दिल्ली: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए 19 अक्टूबर का दिन ऐतिहासिक रहा। दो दशक बाद ऐसा हुआ, जब पार्टी के अध्यक्ष पद की कमान गांधी परिवार के बाहर किसी व्यक्ति के हाथों में गई। 90 फीसदी वोटों के साथ मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने प्रतिद्वंदी शशि थरूर को हराकर अध्यक्ष पद का चुनाव जीत लिया। इस चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे को 7897 वोट मिले जबकि शशि थरूर को 1072 वोट ही मिले। इस तरह खड़गे ने शशि थरूर को 6,825 मतों के अंतर से मात दिया।
इस चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी समेत करीब 9385 निर्वाचक मंडल के सदस्यों ने मतदान किया। चुनाव परिणाम आने के बाद शशि थरूर ने मल्लिकार्जुन खड़गे को बधाई दी और ट्वीट कर कहा कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनना एक बहुत बड़ा सम्मान है और बड़ी जिम्मेदारी भी है। मैं खड़गे जी की सफलता की कामना करता हूं। वहीँ, नवनिर्वाचित कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोनिया गांधी का आभार व्यक्त किया और कहा कि कांग्रेस पार्टी ने लगातार लोकतंत्र को मजबूत किया है, संविधान की रक्षा की है। अब हम सभी को लोकतंत्र और संविधान के लिए एक साथ मिलकर लड़ना होगा। पूरा भारत राहुल गांधी के संघर्ष से जुड़ रहा है।
अब इस जीत के बाद, मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने क्या हैं चुनौतियां?
मल्लिकार्जुन खड़गे की सबसे पहली प्राथमिकता पार्टी को मजबूत बनाने की होगी और पार्टी के कार्यकर्त्ताओ में एक नई ऊर्जा भरनी पड़ेगी जिससे कि कार्यकर्त्ता पूरे जोश से पार्टी को खड़ा करने और लोगों से जुड़ने में लग जाएँ। हाल के ही दिनों में पार्टी के कई नेता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर सवाल खड़ा करते हुए कांग्रेस को अलविदा कह चुके हैं।
इसी साल गुजरात और हिमाचल में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में खड़गे के सामने इन दोनो ही राज्यों में पार्टी की साख बचाने की बड़ी चुनौती होगी। वैसे खड़गे की असली अग्नि परीक्षा 2023 में होने वाले जा रहे कर्नाटक के चुनाव में होगी। कांग्रेस खड़गे को अध्यक्ष बनाकर कर्नाटक में सत्ता वापसी की उम्मीद लगा रही है।
खड़गे के लिए यूपीए के घटक दलों के साथ सामंजस्य बैठाना भी एक बड़ी चुनौती होगी क्योंकि पिछले कुछ चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने जिस प्रकार से अपना जनाधार खोया है, वैसी स्थिति में खड़गे कितने सहयोगियों को अपने साथ जोड़ पाते हैं, ये एक बड़ा प्रश्न है।
-मल्लिकार्जुन खड़गे को पार्टी में चल रही गुटबाजी का भी सामना करना पड़ेगा। राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच का झगड़ा किसी से छुपा नहीं है। पिछले दिनों इन दोनों गुटों के बीच जो चल रहा था, उस पर पूरे देश की नजर टिकी थी। छत्तीसगढ़ में भी आए दिन सीएम भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच खटपट की खबरें सामने आती रहती है।
मल्लिकार्जुन खड़गे को एक बात का और ध्यान रखना होगा कि उन पर ऐसा आरोप न लगे कि उन्हें गांधी परिवार द्वारा रिमोट से चलाया जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि अध्यक्ष पद के चुनाव के दौरान ही खड़गे पर गांधी परिवार का रिमोट होने का आरोप लगा. वैसे, खड़गे स्पष्टवादी है, अपनी बात खुलकर रखते हैं, कई बार वह ये मीडिया में कह चुके हैं कि वे गांधी परिवार से सलाह और सहयोग लेने में कभी शर्म महसूस नहीं करेंगे।
मल्लिकार्जुन खड़गे को आगे कर क्या कांग्रेस ने खेला है दलित कार्ड?:-
राजनितिक विश्लेषकों का कहना है मल्लिकार्जुन खड़गे जो कि दलित समुदाय से आते हैं, उन्हें अध्यक्ष बनाकर पार्टी दलितों को ये संदेश देना चाहती है कि आजाद भारत में बाबू जगजीवन राम के बाद पहली बार कोई दलित नेता कांग्रेस के शीर्ष पद पर बैठा है।
कांग्रेस को इसका फायदा गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में मिलेगा। एक संभावना यह भी है कि जिन राज्यों में कांग्रेस का जनाधार मजबूत है और दलित पार्टी के साथ हैं, वहां पार्टी की स्थिति और मजबूत हो जाएगी। इसका एक पहलु ये भी है की इन दिनों राष्ट्रीय राजनीति में कोई बड़ा दलित चेहरा नहीं है। रामविलास पासवान के निधन और मायावती की स्थिति कमजोर होने के बाद एक दलित कांग्रेस अध्यक्ष के साथ पार्टी उत्तर भारत के दलित वोटरों के बीच समर्थन पाने की कोशिश कर सकती है।
मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बावजूद दक्षिण भारत में कांग्रेस की राह आसान नहीं:-
दक्षिण भारत के पांच राज्यों- कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, केरल और तमिलनाडु में लोकसभा की 129 सीटों में से वर्तमान में कांग्रेस के पास 28 सीटें हैं। कांग्रेस दक्षिण भारत में खड़गे की दलित नेता की छवि को बिल्कुल भुनाना चाहेगी, लेकिन पार्टी के लिए ये इतना आसान काम नहीं होगा। एक तरफ आंध्रप्रदेश में जगनमोहन रेड्डी की जबरदस्त छवि बनी हुई है तो दूसरी तरफ तेलंगाना में केसीआर की तूती बोलती है। बीजेपी इन दोनों ही राज्यों में विपक्ष के तौर पर अपने आप को खड़ा करने में जोर शोर से लगी हुई है। ऐसा माना जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी मल्लिकार्जुन खड़गे को आगामी कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ पार्टी का चेहरा बना सकती है।
मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष चुने जाने के बाद पार्टी में क्या होगी राहुल गांधी की भूमिका?
राजनितिक गलियारों में अब ये चर्चा का विषय है कि कांग्रेस में अब राहुल गांधी की भूमिका क्या होगी? वैसे 19 अक्टूबर, जिस दिन कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिला उसी दिन, भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी के प्रेस कांफ्रेस में किसी पत्रकार ने उनसे पार्टी में उनकी भूमिका के बारे में सवाल पूछा तो उस सवाल का जवाब देते हुए राहुल गांधी ने कहा कि “पार्टी में उनकी भूमिका अब मल्लिकार्जुन खड़गे ही तय करेंगे”.
साल 1998 से गांधी परिवार के पास है अध्यक्ष पद:-
सोनिया गांधी साल 1998 से ही पार्टी के अध्यक्ष पद पर काबिज हैं। हालांकि बीच के कुछ सालों में राहुल गांधी भी पार्टी के अध्यक्ष रहे। 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।
ये हैं कांग्रेस पार्टी के वो अध्यक्ष जो गांधी परिवार से नहीं थे:-
- सीताराम केसरी – 1996-98
- पी. वी. नरसिम्हा राव – 1992-96
- कासु ब्रह्मानंद रेड्डी – 1977-78
- देवकांत बरुआ – 1975-7
- शंकर दयाल शर्मा – 1972-74
- जगजीवन राम – 1970-71
- एस. निजलिंगप्पा – 1968-69
- के. कामराज – 1964-67
- नीलम संजीव रेड्डी – 1960-63
- यू एन ढेबर – 1955-59
- पुरुषोत्तम दास टंडन – 1950
- भोगराजू पट्टाभि सीतारमैया – 1948-1949 जेबी कृपलानी – 1947