गुरुवार को भ्रष्टाचार के एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एक लोक सेवक को दोषी ठहराने के लिए रिश्वत की मांग का प्रत्यक्ष सबूत आवश्यक नहीं है और परिस्थितिजन्य सबूत के आधार पर दोषी ठहराया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसा तब किया जा सकता है जब अधिकारी के ख़िलाफ़ कोई प्रत्यक्ष मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य नहीं हो।
Supreme Court’s Constitution bench holds that direct evidence of demand of bribe by a public servant is not necessary to convict him under the Prevention of Corruption Act & it can also be proved through circumstantial evidence when there is no direct evidence against him or her. pic.twitter.com/PqdTNB66gf
— ANI (@ANI) December 15, 2022
सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम यानी प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट को और सख्त बनाए जाने के प्रावधान तय करते हुए इसकी व्याख्या की। कोर्ट ने कहा कि मृत्यु या अन्य कारणों से शिकायतकर्ता का प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध न होने पर भी लोक सेवक को दोषी ठहराया जा सकता है। इस मामले में जस्टिस अब्दुल नज़ीर, बी.आर. गवई, ए.एस. बोपन्ना, वी. रामासुब्रमण्यन और बी.वी. नागरत्ना की 5-न्यायाधीशों की खंडपीठ ने 23 नवंबर को फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि रिश्वत मांगने या देने के मामलों में प्रत्यक्ष सबूतों के अभाव में परिस्थितिजन्य अनुमानों के आधार पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत सजा दी जा सकती है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा – “आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए, अभियोजन पक्ष को पहले रिश्वत की मांग और बाद में स्वीकृति को तथ्य के रूप में साबित करना होगा। इस तथ्य को या तो प्रत्यक्ष साक्ष्य द्वारा, मौखिक साक्ष्य /दस्तावेजी साक्ष्य से साबित किया जा सकता है। इसके अलावा, विवादित तथ्य, अर्थात रिश्वत की मांग और स्वीकृति का प्रमाण, प्रत्यक्ष, मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य के अभाव में परिस्थितिजन्य साक्ष्य द्वारा भी साबित किया जा सकता है।”
संविधान पीठ ने कहा कि भ्रष्टाचार के उन मामलों में, जिनमें लोक सेवक आरोपी हो, तो शिकायतकर्ताओं और अभियोजन पक्ष को ईमानदारी से प्रयास करना चाहिए कि भ्रष्ट लोक सेवक दंडित हों। जिससे कि प्रशासन से भ्रष्टाचार को खत्म किया जा सके।
पीठ ने कहा कि शासन को प्रभावित करने में भ्रष्टाचार की बड़ी भूमिका होती है अजर इस वजह से ईमानदार कर्मचारी का मनोबल भी कम होता है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने एबी भास्कर राव बनाम सीबीआई के फैसले का उदाहरण भी दिया। मामले में फैसला देते हुए पीठ ने कहा कि प्रतिवादी की मांग को स्वीकार नहीं किया जा सकता कि मामले में उदारता दिखाई जाए। लोक सेवकों द्वारा भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या बन गया है। भ्रष्टाचार बड़े पैमाने पर राष्ट्र के विकास की गतिविधियों को धीमा कर देता है। इसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ता है।
बता दें कि फरवरी 2019 में तीन जजों की बेंच ने इस मामले को संविधान पीठ को देने के लिए चीफ जस्टिस को भेजा था। तीन जजों की बेंच ने कहा था कि इस मामले में 2015 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में असंगति है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया था कि यदि लोकसेवक के खिलाफ प्राथमिक सबूत की कमी है तो उसे बरी होना चाहिए।