरी से फैसला सुनाने पर माफी मांगी है।
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस बीआर गवई ने मंगलवार को एक केस की सुनवाई के दौरान नई मिसाल पेश की। उन्होंने फैसला सुनाने में देरी को लेकर माफी मांगी और उसके पीछे की वजह भी पक्षकारों को बताई। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच चंडीगढ़ में सिंगल आवासीय घर को अपार्टमेंट में बदलने के चलन के खिलाफ याचिका पर फैसला सुना रहे थे।
Supreme Court Judge Justice BR Gavai Apologises For 2 Months Delay In Pronouncing Judgement#SupremeCourtofIndiahttps://t.co/Y6lqqBwNAp
— Live Law (@LiveLawIndia) January 10, 2023
केस की सुनवाई के दौरान जस्टिस गवई ने माफी मांगते हुए पक्ष्कारों को बताया कि हमें चंडीगढ़ में आवास निर्माण समेत विभिन्न कानूनों के सभी प्रावधानों और उसके नियमों पर विचार करना था। इसी कारण 3 नवंबर 2022 को फैसला सुरक्षित रखने के बाद उसको सुनाने में दो महीने से अधिक का समय लग गया। जस्टिस गवई ने कहा कि स्थायी विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच उचित संतुलन बनाने की जरूरत है। उन्होंने फैसला सुनाते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि केंद्र और राज्य स्तर पर विधायिका, कार्यपालिका और नीति निर्माता अव्यवस्थित विकास के कारण पर्यावरण को होने वाले नुकसान पर ध्यान दें। साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं कि विकास से पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचे।
जस्टिस गवई और बीवी नागरत्ना की पीठ ने अपने 131 पन्नों के फैसले में कहा है कि इस तरह की बेतरतीब वृद्धि चंडीगढ़ के फेज-1 की विरासत की स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है, जिसे यूनेस्को के विरासत शहर के रूप में अंकित करने की मांग की गयी है। पीठ ने ने अंधाधुंध तरीके से भवन निर्माण योजना बनाने के लिए चंडीगढ़ प्रशासन से नाखुशी जताई और कहा कि इससे यह स्पष्ट है कि वे दरअसल एक आवासीय इकाई को तीन अपार्टमेंट में परिवर्तित कर रहे हैं। पीठ ने चंडीगढ़ प्रशासन को शहर में विरासत भवनों को संरक्षित करने के लिए हेरिटेज कमेटी की सिफारिश के अनुसार चंडीगढ़ मास्टर प्लान 2031 और 2017 के नियमों में संशोधन करने का भी निर्देश दिया। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने चंडीगढ़ प्रशासन को किसी भी भवन योजना को मंजूरी देने से रोक दिया है, जिसका असर एक आवासीय इकाई को तीन अजनबियों के कब्जे वाले तीन अलग-अलग अपार्टमेंट में बदलने का प्रभाव होगा। कोर्ट ने यह भी कहा है कि किसी रेजिडेंशियल यूनिट को फ्लोर वाइज अपार्टमेंट्स में बांटने के लिए कोई एमओयू या एग्रीमेंट रजिस्टर नहीं किया जा सकता है।
कौन है जस्टिस गवई?
जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई मई 2019 से सुप्रीम कोर्ट में जज हैं। तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्व में कॉलेजियम ने उनके नाम की सिफारिश की थी। गवई ने 1985 में एक वकील के रूप में रजिस्ट्रेशन कराया और मुख्य रूप से बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में वकालत की प्रैक्टिस की। उसके बाद उन्होंने एक सरकारी वकील और फिर महाराष्ट्र सरकार के लिए सरकारी अभियोजक के रूप में कार्य किया। जस्टिस गवई नवंबर 2003 में हाईकोर्ट के जज बने थे। वे 2019 तक 16 साल हाईकोर्ट में जज रहे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में जज बने। मई 2019 में सुप्रीम कोर्ट में अपनी पदोन्नति के बाद से न्यायमूर्ति गवई ने 68 फैसले (मई 2022 तक) दिए हैं।