कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच सीमा विवाद को लेकर बुधवार को दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह ने मीटिंग की। इस मीटिंग में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और कर्नाटक के गृह मंत्री अरागा ज्ञानेंद्र ने भाग लिया।
मीटिंग के बाद अमित शाह ने कहा कि, “विवाद को ख़त्म करने के लिए हमने दोनो पक्षों से अच्छे वातावरण में बात की है। उन्होंने कहा कि दोनों मुख्यमंत्रियों ने सकारात्मक अप्रोच रखा है। कुछ मिलाकर सहमति हुई है कि विवाद का समाधान रोड पर नहीं हो सकता है, संविधान के अनुसार हो सकता है। दोनों ओर से 3-3 मंत्री बैठेंगे। कुल 6 मंत्री बैठकर छोटे-छोटे मुद्दों पर बातचीत करेंगे”। उन्होंने कहा कि दोनो राज्यों में विपक्षी दलों से भी अपेक्षा की जाती है कि वो आज के फैसले पर अमल करेंगे और इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाएंगे। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने तक कोई भी राज्य एक-दूसरे पर क्लेम नहीं कर पाएगा। कमेटी और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इंतजार करें।
#WATCH | Union Home Minister Amit Shah speaks on the Maharashtra-Karnataka border issue after his meeting with the CMs of the two States pic.twitter.com/3Sv80LgEbk
— ANI (@ANI) December 14, 2022
अमित शाह ने कहा कि दोनों राज्यों से कानून व्यवस्था ठीक रहे और किसी को परेशानी न हो इसके लिए एक सीनियर आईपीएस अधिकारी की अगुआई में कमेटी गठित की जाएगी। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर लोगों भड़काने की कोशिश हुई है। कई ट्वीट्स किए गए हैं, उनकी पहचान की जाएगी। बैठक में ये तय हुआ है कि फेक ट्वीट्स के मामलों पर एफआईआर होगी।
मीटिंग के बाद महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा कि, “पहली बार केंद्र सरकार ने इसमें हस्तक्षेप किया है। सरकार ने इसकी गंभीरता को समझ लिया है। ये एक बड़ी पहल है और इससे दोनों राज्यों की जनता को तकलीफ नहीं होगी, शांति और अमन बना रहेगा। जब तक मामला सुप्रीम कोर्ट में है तब तक कोई भी राज्य कोई कदम नहीं उठाएगा”।
Delhi | Today's meeting is a big initiative, due to which peace will be maintained in both States. None of the two states will take any step till the case is in SC.We have said that Marathi people in Karnataka should be protected, Karnataka CM has assured us of it: Maharashtra CM pic.twitter.com/KQpF6c8wgx
— ANI (@ANI) December 14, 2022
तो वहीं कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि, “कर्नाटक और महाराष्ट्र के लोगों के बीच बहुत ही सौहार्दपूर्ण संबंध है, दोनों पक्षों की शांति को भंग करने के लिए कुछ भी नहीं किया जाना चाहिए। दोनों राज्यों से मंत्रियों की एक कमेटी बनाई गई है जो छोटे-छोटे मुद्दों को सुलझाने का काम करेगी”।
There is a cordial relationship between the people of Karnataka and Maharashtra, nothing should be done to disturb the peace on both sides. A committee of ministers from both States has been formed to sort out related issues: Karnataka CM Basavaraj Bommai pic.twitter.com/UK4qPqdg0F
— ANI (@ANI) December 14, 2022
इससे पहले 12 दिसंबर को कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की गुजरात में भी मुलाकात हुई थी। दोनों मुख्यमंत्री गुजरात के गांधीनगर में मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे थे।
दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद का मुद्दा क्या है?
मालूम हो कि महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच विवाद खत्म का मामला 18 साल से सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। ये सीमा विवाद पांच दशकों से भी ज्यादा पुराना है. साल 1956 में भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन हुआ। इस दौरान महाराष्ट्र के नेताओं ने मराठी भाषी बेलगाम, खानापुर, निप्पानी, नांदगाड और कारवार को महाराष्ट्र में वापस शामिल करने मांग की। दोनों राज्यों के बीच इन्हीं इलाकों को लेकर विवाद चला आ रहा है। विवाद बढ़ने पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मेहर चंद महाजन के नेतृत्व में आयोग का गठन किया था। विवाद की शुरुआत होने का एक और कारण ये था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री एस. निजालिंग्पा, प्रधानमंत्री इंदिरा गांदी और महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी नाइक के साथ बैठक करने के लिए मान गए थे। आयोग ने जब अपनी रिपोर्ट दी तो उसमें बेलगावी को महाराष्ट्र में मिलाने से साफ इंकार कर दिया गया। दोनों राज्यों के बीच विवाद इतना बढ़ा कि दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री के बीच हुई बैठक में भी इसका हल नहीं निकला। दोनों ही राज्य अपनी जगह न छोड़ने पर अड़े रहे। महाराष्ट्र बेलगावी पर दावा करता है, जो तत्कालीन बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था, क्योंकि यहां मराठी भाषी आबादी का एक बड़ा हिस्सा रहता है। महाराष्ट्र 814 मराठी भाषी गांवों पर भी दावा करता है, जो वर्तमान में कर्नाटक का हिस्सा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महाराष्ट्र के लोग अपनी मराठी भाषा को लेकर काफी संवेदनशील होते हैं इसलिए यह मुद्दा कभी खत्म नहीं हुआ। राजनीतिक दल भी लगातार इस मुद्दे को उठाते रहते हैं। इसके जरिए वो अपनी पहचान के साथ अपनी उम्मीदें भी जाहिर करते रहते हैं। वह कहते हैं, अगर यह मुद्दा दब गया तो इसे दोबारा उठाना मुश्किल हो जाएगा। इससे मराठी अस्मिता से जोड़ा गया है। अलग हुए मराठी भाषी इलाकों को वापस महाराष्ट्र में मिलाने के लिए पिछले कई दशकों से कोशिशें जारी हैं। इसके लिए महाराष्ट्र एकीकरण समिति का गठन किया गया। इस समिति के प्रतिनिधि लगातार कर्नाटक विधानसभा क्षेत्र में जाते रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में इनकी संख्या में कमी आई है।