सावित्री बाई फुले को देश की पहली महिला शिक्षिका माना जाता है। आज सावित्रीबाई फुले की 192वीं जयंती है। उन्होंने महिला अधिकारों के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापिका थीं।
सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित नायगांव नामक छोटे से गांव में हुआ था। उनका जन्म एक दलित परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम खंदोजी नैवेसे और मां का नाम लक्ष्मीबाई था। दलित परिवार में जन्म लेने की वजह से सावित्रीबाई फुले को बचपन से ही भेदभाव का सामना करना पड़ा। इस भेदभाव ने ही उनके दिल में लड़कियों की शिक्षा के लिए कुछ करने की प्रेरणा जगाई।
सावित्रीबाई का विवाह ज्योतिराव फुले से 1840 में नौ साल की उम्र में ही हो गया। शादी के बाद वह अपने पति के साथ पुणे जाकर रहने लगीं। सावित्रीबाई फुले को पढ़ने का काफी शौक था। उनकी पढ़ाई को लेकर लगन देखकर उनके पति ज्योतिराव फुले प्रभावित हुए और उन्होंने सावित्रीबाई को आगे पढ़ाने का मन बनाया। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने शिक्षक बनने की ठानी। उन्होंने अहमदनगर और पुणे में टीचर की ट्रेनिंग ली और फिर 1847 में परीक्षा पास करके एक योग्य शिक्षका बनीं।
महिलाओं को शिक्षित बनाने के लिए सावित्रीबाई फुले और उनके पति ज्योतिराव फुले ने 3 जनवरी 1848 को पहले बालिका स्कूल की स्थापना की। सावित्रीबाई उस वक़्त सिर्फ 18 साल की थीं। यह स्कूल पुणे में खोला गया जहां पर सभी जातियों की छात्राएं एक साथ पढ़ सकती थीं। इस स्कूल में शुरू के दिनों में सिर्फ 9 छात्राओं ने प्रवेश लिया। यह वो समय था जब लड़कियों की पढ़ाई को लेकर समाज में जागरूकता नहीं थी। उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए लोगों को जागरूक किया। एक ही साल के अंदर उन्होंने 5 और नए स्कूल खोले। बाद में शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को लेकर भारत सरकार ने उन्हें सम्मानित किया। आज भी महात्मा ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले द्वारा शुरू किया गया स्कूल पुणे शहर के भिड़ेवाड़ा में स्थित है, लेकिन बरसों से ये स्कूल बंद है।
सावित्रीबाई फुले ने विधवा महिलाओं के लिए विधवाश्रम भी खोला था। जिस दौर में सावित्रीबाई जन्मी थीं तब समाज में छुआछूत चरम पर था। महिलाओं को लेकर कई कुप्रथाएं थी। महिलाओं के पति मरने के बाद उन्हें चिता में पति के साथ जिंदा जला दिया जाता था। बाल विवाह कर दिए जाते थे। ऐसी विधवा महिलाओं के लिए सावित्रीबाई ने 1854 में एक विधवाश्रम खोला। बाद में साल 1864 में उन्होंने इस विधवाश्रम का विस्तार किया। सावित्रीबाई आश्रम में रहने वाली हर महिला और लड़कियों को पढ़ाती भी थीं।
प्लेग की चपेट में आकर हुआ निधन-
साल 1897 में महाराष्ट्र में प्लेग बुड़ी तरीके से फैला हुआ था। लोग एक दूसरे के संपर्क में आने से डरते थे। बहुत ज्यादा मौते हो रही थीं। उस समय सावित्रीबाई फूले लोगों की सेवा के लिए सुबह से लेकर शाम तक गांव-गांव जाती थीं। अंततः वह भी प्लेग की चपेट में आ गईं और पति के निधन के 7 साल बाद 10 मार्च 1897को उन्होंने अंतिम सांस ली।