दिल्ली: संसद में प्रधानमंत्री मोदी के स्वर बड़े बहके- बहके से नजर आये ठीक वैसे ही जैसे रफी साहब ने गया था झलकाये जाम आपके नाम…
रफी साहब ने तो गाने का मुखड़ा गया था, पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना दुखड़ा रोते नजर आये सदन के अंदर 72 सालों में ऐसा पहली बार हुआ जब देश के सर्वोच्च पद पर बैठकर प्रधानमंत्री बेधक झूठ पर झूठ बोलता रहे और किसी अन्य भाजपा के वरिष्ठ नेता ने अपने प्रधानमंत्री का विरोध तक नहीं किया। क्या वाकई देश के प्रधानमंत्री को 700 किसानों की शहादत पर भी उतना ही दुःख हुआ था, जितना लता मंगेशकर के अलविदा कहने पर हुआ। इसका प्रमाण प्रधानमंत्री कार्यालय का त्वरित ट्वीट और पीएम का मुम्बई जाकर श्रद्धांजलि देना है। और किसानों के मरने पर ये कहना कि मेरे लिए मरे थे क्या ??
प्रधानमंत्री जी वो किसान आपके लिए ही मरे थें ! क्योंकि भारत की 80% GDP में योगदान देने वाली अर्थव्यवस्था का बोझ इन किसानों के कंधों पर है, जिन्हें आपने आय दुगनी होने के सब्ज़बाग दिखाये थें। आज तक उसका क्या हुआ पता नहीं पर किसानों की ज़मीन हड़पने के लिए पूंजीवादी सत्ता का कुचक्र जरूर बुना गया आपके पारदर्शी चश्में के पीछे से।
आज जैसे किसी फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़ रहे थें प्रधानमंत्री जिसमें झूठ पर झूठ चल रहे थें-
प्रधानमंत्री ने बड़ी सफाई से कोरोना काल में देश में मचे हाहाकार को अपने सिर से उतारते हुये कांग्रेस और राहुल गांधी के सिर मढ़ने का झूठ बोल दिया शायद उनके स्क्रिप्ट राइटर को अति उत्साह में ये याद नहीं रहा की, विश्व में अन्य जगहों पर जब कोरोना फैलना शुरू हुआ तब वो देश अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए वैक्सीन का प्रबंध करने में लगे थें और मोदी जी अपने जिगरी दोस्त को गुजरात बुलाकर “नमस्ते ट्रम्प” के बहाने गुजरात के झूठे विकास के चीथड़ों को नई दीवारों के पीछे छिपाकर कोरोना फैलने का इन्तेजार कर रहें थें।
पूरे देश के गरीबों के लिए बिना किसी योजना के तुगलकी फरमान के तहत रात 8 बजे टीवी पर आकर सब बन्द की कहते ही जिंदगी थम गई, खानाबदोश हैरान परेशान, गर्भवती नंगे पैर सूनी सड़कों पर पैदल अपने गांव जाने के लिए निकल गई, ना जाने कितनी मौतें हुई सड़कों पर बदहाली में भूखे पेट लेकिन इस घोषणा को करने के साथ प्रधानमंत्री खुद मोर के साथ खेलने में व्यस्त थें, और तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन अपने घर में मटर छिलने में। अमेरिका और फ्रांस जैसे देश अपने नागरिकों को राहत पैकेज बांट रही थीं, तो अपने देश भारत में थाली और मोबाइल चलवाने की प्रतियोगिता हो रही थीं। देश के प्रधानमंत्री को अपने लिए सेंट्रल विस्टा और हवाई जहाज़ की खरीदारी से फुरसत नही थीं।
आज सदन में खूब “प्रोपोगंडा” फैलाया गया – भारत सबसे तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था है।
हक़ीकत में आज भारत में मुट्ठी भर अमीरों की संख्या है और बेरोजगारों की फौज दिन प्रतिदिन बढ़ रही हैं।
देश 50 साल पीछे चला गया है जहाँ सिर्फ और सिर्फ कुछ लोगों के पास अकूत संपत्ति थी और समाज अमीरी और ग़रीबी में बंटा था। आज 142 अमीरों की सम्पति ₹23,14,000 CR से बढ़ ₹53,16,000 हो गई और 54% घरों की आय टूट गई।
लॉकडाउन लगा मज़दूरों व उनके परिवारों को बेहाली के भँवर में धकेलने वाले, ‘माफ़ी मांगने’ की बजाय मदद के लिए जुटे ‘हाथ’ पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। विपक्ष की बुराई बाद में कर लेते पहले तो ये बताये की आखिर सब बन्द होने के बीच रेल की टिकट बिक कैसे रही थीं।
बड़ी बेशर्मी से सांसद संसद में झूठ बोल कर निकल गये की ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा, तो जो मर गये क्या वो पेट में गैस चढ़ जाने से मर गये ??
सरकार के निकम्मेपन के कारण लाखों लोगों ने अपनों को खो दिया, मग़र आज बेशर्मी से संसद में उनकी पीड़ा पर हँसी-ठिठोली की गई। क्या ये देश एक मजाक है?? क्या वाकई में नागरिकों की पीड़ा को समझने वाला प्रधानमंत्री ना चुनकर नरेंद्र मोदी को देश ने प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली।
एक कहावत है “फटे पैर ना जाने बेवाई” मोदी जी को अरबों रुपये उड़ाकर देश की जनता की गरीबी और बेरोजगारी से क्या वास्ता। जिस पार्टी से प्रधानमंत्री आते है उनके पास ना पैसों की कोई कमी है ना आलिशान दफ्तरों की जो पिछले 7 साल में बने हैं। ऐसे में वो युवा जो अपनी मेहनत की कमाई से किसी प्रतियोगी परीक्षा में फीस भरने के साथ चुने जाने का इन्तेजार करते है कि नौकरी लगने पर कम से कम अपने माता- पिता का दर्द बांट पाएंगे ऐसे में उनके साथ कम से कम प्रधानमंत्री को मजाक नहीं करना चाहिए।
आपकी गरिमा देश के प्रधानमंत्री की तरह होनी चाहिए, चीन को कभी आप कुछ नहीं कहते लेकिन पिछले 7 सालों से नेहरू को कोसने का कोई मौका नहीं छोड़ते अगर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने देश के लिए कुछ किया ही नहीं तो फिर सरकार ने जो बंपर सेल जो लगा रखी है सरकारी संपत्तियों के बेचने की वो कहा से आया ??
बड़ी महीन बात है आपके मार्गदर्शन मंडल में बैठने का समय आ गया है। क्योंकि अगर 3 बार मुख्यमंत्री और 2 बार मुख्यमंत्री रहते आपकी एंटायर पॉलिटिकल साइंस की डिग्री ने आपको सत्ता को चलाना नहीं सिखाया तो उस डिग्री के क्या मायने हैं। सच को स्वीकार करके की हिम्मत शिक्षा से आती है ईमानदारी से आप इस सच को स्वीकार करें की देश आगे बढ़ने की जगह 50 साल पीछे जा चुका हैं, जुमलों की जगह अगर नीति और सोच के साथ सोचे तो 2009 की वैश्विक मंदी से ये दौर बुरा नहीं जो ना संभल पाये।
हर बार पंडित जवाहरलाल नेहरू और इतिहास के अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति जो अपनी सफाई देने नहीं आ सकते, ऐसे में उनके सिर ठीकरा फोड़ना बन्द कीजिये। और भाजपा के स्टार प्रचारक की भूमिका से बाहर आइये क्योंकि आपकी भूमिका बदल गई है अब प्रधानमंत्री के रूप में।