सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी है। इस याचिका में बिलकिस ने उसके साथ हुए सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के 11 दोषियों की जल्द रिहाई को चुनौती दी थी। याचिका में बिलकिस बानो ने 13 मई को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें गुजरात सरकार को 1992 के जेल नियमों के तहत 11 दोषियों की रिहाई के लिए अनुमति दी थी।
BIG BREAKING: Review plea filed by Bilkis Bano against the remission order granted in favour of the 11 convicts in the 2002 gang rape case has been DISMISSED BY SUPREME COURT #SupremeCourt #BilkisBano pic.twitter.com/63cQO62CdD
— Bar & Bench (@barandbench) December 17, 2022
मई 2022 में जस्टिस अजय रस्तोगी ने इस केस के एक दोषी की याचिका पर आदेश दिया था कि गुजरात सरकार 1992 की रिहाई की नीति के तहत बिलकिस मामले में दोषियों की रिहाई पर विचार कर सकती है। हालांकि बिलकिस ने अपनी याचिका में कहा है कि इस मामले का पूरा ट्रायल महाराष्ट्र में चला है और वहां की रिहाई नीति के तहत ऐसे घृणित अपराधों में 28 सालों से पहले रिहाई नही हो सकती है। इसलिए दोषियों की रिहाई का अधिकार गुजरात सरकार के बजाय महाराष्ट्र सरकार के पास होना चाहिए क्योंकि वहाँ केस चला था।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस की इस याचिका पर जल्द सुनवाई से मना कर दिया था। बिलकिस बानो की ओर से प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ से अनुरोध किया था कि इस मामले पर सुनवाई के लिए एक अन्य पीठ का गठन किए जाने की आवश्यकता है, जिस पर सीजेआई चंद्रचूजड़ ने कहा था, “रिट याचिका को सूचीबद्ध किया जाएगा. कृपया एक ही चीज का जिक्र बार-बार मत कीजिए।”
बिलकिस बानो केस क्या है?
2002 में गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद हुए दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप हुआ था और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। घटना के वक्त बानो की उम्र 21 साल थी और वह पांच महीने की गर्भवती थीं। इतना ही नहीं गुजरात के दाहोद स्थित लिमखेड़ा तालुका में भीड़ द्वारा की गई 12 लोगों की हत्या में उनकी एक तीन साल की बेटी भी शामिल थी। 21 जनवरी 2008 को सीबीआई की विशेष अदालत ने 11 लोगों को दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई थी।
गुजरात सरकार ने इसी साल 15 अगस्त को दोषियों को किया था रिहा-
गुजरात सरकार ने 1992 के नियमों के तहत सभी उम्रकैद की सजा को 14 सालों में बदल दिया था। इससे पहले दोषियों ने सजा के खिलाफ पहले बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था लेकिन हाईकोर्ट ने दोषियों की याचिका खारिज कर दी थी। फिर वे सभी सुप्रीम कोर्ट गए थे, जहां उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी। हत्या और गैंगरेप केस में दोषी जेल में अपनी सजा काट रहे थे, लेकिन गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें छूट नीति के तहत रिहा कर दिया गया। रिहा किए गए 11 दोषियों में जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोरधिया, बकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चंदना शामिल हैं।
इसी के बाद 13 मई के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी। बिलकिस बानो की तरफ से दाखिल पुनर्विचार याचिका में कहा गया था कि जब मुकदमा महाराष्ट्र में चला, तो नियम भी वहां के लागू होने चाहिए, गुजरात के नहीं।
रीमिशन पॉलिसी (छूट नीति) के बारे में जानिए-
रीमिशन पॉलिसी का मतलब होता है कि, “किसी दोषी की सजा की अवधि को कम कर दिया जाए”। इसमें ये ध्यान रखना होता है कि सजा का नेचर नहीं बदलना है, सिर्फ समय कम की जा सकती है। अगर कोई दोषी रीमिशन पॉलिसी के नियमों का सही तरीके से पालन नहीं करता है, तो ये जो छूट उसे दी जा सकती है, वो उससे वंचित रह जाता है और फिर उसे पूरी सजा काटनी पड़ती है।