सारनाथ लाट (जहां से इंडिया का राष्ट्रीय प्रतिक चिन्ह लिया गया है) आदि यहीं स्थित है। ऐसे में सारनाथ के ऐतिहासिक स्मारक काफी समय से यूनेस्को की टेंटेटिव लिस्ट में हैं।
अब इसका 600 पन्नों का डोजियर भी तैयार किया जा चुका है। इसमें स्मारकों के समयकाल, विस्तार, मानचित्र, लैंडमार्क, मानव कल्याण, शांति, संस्कृति और सभ्यताओं समेत कई अहम जानकारियों का पूरा ब्योरा लिखा गया है।
https://whc.unesco.org/en/tentativelists/1096/
डोजियर में स्मारकों के आसपास करीब 300 मीटर तक बफर जोन तैयार कर किसी भी प्रकार का निर्माण नहीं होने जिक्र है। लेकिन हकीकत में स्मारकों सटकर और 300 मीटर के दायरे में सैकड़ों अतिक्रमण की गतिविधियां प्रशासन की नाक के नीचे धड़ल्ले से चल रही हैं।
कब ख़त्म होगा इंतजार-
ऐतिहासिक साक्ष्यों में महात्मा बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली सारनाथ है। जिसे प्राचीन काल में मृगदांव और ऋषिपत्तनम के नाम से जाना जाता है। आज भी सारनाथ क्षेत्र में ऋषिपत्तनम मार्ग मौजूद है। सारनाथ के पुरातात्विक खंडहर परिसर में हुई खोदाई के दौरान लगभग ढाई हजार वर्ष से भी प्राचीन बौद्ध विहार के पुरावशेष मिले हैं। पुरातात्विक विशेषज्ञों के अनुसार खंडहर परिसर में धर्मराजिका व धमेख स्तूप, प्राचीन मुलगन्ध कुटी बौद्ध बिहार अवशेष, सात महाविहार व तीन सौ मनौती स्तूपों का निर्माण प्राचीन काल में हुआ था।
प्राचीन काल में मथुरा के बाद सारनाथ सबसे बड़ा कला व बौद्ध धम्म का केंद्र था। खंडहर परिसर में मौर्य राजवंश, शुंग, कुषाण, गुप्त, परवर्ती गुप्त काल व गहड़वाल काल तक निर्माण होता रहा। पुरातत्व सर्वेक्षण की सारनाथ सर्किल ने पुरावशेषों का डोजियर दिल्ली स्थित विभागीय मुख्यालय जून 2019 में ही भेज चुका है। ये पुरावशेष पिछले 20 वर्षों से यूनेस्को के विश्व धरोहर की सूची में जगह पाने की प्रतीक्षा में हैं और संभावित सूची में शामिल हैं।
वैसे तो नगर में पहले से ही अवैध निर्माणों की भरमार थी लेकिन पिछले तीन वर्षो में अवैध निर्माणों में ज्यादा ही तेजी आ गई हैं। प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र होने के नाते यहां जैसे जैसे प्रॉपर्टी रेट बढ़े हैं, वैसे ही अवैध मल्टीस्टोरी बिल्डिंग के निर्माण में भी इजाफा हुआ है। स्थिति यह है कि दस हजार से अधिक अवैध निर्माण वीडीए के रिकार्ड में दर्ज हो चुके हैं। इनमें से दो हजार अवैध निर्माणों को गिराने का आदेश भी हो चुका है लेकिन वह कागजों पर ही है। अवैध निर्माण पर कार्रवाई के संबंध में वीडीए के उपाध्यक्ष अभिषेक गोयल कहते हैं कि “अवैध निर्माण के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई अब पूरे प्लानिंग के साथ की जाएगी। इसके लिए बहुत ही जल्द ब्लू प्रिंट तैयार किया जाएगा। हालांकि, पहले से अधिक नक्शा पास कराने पर जोर रहेगा। ताकि, अवैध निर्माण न हो।”
बोधिसत्त्वा फाउंडेशन के अध्यक्ष कीर्ति भूषण सिंह कहते हैं कि “अतिक्रमण की समस्या सारनाथ ही नहीं अपितु पूरे बनारस में है। बरियासनपुर क्षेत्र में कूटरचित दस्तावेज बनाकर जमीन पर अवैध कब्ज़ा होता है। खतौनी में यह भूखंड दो आदमियों के नाम से है। जानकारी होते हुए भी प्रशासन कारगर और निष्पक्ष तरीके से एक्शन नहीं लेता है। लिहाजा, इस संबंध में एक मामला सिविल कोर्ट में चल रहा होता है। केस का फॉलोअप करने वाले मेरे भाई की हत्या भी कर दी जाती है। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में प्रशासन के संरक्षण में अतिक्रमण और फ्रॉड चल रहा है। यह बात मेरी समझ से परे है। सीएम योगी का एक महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट रहा है यूपी भूलेख (अंश निर्धारण)। इसमें स्पेशफिक लैंडबैंक में कितने हिस्सेदार है और उनका कितना हिस्सा है का विवरण सरकारी दस्तावेजों होता है। आश्चर्य की बात यह है कि जिन स्थानों पर विवाद है, उनका अंश निर्धारण आज भी भूलेख में नहीं किया जा सका है। मसलन, जानकारी होने बाद भी प्रशासन अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय उदासीन बना हुआ है।”
मानवाधिकार जननिगरानी समिति के डॉ लेनिन रघुवंशी बचपन से ही सारनाथ क्षेत्र में निवास करते आ रहे हैं। वे “तक्षकपोस्ट” को बताते हैं कि हमारी जो ऐतिहासिक मानव कल्याण की धरोहर हैं। जिसमें सारनाथ बौद्धस्थल का नाम पूरी दुनिया गौरव के साथ लिया जाता है। इसे यूनिस्को के वर्ल्ड हेरिटेज से सूचीबद्ध करने के लिए कोशिश बहुत लम्बे समय से चल रही है। ये चाहे होते हो सारनाथ बुद्धस्थल हेरिटेज बन गया होता। यदि हम ऐसे विरासत स्थल को नहीं सहेज पा रहे हैं तो सभी के लिए चिंता की बात है। बुद्ध और गाँधी के विरासत को एक षडयंत्र के तहत हासिये पर धकेला जा रहा है। श्रमण संस्कृति वैज्ञानिक और मानव कल्याण के दृष्टिकोण से एक तबके में घबराहट और डर का माहौल है। सवाल यह है कि बुद्ध के जीवन दर्शन और सम्राट अशोक के जन कल्याणकारी राज्य के प्रति लोगों का दृष्टिकोण क्या है ? मौजूदा सरकार से तो मेरी उम्मीद कम है, लेकिन सुधी जनता को दबाव बनाना चाहिए। क्योंकि, इनको हम लोगों ने ही वोट देकर चुना है। शहर में अतिक्रमण और भ्रष्टाचार का बोलबाला है।”
डॉ. लेनिन आगे कहते हैं “बनारस का इतिहास बहुलतावादी और समावेशी है। बनारस से यूनिस्को की सूची में केवल सारनाथ हो सकता है। यहां बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली, कबीर, रैदास, जैन तीर्थकर, गुरु नानक, महादेव समेत कई चीजों को शामिल किया जा सकता है। बुद्धिज्म, सनातन के खिलाफ नहीं है, लेकिन मनुवादी विचारधारा के साथ भी नहीं है। बहरहाल, सारनाथ के इतिहास को धरोहर के रूप में और बनारस की विभिन्नता व बहुलतावादी समाज को संस्कृति के रूप में यूनिस्को को अपनाना चाहिए।”
काशी हिन्दू विश्विद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास और पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर महेश प्रसाद अहिरवार कहते हैं कि “महात्मा बुद्ध बोधगया से ज्ञान प्राप्ति के बाद चलते हैं तो वाराणसी के मृगदाय आते हैं। सारनाथ, वाराणसी से बाहर नहीं है। ब्राह्मण धर्म का कांसेप्ट परवर्ती है। इतिहासकार मोतीचंद्र की पुस्तक ‘काशी का इतिहास’ में उल्लेख है कि बुद्ध के समय में वाराणसी का स्वरूप पूरा बुद्धमय रहा है। काशी में पहले यक्षों का प्रभाव था, इसके बाद शैव परंपरा का उद्भव और विकास हुआ। ये सब बुद्ध के बाद विकसित हुए थे। राजघाट की खुदाई में जो साक्ष्य मिले, उसमें बताया गया कि वही प्राचीन शहर वाराणसी था।
बौद्ध कालीन अवशेष भी राजघाट की खोदाई में मिले हैं. लेकिन, मौजूदा वक्त में राजघाट स्थिति ‘वाराणसी’ की कोई सरंचना, ढांचा, खंडहर आदि नहीं है। इसे समझना चाहिए कि सारनाथ ही वाराणसी है। यूनिस्को की साइट के मानक पर सारनाथ खरा उतर रहा है, लिहाजा, ऐतिहासिक महत्त्व के मानव कल्याण केंद्र सारनाथ बौद्धस्थल और परिसर को यूनिस्को की वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शामिल कर लिया जाना चाहिए।”